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बिहार की शराबबंदी में थोड़ी सी ढील देने के आसार

मनीष कुमार, पटना
२८ जनवरी २०२२

एक तरफ राज्य में जहरीली शराब से लगातार हो रही मौत तथा दूसरी तरफ अदालतों की तल्ख टिप्पणी के बाद बिहार में लागू शराबबंदी कानून में एक बार फिर बड़े बदलाव की तैयारी है.

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तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 में दूसरी बार संशोधन का प्रस्ताव लाया जा रहा है. इसके तहत पहली बार यदि शराब पीते पकड़े गए तो वहीं जुर्माना लेकर छोड़ दिया जाएगा. दोबारा पकड़े जाने पर जेल की हवा खानी पड़ेगी. इसके साथ ही शराब से संबंधित सामान्य मामलों में भी राहत देने पर विचार किया जा रहा है.

नालंदा और सारण जिले में जनवरी माह में जहरीली शराब से 21 लोगों की मौत का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत मुरार थाना क्षेत्र के अमसारी गांव में पांच लोगों की मौत हो गई तथा दो अन्य को गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया.

इन सभी लोगों ने 26 जनवरी के जश्न में शराब पार्टी का आयोजन किया था. देसी शराब पीने के चंद घंटों के अंदर ही एक-एक करके लोगों ने अपनी जान गवां दीं. हर बार की तरह पुलिस-प्रशासन ने इनकार करने के बजाय प्रथम दृष्टया ही स्वीकार कर लिया कि जहरीली शराब पीने से पांच लोगों की मौत हुई है. संभवत: पहली बार ऐसा हुआ है.

पुलिस अधीक्षक नीरज कुमार सिंह ने कहा, ‘‘प्रारंभिक जांच से प्रतीत होता है कि सभी ने शराब पी थी. अवैध रूप से शराब बनाकर उपलब्ध कराने वालों की पहचान कर उन्हें गिरफ्तार करने की कार्रवाई की जा रही है.''

शराबबंदी को लेकर पुलिस व प्रशासनिक तंत्र पहले से ही निशाने पर रहा है. नालंदा की घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा था कि अगर शराबबंदी लागू करना है तो सबसे पहले नालंदा प्रशासन द्वारा गलत बयान देने वाले उस अफसर की गिरफ्तारी होनी चाहिए, क्योंकि प्रशासन का काम जहरीली शराब से मृत व्यक्तियों की मौत का कारण अजीबो-गरीब बीमारी बताना नहीं होता है.

जायसवाल ने कहा,‘‘इससे साफ जाहिर होता है कि प्रशासन शराब माफिया से मिला हुआ है और उसकी करतूतों को छुपाने का काम कर रहा है. शराब के अवैध कारोबार को खत्म करना है तो भ्रष्ट प्रशासन तंत्र, संलिप्त पुलिस व माफिया की तिकड़ी को खत्म करना होगा.''

क्यों किया जा रहा संशोधन?

बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम में पहली बार 2018 में संशोधन किया गया था. इसके तहत शराब पीते हुए पकड़े जाने के अपराध को जमानती बनाया गया. पुलिस स्टेशन से ही जमानत देने का प्रावधान किया गया. पहली बार शराब पीने के आरोप में पकड़े गए व्यक्ति को 50,000 रुपये का जुर्माना देकर रिहा करने का प्रावधान किया गया.

तब रिहाई का अधिकार कोर्ट के पास था जबकि मूल कानून में दस साल की जेल का प्रावधान था. हालांकि इस पर खास अमल नहीं किया गया. अब दूसरी बार का संशोधन प्रस्ताव दरअसल शराबबंदी कानून को लागू करने के तरीके को लेकर हो रही आलोचनाओं तथा अदालतों की फटकार के बाद लाया जा रहा है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने भी इस कानून में दूरदर्शिता का अभाव बताया था तथा कहा था कि इस वजह से हाईकोर्ट में जमानत के आवेदनों का अंबार लग गया है. जमानत के एक साधारण मामले को निपटाने में कोर्ट को एक साल का वक्त लग जा रहा है. मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने बीते 11 जनवरी को शराबबंदी कानून के तहत आरोपियों को अग्रिम व नियमित जमानत को चुनौती देने वाली बिहार सरकार की 40 अपीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इन मामलों ने अदालतों को अवरुद्ध कर दिया है. पटना हाईकोर्ट के 14-15 जज केवल इन मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं.  

आंकड़ों के अनुसार शराबबंदी कानून के उल्लंघन में चार लाख लोग गिरफ्तार किए गए हैं और जमानत के करीब बीस हजार मामले लंबित पड़े हैं. इसके साथ ही राज्य की 59 जेलों के 70,000 कैदियों में करीब 25,000 इस कानून के उल्लंघन के आरोपित हैं.

पटना हाईकोर्ट ने भी राज्य में शराबबंदी के बावजूद इसकी बढ़ते मामलों की संख्या तथा हर दिन पकड़े जाने वाली शराब को लेकर एतराज जताया था. बेगूसराय के एक मामले में अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि कोर्ट यह क्यों नहीं माने कि शराब के अवैध व्यापार का नेटवर्क चलाने वाले माफिया की पुलिस से साठगांठ है. कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि अब तक कितने बड़े सप्लायर या माफिया पकड़े गए हैं. अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि भारी मात्रा में शराब की बरामदगी तो हो रही है लेकिन शराब की तस्करी में लगे सिंडिकेट को पुलिस पकड़ नहीं पाई है. सिर्फ वही लोग पकड़े जा रहे हैं जो शराब को एक जगह से दूसरी जगह ले जा रहे हैं. इनमें सबसे ज्यादा ट्रक ड्राइवर और छोटे लोग ही हैं.  

कोर्ट में शराबबंदी कानून के उल्लंघन में चल रहे 30-40 प्रतिशत मामले शराब पीने वालों के खिलाफ हैं. इस कानून में किए जा रहे संशोधन का उद्देश्य अदालतों में लंबित मामलों में कमी लाना तथा शराब माफिया व तस्करों को जल्द से जल्द सजा दिलाना है. विदित हो कि इस साल जनवरी महीने के 15 दिनों में पांच हजार लोग गिरफ्तार किए गए हैं तथा एक से 15 जनवरी के बीच करीब डेढ़ लाख लीटर अवैध शराब जब्त की गई है.

क्या हो सकते हैं बदलाव?

सूत्रों के अनुसार, प्रदेश में शराबबंदी कानून में दूसरी बार किए जा रहे संशोधन में शराब की बिक्री अब संगठित अपराध की श्रेणी में आएगी तथा इस काम में लगे लोगों की संपत्ति जब्त की जाएगी. यह भी प्रावधान किया जा रहा है कि ऐसा कोई भी पदार्थ जो शराब में बदला जा सकता है वह मादक द्रव्य की श्रेणी में आएगा.

आमलोगों के मद्देनजर सबसे अहम संशोधन का प्रस्ताव यह है कि कोई व्यक्ति यदि पहली बार शराब पीते पकड़ा जाएगा तो वह जुर्माना देकर छूट सकेगा. वहीं जुर्माना नहीं भरने वाले दोषी व्यक्ति को एक माह के लिए जेल भेज दिया जाएगा. दरअसल, ऐसे मामले काफी संख्या में आ रहे थे कि कोई व्यक्ति दूसरे राज्य से किसी वैवाहिक या अन्य कार्यक्रम में बिहार आया और जानकारी के अभाव में उसने शराब का सेवन किया या फिर उसके पास से शराब बरामद की गई तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता था. पहली बार पकड़े गए ऐसे लोगों से अब फाइन लेकर उन्हें छोड़ दिया जाएगा.

अगर कोई व्यक्ति बार-बार शराब पीता पकड़ा गया तो उसे जुर्माना और जेल दोनों हो सकता है. इसके साथ ही शराब पीने तथा बेचने के आरोप में पकड़े गए लोगों के लिए अलग-अलग कोर्ट बनाने का प्रस्ताव है, ताकि त्वरित गति से मामलों का निपटारा किया जा सके. इस उद्देश्य से न्यायालयों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है. अब इससे जुड़े मामलों का ट्रायल एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट, डिप्टी कलेक्टर या इससे ऊपर रैंक के अधिकारी भी कर सकेंगे.

यह भी प्रस्ताव आ सकता है कि जिस जगह से शराब बरामद होगी उस जगह को एएसआई भी सील कर सकेगा तथा जब्त शराब को सुरक्षित स्थल पर ले जाना यदि संभव नहीं होगा तो उसे डीएम के निर्देश पर बरामदगी स्थल पर ही नष्ट किया जा सकेगा. इसके लिए डीएम अपनी ओर अधिकारी प्रतिनियुक्त करेंगे. वहीं नए संशोधन में शराब के धंधे में पकड़े गए वाहनों को भी जुर्माना लेकर छोड़ने का प्रावधान किया जा सकता है. इसके साथ ही शराब बेचने व बनाने में शामिल अपराधियों की चल-अचल संपत्ति जब्त करने का भी प्रस्ताव है. यह अधिकार सरकार के पास होगा और इसके तहत राज्य के बाहर के शराब तस्करों की संपत्ति की भी जब्ती की जाएगी.

संशोधन का प्रस्ताव तैयार कर गृह तथा विधि विभाग के पास भेजा गया है. संभावना है कि आगामी बजट सत्र में इसे पेश कर दिया जाएगा. उत्पाद आयुक्त बी कार्तिकेय धनजी ने कहा, ‘‘मद्य निषेध विधेयक में संशोधन प्रस्ताव पर काफी लंबे समय से विचार चल रहा है. नए संशोधन प्रस्ताव में शराब पीकर पकड़े जाने के मामले में सुनवाई का अधिकार एक्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट को दिए जाने की तैयारी है. जुर्माने की राशि क्या होगी, यह अभी तय नहीं है.''

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