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विज्ञानकनाडा

क्या करता है डीजे वाला बाबू जो थिरकने लगते हैं लोग

८ नवम्बर २०२२

वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया है कि जब धुन बजती है तो क्यों पांव थिरकने लगते हैं. किस वजह से डीजे वाले बाबू के गाना लगाते ही नाचने वाले कुर्सियों से खड़े होकर फ्लोर पर आ जाते हैं

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हिंदी फिल्म लवयात्री के सितारे
हिंदी फिल्म लवयात्री के सितारेतस्वीर: SUJIT JAISWAL/AFP/Getty Images

जो नाचना जानते हैं और उसका मजा लेते हैं वे कहते हैं कि डांस अंदर से आता है. लेकिन किस हद तक यह अंदर से आता है और इसमें बास फ्रीक्वेंसी का कितना योगदान होता है, इस पर वैज्ञानिकों ने एक अनोखा अध्ययन किया है.

असल में इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक कॉन्सर्ट में यह अध्ययन किया गया जिसके नतीजे सोमवार को ‘करंट बायोलॉजी' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं. यह नतीजे दिखाते हैं कि जब शोधकर्ताओं ने बहुत कम फ्रीक्वेंसी वाला बास बजाया, तो लोगों ने 12 फीसदी ज्यादा डांस किया, जबकि बास की यह फ्रीक्वेंसी इतनी कम थी कि नाचने वाले इसे सुन भी नहीं पा रहे थे.

मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट डेविड कैमरन बताते हैं, "उन्हें पता भी नहीं चल रहा था कि कब म्यूजिक बदल रहा है. लेकिन इससे उनकी गति बदल रही थी.”

कैसे हुआ शोध?

इस शोध के नतीजे बताते हैं कि बास और डांस में एक विशेष संबंध है. डॉ. कैमरन खुद एक प्रशिक्षित ड्रमर हैं. वह कहते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक कॉन्सर्ट में जाने वाले लोगों को तब ज्यादा मजा आता है जब बास ज्यादा होता है और वे इसे और बढ़ाने की मांग करते हैं. लेकिन ऐसा करने वाले वे अकेले नहीं हैं.

डॉ. कैमरन बताते हैं कि बहुत सी संस्कृतियों में कम फ्रीक्वेंसी वाले वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है. बास गिटार या बास ड्रम जैसे ये वाद्य यंत्र संगीत में जान डालने का काम करते हैं. कैमरन कहते हैं, "हम नहीं जानते थे कि बास से आप लोगों को ज्यादा नचवा सकते हैं.”

यह प्रयोग कनाडा की एक प्रयोगशाला ‘लाइवलैब' में हुआ जो एक कॉन्सर्ट हॉल भी है. यहां इलेक्ट्रॉनिग म्यूजिक के सितारे ऑरफिक्स का शो आयोजित हुआ. करीब 130 लोग इस शो को देखने आए. उनमें से 60 ने मोशन-सेंसर लगे हेडबैंड पहने थे, जो उनकी गति की निगरानी कर रहे थे.

एकता को प्रोत्साहित करने वाला डांस

कॉन्सर्ट के दौरान शोधकर्ता बीच-बीच में कम फ्रीक्वेंसी वाले बास बजा रहे स्पीकर ऑन-ऑफ करते रहे. दर्शकों से एक फॉर्म भी भरवाया गया, जिसमें कुछ सवाल पूछे गए थे. इन सवालों के जरिए यह सुनिश्चित किया गया कि किसी को भी स्पीकर ऑन या ऑफ होने का पता नहीं चला. इस तरह इस बात की पुष्टि हुई कि अन्य कारकों ने नतीजों को प्रभावित नहीं किया.

कैमरन कहते हैं, "मैं असर से बहुत प्रभावित हुआ.”

तो क्यों नाचते हैं लोग?

उनका सिद्धांत है कि जब सुनाई ना भी दे, तब भी बास यानी नीचे का सुर लगाने से शरीर में संवेदनाएं पैदा होती है. त्वचा या मस्तिष्क के संतुलन बनाने वाले यानी कान के अंदरूनी हिस्से में पैदा होने वालीं ये संवेदनाएं गति को प्रभावित करती हैं. अपने आप ही ये संवेदनाएं मस्तिष्क के अगले हिस्से यानी फ्रंटल कॉरटेक्स तक जाती हैं.

कैमरन कहते हैं कि यह सब अवचेतन रूप से होता है, ठीक वैसे ही जैसे शरीर फेफड़ों से हवा और दिल को रक्त साफ कराने का काम अवचेतन रूप से करवाता है. वह बताते हैं कि उनकी टीम का मानना है कि यदि इन संवेदनाओं से शरीर की गति-व्यवस्था को थोड़ी सी ऊर्जा मिलती है और वह अंगों को गतिमान कर देती है.

इंटरनेट में वायरल हो रहा है कोरोना डांस

कैमरन भविष्य में और प्रयोगों के जरिए अपने सिद्धांत की पुष्टि करना चाहते हैं. हालांकि, इंसान नाचता क्यों है, इस रहस्य को सुलझाने का दावा वह नहीं करते. वह कहते हैं, "मेरी दिलचस्पी हमेशा लय में रही है, खासकर उस लय में जो हमें झूमने को मजबूर कर देती है.”

वह बताते हैं कि इसका एक जवाब सामाजिक सद्भाव के सिद्धांत से दिया जाता है. कैमरन कहते हैं, "जब आप अन्य लोगों के साथ सामंजस्य में होते हैं तो आपको उनके साथ एक रिश्ता महसूस होता है जो उस वक्त के बाद तक रहता है. इससे आपको बाद में भी खुशी का अहसास होता है.”

वीके/एए (एएफपी)