बाजार में मिलेगा कृत्रिम मांस
२३ फ़रवरी २०१२मार्क पोस्ट का लक्ष्य है कि स्केलेटल मांसपेशी की कोषिकाएं प्रयोगशाला में स्टेम सेल से तैयार की जाएं. प्रयोगशाला में बना यह मांस सामान्य तौर पर खाए जाने वाले जानवरों के मांस जैसा होगा. और भविष्य में मांस खाने के लिए जानवरों को मारने की जरूरत नहीं होगी. इसके लिए पोस्ट ने सबसे पहले हैम्बर्गर में लगने वाला मांस बनाया है. उन्होंने जानकारी दी कि पहला बर्गर अभी प्रयोगशाला स्तर का ही है. हम कुछ हजार छोटे टिशू बनाना चाहते हैं और फिर उनसे हैम्बर्गर बनाया जाएगा.
नीदरलैंड्स की मास्ट्रिख्ट यूनिवर्सिटी में फिजियोलॉजी विभाग के प्रमुख ने कहा कि उनके प्रोजेक्ट के लिए ढाई लाख यूरो एक निजी निवेशक ने दिए हैं. वह प्रकृति की रक्षा, सबके लिए भोजन और जीवन बदल देने वाली तकनीक में रुचि रखते हैं.
इन वैज्ञानिकों ने कनाडा के वैंकूवर शहर में अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की. उन्होंने नेक्स्ट एग्रीकल्चर रिवोल्यूशन यानी अगली कृषि क्रांति नाम के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि वे इस तरह से लोगों के लिए मांस उत्पादन करना चाहते हैं और पारंपरिक खाद्य उत्पादन में प्रकृति और स्वास्थ्य के लिए होने वाला खर्च बचाना चाहते हैं. "पारंपरिक तरीके से मीट और डेयरी उत्पाद के लिए ज्यादा जगह, पानी, पेड़, कूड़ा फेंकने में बहुत खर्च लगता है."
एक अनुमान के तहत 2050 तक दुनिया भर में मांस की मांग 60 फीसदी बढ़ जाएगी. लेकिन ये जमीनें पहले से ही इस्तेमाल की जा रही हैं. इसलिए अगर और उत्पादन करना है तो जंगलों को नष्ट करना होगा. इससे जैव विविधता घटेगी. ग्रीन हाऊस गैस की समस्या पैदा होगी और बीमारियां भी बढ़ेंगी.
वहीं स्टैंडफर्ड यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ मेडिसिन के पैट्रिक ब्राउन का कहना है कि पशुपालन अभी सबसे बुरी स्थिति में है. और मुद्दे की बात यह है कि इसकी तकनीक में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है. अमेरिका की वेंचर कैपिटल फर्म से निधि लेने वाले ब्राउन का कहना है कि वे अपना जीवन कृत्रिम मांस का विकास करने में लगाएंगे, लेकिन यह कृत्रिम मांस बनेगा जैविक स्रोत से ही.
वह इस उत्पाद को विकसित कर व्यावसायिक स्तर पर बनाना चाहते हैं जो स्वाद और कीमत में सामान्य मांस और डेयरी उत्पादों जैसा ही होगा. ब्राउन का मानना है कि जानवरों की कोषिका से लैब में मीट बनाने पर पर्यावरण को बहुत हानि होगी इसलिए वह पौधों से इसे बनाएंगे. दोनों ही वैज्ञानिकों ने कहा है कि अभी तक किसी कंपनी ने इस दिशा में रुचि नहीं दिखाई है.
रिपोर्टः एएफपी/आभा एम
संपादनः महेश झा