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पशु रक्षा अभी दूर की कौड़ी

४ अक्टूबर २०१२

जानवरों के अधिकार के लिए लड़ने वाले संगठनों ने मांग की है कि उन्हें पशुओं के हक के लिए कानूनी लड़ाई का अधिकार मिले. जर्मनी में दस साल से पशु रक्षा संविधान में शामिल है, पर स्थिति बहुत नहीं बदली है.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

जर्मनी में पशु रक्षा कानून के बावजूद लाखों पशुओं को बड़े बड़े हॉल में रखा जाता है, परीक्षणों के लिए उन्हें सताया जाता है और यातना दी जाती है. विश्व पशु रक्षा दिवस पर जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि पशुपालन उद्योग में बेहतरी आई है. लेकिन पशु रक्षा संगठनों का कहना है कि कुल मिलाकर यह बेहतरी मामूली है. वे पशुओं को राजनीतिक रूप से और कानूनी रूप से आवाज देने की मांग कर रहे हैं.
जर्मनी के पशु रक्षा संगठन को पिछले सालों में अपने प्रयासों में सफलता जरूर मिली है. इसमें पशुओं की रक्षा को संविधान में शामिल किया जाना भी जुड़ा है. इसके अनुसार पशुओं के कल्याण और पशुपालकों के हितों में सामंजस्य होना चाहिए. लेकिन तबेलों और प्रयोगशालाओं में पशुओं को हो रही तकलीफ कम करने की दिशा में बहुत कुछ नहीं हुआ है. पहले की ही तरह मुर्गे, सुअर और बछड़ों को छोटी जगहों में दमघुटाऊ माहौल में रखा जाता है. कृषि मंत्रालय अगले 20 साल तक मुर्गियों को पिंजड़ों में पालने की अनुमति देने पर विचार कर रहा है, हालांकि संसद के प्रांतीय सदन ने कुछ और प्रस्ताव दिया है.
उपभोक्ताओं को धोखा
लोग कौन सा अंडा खा रहे हैं, पिंजड़े में पाले गए, जमीन पर या खुले बगीचे में पाले गए मुर्गियों के अंडे, इसका पता नहीं चलता है. जर्मन पशु रक्षा संघ के थोमास श्रोएडर की शिकायत है कि जर्मनी में उपभोक्ताओं को नहीं बताया जाता कि अंडे, मीट, दूध या ऊन का उत्पादन कैसे हो रहा है. वे स्थिति में बदलाव के लिए बाजार की ताकत पर भरोसा कर रहे हैं. "उपभोक्ताओं को फैसले का अधिकार होना चाहिए. इसके लिए पैकेट पर सूचना जरूरी है ताकि वह फैसला कर सके."
फरपूर्टेन, बिर्केल, कोपेनराठ, डिकमन्स और बालसेन जैसी कंपनियां अपने पिंजड़ों में पली मुर्गियों के अंडे इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन पैकेटों पर यह जानकारी नहीं देतीं. उपभोक्ता को इस तरह धोखे में रखा जाता है. उद्यम इसका फायदा उठा रहे हैं. श्रोएडर पैकेट पर पूरी सूचना देने की मांग करते हैं. उनका कहना है कि पिंजड़े वाले अंडों का इस्तेमाल पूरी तरह बंद किया जाना चाहिए.
संशोधन की मांग
पशु रक्षा संघ की हाइडरुन बेट्स का आरोप है कि पशु रक्षा कानून में बहुत सारी कमियां हैं, जिसकी वजह से अभी तक पशुओं को यातना देना रुका नहीं है. उनका कहना है कि यह पशु रक्षा कानून के बदले पशु इस्तेमाल कानून है जो उन्हें इस्तेमाल करने वालों की जरूरतों के अनुरूप है. जीवविज्ञानी बेट्स शिकायत करती हैं, "मुर्गियों की चोंच जलाना या बेहोश किए बिना सुअरों की पूंछ काटना कानूनी है. अजीब है कि ऐसा पशु रक्षा कानून में लिखा है."
पशु रक्षकों की इस सप्ताह छोटी सफलता मिली है. उन्होंने एक उद्यम के खिलाफ मुकदमा किया था जो सुअरों को परीक्षण के लिए अमेरिकी सेना को बेचना चाहता था. अदालत ने इस पर रोक लगा दी. पशु रक्षा संगठन के आइजेनहार्ट फॉन लोएपर कहते हैं कि यह फैसला दिखाता है कि पशुओं के पक्ष में कानूनी फैसले कितने जरूरी है. ये संगठन पशुओं को यातना देने के मामलों में मुकदमा करने का अधिकार चाहते हैं. अब तक सिर्फ एकल लोग ऐसा कर सकते हैं. उन्हें लंबी कानूनी प्रक्रिया का खर्च उठाने के लिए तैयार रहना होता है. पशु रक्षा संगठनों का कहना है कि यदि उन्हें अधिकार मिल गया तो पशु रक्षा के संवैधानिक अधिकार को और ज्यादा वजन मिलेगा.
रिपोर्ट: पेटर कोलाकोव्स्की/एमजे
संपादन: आभा मोंढे

Schweine Massentierhaltung
पशुओं को यातनातस्वीर: picture alliance/WILDLIFE
Grüne Woche 2012
कृषि मंत्री इल्जे आइगनर और बर्लिन के मुख्यमंत्रीतस्वीर: REUTERS
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