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विज्ञानजापान

पहली बार दिखा, चूहे भी संगीत पर थिरकते हैं

१६ नवम्बर २०२२

मनभावन संगीत पर झूमना सिर्फ इंसानों का स्वभाव नहीं है. जापानी वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि लेडी गागा जैसे सितारों का संगीत सुनने पर चूहों के भी पांव थिरकने लगते हैं.

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चूहों पर संगीत का असर
चूहों पर संगीत का असरतस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/picture alliance

जापानी वैज्ञानिकों का कहना है कि चूहे भी संगीत की धमक पर थिरकते हैं. टोक्यो यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने चूहों पर एक प्रयोग के बाद पाया कि संगीत का उन पर सीधा असर होता हौ. इन चूहों ने मोत्सार्ट, क्वीन और लेडी गागा जैसे सितारों का संगीत सुनवाया और तब चूहों पर सेंसर लगा दिए ताकि उनकी छोटी से छोटी गतिविधि को भी दर्ज किया जा सके.

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वैज्ञानिकों ने पाया कि चूहों ने एकदम फौरन ही बीट के हिसाब से अपनी गति को लयबद्ध कर लिया. अब तक माना जाता रहा है कि बीट पर थिरकना इंसानों के लिए ही संभव है. लेकिन इस अध्ययन का हिस्सा रहे एसोसिएट प्रोफेसर हीरोकाजू ताकाहाशी कहते हैं कि हालांकि चूहों का शरीर बहुत कम हिल रहा था लेकिन उनका मस्तिष्क संगीत पर प्रतिक्रिया देने की क्षमता रखता है.

जादूई है संगीत

प्रोफेसर ताकाहाशी ने कहा, "हम सभी मानते हैं कि संगीत में जादूई शक्तियां होती हैं लेकिन यह कैसे काम करता है, इसके बारे में हमें कुछ भी नहीं पता. इसलिए हम जानना चाहते थे कि किस तरह का ध्वनि-संपर्क बिना भावनाओं या याददाश्त को प्रभावित किए हमारे मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है.”

चूहों के लिए 120 से 140 बीट प्रति मिनट की रेंज में ‘थपकी' का प्रभाव सबसे अधिक प्रभावशाली रहा. करीबन यही दर मनुष्यों पर भी लागू होती है. इससे वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि हो सकता है कि सभी प्रजातियों के जीव इस बीट्स की इस रेंज से प्रभावित होते हों.

ताकाहाशी कहते हैं, "संगीत से शरीर हिलता है. यह असर सिर्फ श्रवण क्षमता या मोटर सिस्टम पर नहीं होता. आवाज की ताकत अद्भुत है.”

चूहों को नजरअंदाज क्यों किया?

वैज्ञानिकों का ध्यान मुख्यतया मोत्सार्ट के ‘सोनाटा फॉर टू पियानोज' पर रहा, जिसे डी मेजर, के.448 में बजाया गया. साथ ही उन्होंने लेडी गागा के गीत ‘बॉर्न दिस वे' और क्वीन के गीत ‘'अनदर वन बाइट्स द डस्ट' को भी बजाया था, जिन्हें ताकाहाशी के छात्रों ने चुना था.

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संगीत और अन्य ध्वनियों की नकल करने के लिए मशहूर तोतों जैसे अन्य पालतू जानवरों के उलट चूहों पर संगीत को लेकर अपनी तरह का यह पहला अध्ययन था. ताकाहाशी के मुताबिक इस क्षेत्र में चूहों को अब तक शायद इसलिए नजरअंदाज किया जाता रहा क्योंकि विभिन्न शोध वीडियो आधारित थे और गति आंकने के लिए सेंसर का प्रयोग नहीं किया गया, जिनसे जानवरों की छोटी से छोटी गति को भी दर्ज किया जा सकता है. वीडियो के जरिए इतनी छोटी गति को पकड़ना मुश्किल था.

टोक्यो यूनिवर्सिटी का यह अध्ययन पिछले हफ्ते ही ‘साइंस अडवांसेज' नामक पत्रिका में प्रकाशित हा है. भविष्य में ताकाहाशी और उनकी टीम रिदम से एक कदम और आगे जाकर यह समझना चाहेगी कि सुर और ताल का जानवरों पर क्या प्रभाव पड़ता है.

वीके/सीके (एएफपी)