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क्या चीन रूस और यूक्रेन के बीच शांति कायम कर सकता है?

विलियम यांग
१२ मार्च २०२२

पश्चिमी नेताओं को उम्मीद है कि रूस और यूक्रेन के विवाद में चीन मध्यस्थ बन कर सक्रिय भूमिका निभाएगा, लेकिन विशेषज्ञों को इसकी इसकी संभावना नहीं दिख रही है. उनका मानना है कि चीन रूस के साथ रिश्तों में जोखिम नहीं लेगा.

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व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग
व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंगतस्वीर: Alexei Druzhinin/Sputnik/Kremlin Pool Photo via AP/picture alliance

यूक्रेन में जारी युद्ध के दौर में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता को सुगम बनाने की कोशिशों में लगा हुआ है. दोनों पक्षों ने अब तक कई दौर की बातचीत की है, लेकिन इन वार्ताओं का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है.

कई देशों ने रूस और यूक्रेन के बीच वार्ता को सार्थक और सुविधाजनक बनाने में मदद के लिए बार-बार चीन की ओर देखा है. हालांकि चीन ने फिलहाल इस बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है कि वह यूक्रेन में आए संकट को समाप्त करने में अपनी भूमिका को बढ़ाने का इच्छुक है या नहीं.

पिछले हफ्ते एक स्पेनिश अखबार एल मुंडो  को दिए एक इंटरव्यू में यूरोपीय संघ की विदेश नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल ने कहा कि वो शांति वार्ता में चीन की मध्यस्थता के पक्ष में हैं. वो कहते हैं, "इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं है. हम मध्यस्थ नहीं हो सकते, यह स्पष्ट है और अमेरिका भी मध्यस्थ नहीं हो सकता. फिर कौन? चीन को ही मध्यस्थ होना चाहिए.”

उसके बाद सोमवार को, चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दोनों पक्षों से बातचीत करने, शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को सुलझाने और ‘सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान और रक्षा करने' का आह्वान किया. उन्होंने बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करने से इनकार करते हुए रूस को चीन का ‘सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार' बताया.

वांग ने चीन की संसद की वार्षिक बैठक के मौके पर एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा, "अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य कितना भी खतरनाक क्यों ना हो, हम अपना रणनीतिक फोकस बनाए रखेंगे और नए युग में व्यापक चीन-रूस साझेदारी के विकास को बढ़ावा देंगे.”

क्या चीन स्वेच्छा से मध्यस्थ बनेगा?

मंगलवार को, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूक्रेन में युद्ध के बारे में चिंता जताते हुए कहा कि संघर्ष को ‘नियंत्रण से बाहर होने' से रोकना ही हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. शी जिनपिंग का यह बयान फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ हुई वर्चुअल बैठक के बाद आए हैं.

चीनी सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में, शी जिनपिंग ने ‘अधिकतम संयम' का आह्वान करते हुए कहा कि  "सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए, सभी देशों की वैध सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और संकट के शांतिपूर्ण समाधान के लिए सभी अनुकूल प्रयासों का समर्थन किया जाना चाहिए.”

जर्मन सरकार के एक प्रवक्ता ने मंगलवार को कहा कि चांसलर शॉल्त्स, फ्रांस के राष्ट्रपति माक्रों और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग युद्ध के कूटनीतिक समाधान के लिए सभी प्रयासों का पूरा समर्थन करने पर सहमत हुए हैं.

मॉस्को में रूसी अंतर्राष्ट्रीय मामलों की परिषद के एक विशेषज्ञ डैनियल बोचकोव कहते हैं कि यह संभावना नहीं है कि चीन यूक्रेन और रूस के बीच स्वेच्छा से मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए सहमत होगा क्योंकि ऐसा करना चीन को अंतरराष्ट्रीय निगरानी के केंद्र में रख सकता है.

डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि चीन एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करके खुद के लिए कोई टकराव मोल लेगा. ऐसा करके निश्चित तौर पर वह दुनिया की निगाह में आएगा और सभी पक्ष उसके हर कदम की जांच कर रहे होंगे.”

जर्मन मार्शल फंड के एक वरिष्ठ फेलो एंड्रयू स्मॉल कहते हैं कि चीन शांति की इच्छा व्यक्त करने से परे कोई कदम उठाने को तैयार नहीं है, क्योंकि रूस जो करना चाहता है, चीन उसमें सीधे हस्तक्षेप करने से बच रहा है. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि चीन की भावना अभी भी यही है कि वह रूस को उसकी इच्छा के अनुरूप काम करने की छूट देगा.”

स्मॉल के मुताबिक, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे कुछ देशों के मामलों में चीन मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए इसलिए तैयार था क्योंकि इन्हें वह ‘छोटे भाई' जैसा समझता है और कुछ हद तक इन पर अपने हिसाब से दबाव भी बना सकता है. लेकिन रूस के साथ ऐसा नहीं है. वो कहते हैं, "रूस पर चीन का झुकाव सहज नहीं है, और मुझे लगता है कि वे सवाल भी करेंगे कि क्या यह सफल होगा.”

चीन ओर रूस के बीच घनिष्ठ संबंध

हाल के महीनों में चीन और रूस के बीच सम्बंध बहुत प्रगाढ़ हुए हैं. पिछले महीने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच व्यक्तिगत मुलाकात के बाद दोनों नेताओं ने संकल्प लिया कि दोनों देशों की दोस्ती की ‘कोई सीमा नहीं है'.

कुछ विश्लेषकों ने सोमवार को चीन और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों की चीनी विदेश मंत्री की पुष्टि और पिछले महीने जारी संयुक्त बयान को संकेत के रूप में इंगित करते हुए कहा है कि चीन, रूस के सामने आने वाली कठिन स्थिति के बावजूद उसके साथ अपने संबंधों को खतरे में डालने के लिए तैयार नहीं होगा.

बीजिंग स्थित रेनमिन विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफेसर शी यिनहोंग कहते हैं, "पुतिन की मजबूत उग्रवादी इच्छाशक्ति, अपने ‘न्यूनतम युद्ध के लक्ष्यों' को महसूस करने की सख्त जरूरत और सामान्य तौर पर उनके साथ रणनीतिक और सैन्य साझेदारी पर चीन की निर्भरता को ध्यान में रखते हुए, कोई भी गंभीरता से संदेह कर सकता है कि चीन पर्याप्त संयम की भूमिका निभाने में सक्षम या इच्छुक है.”

कुछ अन्य लोगों को लगता है कि रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखना चीन के लिए कई तरह से उपयोगी हो सकता है.

बर्लिन स्थित मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज (MERICS) में यूरोपीयन-चाइना पॉलिसी फेलो, सारी अरहो हैवरन कहती हैं कि दोनों देशों के बीच साझेदारी वैश्विक व्यवस्था को आकार देते हुए चीन के भू-राजनीतिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है. इसके अतिरिक्त, रूस में बिगड़ती आर्थिक स्थिति चीन के लिए संभावित निवेश के अवसर खोल सकती है.

वो कहती हैं, "यह चीन के लिए रूस में रणनीतिक क्षेत्रों में निवेश के नए अवसर खोल सकता है. ये संभावित अवसर भविष्य में चीन की ऊर्जा और कच्चे माल की जरूरतों को सुरक्षित कर सकते हैं और पश्चिमी देशों पर इनकी निर्भरता को कम करने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता को मजबूत कर सकते हैं.” 

पश्चिमी देशों की उम्मीद गलत

जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के एक वरिष्ठ साथी दीदी कर्स्टन टैटलो कहती हैं कि विश्व के नेताओं की चीन से यूक्रेन में शांति प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की उम्मीदें ‘गलत' हैं.

वो कहती हैं, "मुझे लगता है कि शी जिनपिंग के एक तटस्थ और प्रभावी मध्यस्थ होने की उम्मीद काफी गलत है. भले ही चीन तात्कालिक तौर पर मध्यस्थता करने में मदद करे, लेकिन यह किसी को ऐसी स्थिति पर नियंत्रण करने  मौका देने जैसा होगा जो लोकतांत्रिक देशों के लिए अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण है. मुझे लगता है कि लोकतांत्रिक देश यहां खुद को बहुत कमजोर स्थिति में डाल रहे हैं.”

रूसी मामलों के जानकार बोचकोव जोर देकर कहते हैं कि रूस अब जो कर रहा है वह फरवरी में जारी संयुक्त बयान में बताए गए लक्ष्यों के अंतर्गत ही आता है, जिसका मतलब अमेरिका के प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था को बदलना है.

वो कहते हैं, "चूंकि रूस और चीन इस बात से सहमत हैं कि मौजूदा यूक्रेन संकट अमेरिका और नाटो के उकसावे पर हुआ है, इसलिए रूस को चीन के मौन समर्थन में कोई आश्चर्य नहीं है.”

जहां कुछ लोगों को उम्मीद है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपने प्रभाव का इस्तेमाल वार्ता की मेज पर पुतिन को आगे बढ़ाने के लिए कर सकते हैं, वहीं बोचकोव का मानना ​​है कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति पुतिन को अपने प्रभाव में नहीं ले सकता है, जब तक कि वो खुद ना चाहें.

विशेषज्ञ कहते हैं, "पुतिन ने यह सब खुद शुरू किया है और वह इसे अंत तक पहुंचाने के लिए दृढ़ संकल्प हैं. सवाल यह नहीं है कि कौन उन्हें प्रभावित कर सकता है, बल्कि मामला यह है कि अब वो यह तय कर रहे हैं कि अपने ही निर्धारित लक्ष्यों को वो कैसे हासिल करना है.”

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