ईयू को नोबेलः मजाक है क्या
१२ अक्टूबर २०१२ग्रीस की राजधानी एथेंस की सड़क पर जब 36 साल की किरीसोला पानागियोतिडी से इस बारे में प्रतिक्रिया करने को कहा गया तो उन्होंने कहा, "यह तो सिर्फ मजाक है न?" सिर्फ तीन दिन पहले बेरोजगार हुई पानागियोतिडी से जब कहा गया कि नहीं, यह मजाक नहीं, बल्कि बिलकुल सही है, तो उनका गुस्सा फूट उठा, "यह सिर्फ हमारा गुस्सा और बढ़ाएगा. हर आदमी इससे ज्यादा गुस्से होगा."
यूरोपीय संघ के एक अहम देश ग्रीस की एक चौथाई आबादी बेरोजगार है और हाल का आर्थिक संकट लोगों Dublin Stadtansichtको परेशान किए हुए है. कई लोगों का मानना है कि यूरोपीय संघ की खराब नीतियों की वजह से ही महाद्वीप में वित्तीय संकट आया है.
ग्रीस की ही तरह आयरलैंड भी इस एलान से हक्का बक्का है. राजधानी डबलिन की लिफी नदी के किनारे टहलते हुए 48 साल के फिलिप डीन का कहना है, "मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा है. मेरे लिए इस लिस्ट में वह आखिरी थे. यह एक बेकार और निष्क्रिय संगठन है." उनका कहना है कि इसकी टाइमिंग तो बहुत खराब है.
दोनों देशों को यूरोपीय संघ के नियमों और दबाव की वजह से वित्तीय सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे हाथ फैलाना पड़ा है.
एथेंस की सड़क पर लॉटरी बेचने वाले 69 साल के मारियाना फोतियू का कहना है, "यह मुझे बहुत गुस्सा दिला रहा है. हमारे सामने वित्तीय युद्ध चल रहा है. उन्हें यह दिखता नहीं क्या. इससे सिर्फ मैर्केल को नैतिक बल मिलेगा."
उनका इशारा जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल की तरफ था, जिन्होंने इसी हफ्ते ग्रीस का दौरा किया है और जिन्हें एथेंस में नाजी झंडे दिखाए गए. वहां प्रदर्शनकारियों और पुलिस की झड़प भी हुई.
जिस वक्त यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार मिला है, उसी वक्त कई सदस्य देशों की राजधानियों में हिंसक झड़पें हो रही हैं. पुरस्कार का एलान करते हुए इस बात को ध्यान में रखा भी गया. नोबेल शांति समिति ने कहा, "यूरोपीय संघ में इस समय वित्तीय मुश्किलें हैं और सामाजिक अस्थिरता भी है. लेकिन नॉर्वे की समिति यह देखना चाहती है कि संघ ने क्या किया. उसने शांति और लोकतंत्र और मानवाधिकार के लिए संघर्ष किया."
सिर्फ वित्तीय संकट वाले देश ही नहीं, बल्कि यूरोप के मजबूत और दिग्गज देश भी इस पुरस्कार का मजाक उड़ा रहे हैं. ब्रिटेन के विपक्षी नेता एड बेल ने डबलिन में कहा, "लगता है कि वे आज रात एथेंस में जश्न मनाने वाले हैं."
अलग अलग राय
हालांकि आयरलैंड जैसे देशों में कई लोग ऐसे भी हैं, जिनका कहना है कि वे कम से कम जिंदा तो हैं. 48 साल के होवर्ड स्पीलेन का कहना है, "यूरोप संकट में है लेकिन अगर युद्ध से तुलना की जाए या शीत युद्ध से तुलना की जाए, तो यूरोप बेहतर जगह है. लोग मुश्किल में हैं लेकिन मर नहीं रहे हैं."
पूर्वी यूरोप के कुछ देशों में भी इस तरह की भावना देखी गई, खास तौर पर उन देशों में, जिन्हें मुश्किल से यूरोपीय संघ की सदस्यता मिली. हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में 18 साल की छात्रा आंद्रेस कोकसिस का कहना है, "मुझे खुशी हो रही है लेकिन इस फैसले पर अजीब भी लग रहा है. मुझे लगता है कि यूरोपीय संघ ने लोगों के अधिकारों के लिए बहुत कुछ किया है."
लेकिन ऐसे देश भी हैं, जहां लोगों को इस फैसले पर खुशी नहीं. चेक गणराज्य में राष्ट्रपति वाकलाव क्लास के दफ्तर के दूसरे नंबर के अधिकारी पीटर हायेक ने कहा कि यूरोपीय संघ को लोकतांत्रिक वैधता नहीं है और यह राष्ट्रों के बीच द्वेष बढ़ा रहा है, "स्वतंत्रता और लोकतंत्र एक किनारे खड़े होकर कांप रहे हैं. वैसा ही लग रहा है, जैसा हमें 20वीं सदी में लगा करता था."
बोस्निया ने भी इस फैसले का स्वागत नहीं किया. वहां जब 1990 के दशक में युद्ध चल रहा था, तो समर्थन के मुद्दे पर यूरोपीय संघ बंटा हुआ था. 1995 में सर्ब सैनिकों के हाथों बोस्निया के 8000 मुसलमान मारे गए. कादा होतिच के दो भाई, पति और बेटे को इस हिंसा ने लील लिया था. उनका कहना है, "यूरोपीय संघ पर इस बात का उत्तरदायित्व है कि यूरोप में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करे. लेकिन वह बोस्निया में ऐसा नहीं कर पाया. वह आज भी ऐसा नहीं कर पा रहा है."
एजेए/एएम (रॉयटर्स)