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मानवाधिकारअफगानिस्तान

अफगानिस्तान में लैंगिक भेदभाव पर चिंता

२० जून २०२३

अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष विशेषज्ञ ने तालिबान की ओर से महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को वैश्विक अपराध घोषित करने का आह्वान किया है.

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अफगानिस्तान में महिलाओं पर सख्त पाबंदी
अफगानिस्तान में महिलाओं पर सख्त पाबंदीतस्वीर: Ebrahim Noroozi/AP Photo/picture alliance

अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति पर जारी एक नयी रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों के लिए हालात विश्व में सबसे बदतर हैं और महिलाओं के साथ उनके लिंग के आधार पर आर्थिक-सामाजिक भेदभाव किया जा रहा है.

अफगानिस्तान में अधिकारों के लिए यूएन के विशेष रैपोर्टेयर रिचर्ड बेनेट ने कहा कि देश में लड़कियों और महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है.

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महिलाओं को अधिकार नहीं दे रहा तालिबान

उन्होंने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ गंभीर, व्यवस्थित और नियमित भेदभाव तालिबान विचारधारा और शासन के केंद्र में है, जो इस चिंता को भी जन्म देता है कि वे लैंगिक भेदभाव के जिम्मेदार हो सकते हैं.

तालिबान ने अगस्त 2021 में काबुल पर कब्जा कर लिया था और अपनी सरकार की स्थापना की घोषणा की, लेकिन दुनिया के किसी भी देश ने अब तक इस सरकार को मान्यता नहीं दी है.

अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने सख्त शरिया कानूनों की घोषणा की और लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया, जबकि महिलाओं को सरकारी नौकरियों से निकाल दिया गया. तालिबान ने महिलाओं के अकेले यात्रा करने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि महिलाओं को बुर्का लगाने का आदेश दिया गया.

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महिलाओं पर सख्त पाबंदी

इस रिपोर्ट में देश में तालिबान प्रशासन से महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों का सम्मान व उन्हें सुनिश्चित किए जाने का आग्रह किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त वॉल्कर टर्क ने भी मानवाधिकार परिषद के 53वें नियमित सत्र में अफगानिस्तान में हालात पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि देश में मौजूदा प्रशासन ने मानवाधिकारों के सबसे बुनियादी सिद्धांतों को बिखेर कर रख दिया है, विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों के लिए.

बेनेट ने कहा तालिबान प्रशासन ने जिस प्रकार से महिलाओं पर सख्त पाबंदियां थोपी हैं, उन्हें लैंगिक उत्पीड़न, मानवता के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है.

यूएन मानवाधिकार उप-उच्चायुक्त नादा अल-नशीफ ने परिषद की बैठक में कहा कि तालिबान प्रशासन से बार-बार आश्वासन मिलने के बावजूद, पिछले 22 महीनों में महिलाओं और लड़कियों के जीवन के हर पहलू पर पाबंदी लगा दी गई है.

इससे पहले एमनेस्टी इंटरेशनल समेत दो संस्थाओं ने मांग की थी कि महिलाओं के खिलाफ तालिबान द्वारा लाए गए प्रतिबंधों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाना चाहिए और इसी आधार पर जांच होनी चाहिए.

अप्रैल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर तालिबान से मांग की थी वह अफगानिस्तान में "महिलाओं और लड़कियों की पूरी, बराबर, सार्थक और सुरक्षित भागीदारी" सुनिश्चित करे.

एए/वीके (एएफपी, एपी)