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साहित्य

हाइनरिष बोएलः द लॉस्ट ऑनर ऑफ कातारीना ब्लूम

सबीने कीजेलबाख
९ जनवरी २०१९

उन्माद और सत्ता-दुरुपयोग की दास्तान. 1970 के दशक की डिजिटल-पूर्व दुनिया की ये किताब, इसलिए सामयिक बनी हुई है क्योंकि ये झूठ, मक्कारी, छल और मीडिया घात की कहानी सुनाती है.

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Heinrich Böll Schriftsteller
तस्वीर: picture-alliance/H. Wieseler

हाइनरिष बोएल को बहुत अपमानित किया गया था. उन्हें आतंकवाद का हमदर्द बताया गया, लेखक की तुलना हिटलर के प्रचार मंत्री योसेफ गोएबेल्स तक से की गई थी. बोएल के निधन पर जारी एक श्रद्धांजलि में कहा गया था कि "अच्छा इंसान होने की उनकी खूबी ने ही उनकी साहित्यिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया था.”

हाइनरिष बोएल वास्तव में क्या थे? सामाजिक मुद्दों में मुब्तिला और उनके बारे में लिखने वाला एक समर्पित लेखक, युद्ध पश्चात संघीय जर्मन गणराज्य पर जिसकी निर्णायक छाप पड़ी थी. एक नैतिक शक्ति के रूप में मान्य बोएल ने गुंटर ग्रास और मार्टिन वाल्सर जैसे समकालीन साहित्यकारों के साथ काम किया था और दूसरे विश्वयुद्ध को घेरे हुए सन्नाटे के खिलाफ लेखन किया था. तीनों 1968 की पीढ़ी के विद्रोह में शामिल थे और उसी लिहाज से वामपंथी अतिवादियों के इरादों को समझना चाहते थे, उन्हें वर्गीकृत करते हुए या जैसा कि उनके आलोचक कहते हैं उन्हें "कमतर” दिखाते हुए.

उनकी सबसे कामयाब साहित्यिक रचना के इर्दगिर्द होती बहस और उस कार्य की पृष्ठभूमि को समझने के लिए हाइनरिष बोएल की भूमिका और उनके समय की परिस्थितियों को जानना महत्त्वपूर्ण है. बोएल को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलने के दो साल बाद 1974 में "द लॉस्ट ऑनर ऑफ कातारीना ब्लूम” प्रकाशित हुआ था. सिर्फ जर्मनी में ही इस किताब की अब तक चालीस लाख प्रतियां बिक चुकी हैं.

सनसनीखेज मीडिया पर आक्षेप

किताब के अंग्रेजी संस्करण की प्रस्तावना में जो खुलासा है वो दूसरी गल्प रचनाओं से अलग नहीं है. "इस कहानी के सभी पात्र और कार्य पूरी तरह काल्पनिक हैं...” लेकिन जर्मन संस्करण में लेखक एक कदम आगे जाकर ये नोट करता है कि अगर किसी विशेष पत्रकारीय तौर तरीके से निकला कोई जिक्र, बिल्ड अखबार के तौर तरीकों से मिलता जुलता है, तो उसकी वजह ये है कि वे न तो संयोग से आए हैं न जानबूझकर, बल्कि इसलिए कि उनकी अनदेखी करना कठिन था.

किताब के प्रकाशन से पहले, बोएल और उनके परिवार पर ‘आतंक के संदिग्ध की तलाश' जैसी खबरों के जरिए निशाना साधा गया था. इसके बाद जर्मनी के सबसे बड़े टैबलॉयड बिल्ड ने उन पर हिंसा को महिमामंडित करने और हमलों की योजना में मिलीभगत का गलत आरोप लगाया था.

किताब के मूल प्रकाशन के दस साल बाद उसके समापन पृष्ठ पर हाइनरिष बोएल ने लिखा था कि अपने आख्यान को वो एक नैरेटिव पैंफलेट की तरह देखते हैं, 1970 के दशक में सनसनीखेज पत्रकारिता पर एक शास्त्रार्थ की तरह. लेकिन "द लॉस्ट ऑनर ऑफ कातारीना ब्लूम” महज इसी विवाद पर केंद्रित नहीं था, वो इससे कहीं अधिक था.

'The Lost Honour of Katharina Blum' by Heinrich Böll

बदले की फंतासी?

युवा कातारीना ब्लूम की कहानी एक तथ्यपरक रिपोर्ट की तरह पेश की गई है, अपनी भाषा में गंभीर और निर्विकार.

बोएल वर्णन करते हैं कि कैसे अभी तक पहुंच से दूर युवती टैबलॉयड प्रेस का शिकार बन जाती है, सिर्फ इसलिए कि उसने एक रात एक ऐसे आदमी के साथ बिताई थी जिसकी पुलिस को तलाश है. द साईटुंग, जैसा कि उपन्यास में अखबार का नाम बताया गया है, ये मानता है कातारीना ब्लूम भावशून्य और मतलबी है, एक आतंकी दुल्हन जिसने अपने प्रेमी को भागने में मदद की, ये जानते हुए भी कि वो हत्या का अभियुक्त है. एक खुशामदी रिपोर्टर कातारीना की निजी जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा दखल देने लगता है, पड़ोसियों के सामने उसकी तौहीन करता है, और अखबार में उसके बारे में निर्लज्ज झूठ बोलने के लिए उन्हें पटा लेता है.

70 के दशक के सरगर्म माहौल में, कातारीना ब्लूम को अश्लील, नफरत भरे फोन और खत आते हैं. कातारीना की सख्त रूप से बीमार और अस्पताल में भर्ती मां अपनी बेटी के खिलाफ आरोपों का जवाब देते रहने पर मजबूर की जाती है, आखिरकार वो अस्पताल में दम तोड़ देती है. गुस्से, क्षोभ और विषाद में कातारीना उस रिपोर्टर को खत्म कर देती है जो उसके पीछे पड़ गया था.

"द लॉस्ट ऑनर ऑफ कातारीना ब्लूम” को बदले की भावना पर आधारित उपन्यास कहा जा सकता है. एक उपन्यासकार की घुमावदार फंतासी, जो खुद भी एक मीडिया मुहिम का शिकार बना था. लेकिन इस किताब में यही सब होता तो ये इतनी सफल न होती और वैसे भी इससे किताब की आज तक जारी सफलता के राज का पता नहीं चलता है.  इस पर जर्मन भाषा में फिल्म भी बनी और अमेरिकी टीवी के लिए भी इसे फिल्माया गया.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Steinberg

बोएल ने अपने उपन्यास के कथानक के जरिए ये दिखाया कि भाषा को कैसे तोड़ा मरोड़ा जा सकता है और भाषा खुद कैसे हेरफेर करती है. मिसाल के लिए वकीलों और जांच अधिकारी की पूछताछ में कातारीना ब्लूम शब्दावली में सूक्ष्म अंतरों पर जोर देती है. 

"परिभाषा को लेकर सरकारी वकीलों से और बाएसमेने से उसकी तीखी बहस छिड़ गई. कातारीना का जोर इस बात पर था कि ‘कामुक होना' में आदान-प्रदान अंतर्निहित है जबकि ‘इशारे देना' एकतरफा मामला होता है और यही होता आ रहा था.  उससे सवाल करने वालों ने कहा कि उनकी नजर में ये बात उतनी अहम नहीं है और ये उसकी ही गलती होगी अगर पूछताछ तय समय से लंबी खिंच जाए, लेकिन कातारीना डटी रही और उसने ऐसे किसी बयान पर दस्तखत करने से मना कर दिया जिसमें ‘इशारे देना' की जगह ‘कामुक होना' शब्द रखा गया हो. इसी तरह की बहसें ‘कृपालु' शब्द पर भी उठीं जो कि ब्लोरनाज के लिए प्रयुक्त हुआ था. रिकॉर्ड में ये शब्द दर्ज थे, ‘मेरे प्रति शिष्ट.' ब्लूम ने ‘कृपालु' शब्द पर जोर दिया और जब ‘कृपालु' शब्द को कुछ पुराने जमाने का जैसा मानते हुए उसकी जगह ‘दयालु' शब्द रखने का सुझाव आया तो, ब्लूम क्रोधित हो उठी  और उसने ऐलान किया कि ‘शिष्टता' और ‘दयालुता' का ‘कृपा' से कोई लेनादेना नहीं है.”

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उपन्यास पर फिल्म भी बनीतस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Dürrwald

आज भी प्रासंगिक

हाइनरिष बोएल का उपन्यास, "कातारीना ब्लूम का खोया सम्मान,” बहुत सफल हुआ. इसके प्रकाशन के कुछ हफ्तों बाद, कुछ अखबारों ने राजनीतिक अवसरवाद का फायदा उठाते हुए बेस्टसेलर लिस्टें नहीं छापीं क्योंकि लेखक और उसकी किताब सबसे टॉप पर थे. बोएल का लेखन एकदम सही जगह पर चोट करता था. और आज भी ये दर्द देता है. इंटरनेट के युग में, ये सिर्फ एक खास अखबार की बात नहीं रह गई है. भाषा का गलत इस्तेमाल और चुनिंदा व्यक्तियों की मानहानि जैसी चीजें हम आज कमोबेश रोजाना ही देख रहे हैं.

हाइनरिष बोएलः कातारीना ब्लूम का खोया सम्मान, विंटेज बुक्स/रैंडम हाउस (जर्मन शीर्षकः डी फरलोरेने एयरे डेय कातारीना ब्लूम), 1974

हाइनरिष बोएल (1917-1985) युद्धोतर काल के सबसे महत्त्वपूर्ण जर्मन लेखकों में एक थे. ‘संवेदनशील समानुभूति वाली समकालीन ऐतिहासिक दृष्टि' के लिए उन्हें 1972 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया. उनके सबसे प्रसिद्ध उपन्यासों में "बिलियर्ड्स एट हाफ पास्ट नाइन,”  "क्लाउन्स व्यूज,” और "ग्रुप पोर्ट्रेट विद अ लेडी” शामिल हैं.

अनुवादः शिवप्रसाद जोशी

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