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प्रतिबंधों से ईरान को चोट पहुंचाना चाहता है अमेरिका

१८ फ़रवरी २०१२

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को उम्मीद है कि ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का जल्द ही गहरा असर नजर आने लगेगा. तेल का बाजार प्रभावित होने, धीमी विकास दर और लोगों के साथ-साथ सहयोगी दलों का नाराज होना भी गहरा प्रभाव डालेगा.

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तस्वीर: Fotolia/le0nmd

अमेरिका और ईरान दोनों ही देशों में आने वाले दिनों में चुनाव होने वाले हैं. ओबामा भी राजनीतिक लाभ के लिए ईरान पर दबाव बना कर उसे परमाणु कार्यक्रम के रास्ते से हटाना चाहते हैं. लेकिन यह मुश्किल नजर आ रहा है.

अमेरिकी अधिकारियों और सहयोगी देशों जापान व दक्षिण कोरिया को भरोसा है कि ईरान पर लगाए गऐ नए आर्थिक प्रतिबंध उसके तेल कारोबार पर गहरा असर डालेंगे. उन्हें यह भी अंदेशा है कि नए प्रतिबंध उनकी अर्थव्यवस्था पर भी चोट कर सकते हैं. उधर अमेरिका भी तेल की कीमतों में आने वाले नाटकीय उछाल को रोकना चाहता है. उसे डर है कि तेल की कीमतें उसकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं. यह उन मतदाताओं के लिए भी अहम मुद्दा है जो नवंबर में होने वाले चुनावों में तय करेंगे कि ओबामा दूसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे या नहीं.

Iran aus der Sicht eines deutschen Touristen
तस्वीर: Tido Käker

अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उनकी बातचीत अब तक सकारात्मक और उपयोगी रही है. तनाव को वह दुश्मनी के रूप में नहीं देख रहे हैं. प्रतिबंध लगाने में भी पूरी सावधानी बरती गई है. अमेरिकी वित्त विभाग के सहायक सचिव डेनियल ग्लासेर ने कहा कि प्रतिबंधों में लचीलापन रखा गया है. देशों को अपने वित्तीय फैसले खुद लेने होंगे. अमेरिका उनके साथ काम करेगा. उन्होंने कहा कि यहां लक्ष्य किसी देश को सजा देना नहीं बल्कि ईरान जिस रास्ते पर चल रहा है, उस पर से उसे हटाना है.

अमेरिकी खुफिया एजेंसी के निदेशक रोनाल्ड बर्गीस ने अमेरिकी कांग्रेस से कहा कि ईरान पर प्रतिबंधों और दबाव के बाद भी वह परमाणु कार्यक्रम बंद करने के लिए तैयार नहीं है. लेकिन फिर भी प्रतिबंध असर दिखा रहे हैं.

उधर अब तक परणामु हथियार बनाने से इंकार करते आए ईरान ने भी अपना रूख लचीला बनाते हुए परमाणु मुद्दे पर बातचीत की पहल की है. ताकतवर देश इसे ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का असर मान रहे हैं. उधर ईरान की मुद्रा रियाल भी डॉलर के मुकाबले कमजोर होती जा रही है.

ग्लासेर ने कहा कि रियाल के अवमूल्यन से ईरान को अर्थव्यवस्था को थामे रखने में परेशानी हो रही है. यह प्रतिबंधों का ही असर है. उन्होंने कहा कि ईरान के केंद्रीय बैंक पर लगा प्रतिबंध उस की अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किल खड़ी कर देगा. आने वाला समय इसलिए भी महत्वपूर्ण होने जा रहा है क्योंकि अब ईरान के तेल से प्राप्त होने वाले राजस्व पर भी असर शुरू होने लगेगा.

Grüne Bewegung in Iran
तस्वीर: picture-alliance/dpa

विश्लेषकों का कहना है कि ईरान के तेल राजस्व में 20 से 25 प्रतिशत की कमी हुई है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि ईरान के भुगतान में 18 प्रतिशत की कमी आई है.

उर्जा और राष्ट्रीय सुरक्षा कार्यक्रम केंद्र के निदेशक फ्रेंक वेरास्ट्रो कहते हैं, "मुझे लगता है कि ईरान के तेल निर्यात में 25 प्रतिशत की कमी बड़ी सफलता है. ईरान को मांस, चावल और रोटी की बढ़ती कीमतों का सामना करना पड़ रहा है. आम ईरानी बैंको में जमा अपनी बचत निकाल कर उससे खरीदी कर रहे हैं. रियाल की कीमत भी तेजी से कम होती जा रही है."

कांग्रेसनल रिसर्च सर्विसेस में निदेशक केन काट्जमेन के अनुसार "प्रतिबंधों का मनोवैज्ञानिक असर शुरू हो गया है. यह केवल निराधार आशंका या डर नहीं है. यह डरावनी आर्थिक सच्चाई है."

ग्लेसर के अनुसार अमेरिका ईरान से तेल खरीद रहे देशों से लगातार संपर्क में है और उन्हें दूसरे विकल्प अपनाने के लिए भी राजी कर रहा है. ईरान से तेल की खरीद में लगातार कमी हो रही है. लेकिन यह एक साथ न होकर धीरे-धीरे होगा. अमेरिका को उम्मीद है कि संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और अन्य तेल उत्पादक देशों की सहायता से ईरान पर प्रतिबंध के कारण महसूस हो रही तेल की कमी को दूर करने में मदद मिलेगी.

उधर ईरान को भी अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच से खुद के लिए रास्ता बनाने में माहिर माना जाता है. वह व्यापार में चरणबद्ध तरीकों का उपयोग कर रहा है. ग्लेसर के अनुसार यदि आप एक बैंक पर प्रतिबध लगाएंगे तो वे दूसरे बैंक का उपयोग शुरू कर देंगे. इसी तरह ईरान शिपिंग लाईंस को काली सूची में डाले जाने के बाद उन्होंने दूसरी कंपनियों की सहायता से कार्गो की आवाजाही जारी रखी. अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार प्रतिबंधों के कारण दूसरे रास्ते अपनाने से ईरान को आयात और निर्यात दोनों ही महंगा पड़ रहा है. यूरोपीय संघ को प्रतिबंधों के बाद अपनी ऐतिहासिक जीत पर पूरा भरोसा है. उन्हें विश्वास है कि ओबामा ने सही मायने में कूटनीति अपनाई है. उन्होंने बातचीत नहीं की और फिर भी डर पैदा कर दिया कि इस्राएल ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर सकता है.

एक पश्चिमी राजनयिक के अनुसार उन्हें नहीं लगता कि अगले माह होने वाले संसदीय चुनावों के पहले परमाणु मुद्दा किसी बड़े बदलाव की संभावना है. उधर ईरान मामले के एक अमेरिकी विशेषज्ञ के अनुसार ओबामा को तेहरान पर अपने रुख की वजह से आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ सकता हैं.

रिपोर्ट: रॉयटर्स/जितेन्द्र व्यास

संपादन: महेश झा

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