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तेज रन बनाना आसान न थाः फ्लेचर

११ जुलाई २०११

जीत की कोशिश करने के बजाय आसानी से ड्रॉ मान लेने के भारतीय टीम के फैसले से आम लोग भले ही हैरान हो रहे हों लेकिन टीम इंडिया के कोच डंकन फ्लेचर का कहना है कि तेज रन बनाना आसान न था और ऐसे में ड्रॉ कर लेना ही अकलमंदी थी.

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आसान नहीं था तेज रन बनानातस्वीर: AP

भारत जीत के लिए 180 रन का पीछा कर रहा था और आखिरी के 15 अनिवार्य ओवर में उसे 86 रन बनाने थे. ऐसे में कप्तान धोनी ने हथियार समेट लेने का फैसला किया और मैच को ड्रॉ पर खत्म कर दिया गया. भारत अगर जीत की कोशिश करता तो उसे हर ओवर में छह रन की गति से स्कोरिंग करनी पड़ती.

मैच के बाद भारतीय कोच फ्लेचर ने कहा, "वहां जमना ज्यादा मुश्किल नहीं था. लेकिन वहां रन बनाना बहुत दूभर था. जब उस पिच पर हर ओवर में तीन रन ही मुश्किल से बन रहे थे तो हम बचे हुए ओवरों में कैसे पांच छह रन की गति बनाए रखते."

उन्होंने कहा, "हमने पूरे मैच के दौरान देखा कि अगर बॉलिंग वास्तव में बेहद खराब न हो, तो स्कोरिंग मुश्किल होती है. आप हर बार क्रॉस बल्ले से नहीं खेल सकते हैं. इससे गेंदबाजों को फायदा मिलेगा." फ्लेचर ने कहा कि जब उन्होंने सुरेश रैना को संघर्ष करते देखा तो दुकान बंद कर देने का फैसला किया.

Indien Suresh Raina
तस्वीर: AP

भारतीय कोच का कहना है, "हमने रैना को बल्लेबाजी क्रम में ऊपर भेजा लेकिन उसके लिए भी मुश्किल हो रही थी. अगर लेग स्पिनर के सामने एक बाएं हाथ का बल्लेबाज संघर्ष कर रहा है, तो फिर कोई फायदा नहीं था. टेस्ट क्रिकेट में चार रन प्रति ओवर की गति से स्कोरिंग भी मुश्किल है." हालांकि भारत को मुख्य रूप से 47 ओवर में 180 रन बनाने की चुनौती मिली थी लेकिन 32 ओवर में वह तीन विकेट पर 94 रन ही बना पाया.

फ्लेचर ने भारतीय कप्तान के फैसले को सही ठहराया, "अगर वह आसानी से बल्लेबाजी करते और एक दो चौके जड़ते तो हम कोशिश कर सकते थे. लेकिन विजय और द्रविड़ दोनों का कहना था कि विकेट पर खड़े होकर रन बनाना आसान नहीं था. अगर कोई बल्लेबाज 22 ओवर खेल कर 40 रन बना पा रहा है और उसके बाद भी संघर्ष कर रहा है, तो फिर आप बचे हुए रन कैसे बना सकते हैं. मेरे ख्याल से यह कॉमनसेंस है."

फ्लेचर का कहना है कि भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी नहीं थे फिर भी उसने ट्वेन्टी 20, वनडे और टेस्ट मैचों की सीरीज जीत ली है. भारतीय टीम को अब 21 जुलाई से इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट मैच खेलना है.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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