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हाइड्रोजन और अक्षय ऊर्जा का बड़ा खिलाड़ी बनेगा मिस्र

सर्जियो मातालुची
२१ अक्टूबर २०२२

मिस्र इस साल नवंबर में शर्म अल शेख के जलवायु सम्मेलन में ग्रीन हाइड्रोजन के लिए नई ऊर्जा रणनीति पेश करेगा. इससे मिस्र की भू-राजनीतिक स्थिति मजबूत हो सकती है. साथ ही, देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिल सकेगी.

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मिस्र का सोलर पार्क
अक्षय ऊर्जा और हाइड्रोजन के क्षेत्र में बड़ा निवेश कर रहा है मिस्रतस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/picture alliance

दुनिया भर के देश तेजी से ऊर्जा के विश्वसनीय स्रोतों की तलाश कर रहे हैं. रूस तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन को कम कर रहा है. ऊर्जा का पारंपरिक स्रोत कोयला इतना ज्यादा प्रदूषण फैलाता है कि ज्यादातर देश इसके इस्तेमाल को बंद या कम करने के लिए नवीकरणीय स्रोत पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. साथ ही, ग्रीन हाइड्रोजन जैसे दूसरे विकल्पों के इस्तेमाल पर विचार किया जा रहा है.

नवीकरणीय ऊर्जा का पावरहाउस बनने के लिए जरूरी कई संसाधन मिस्र में उपलब्ध हैं. जैसे, एक बड़ा घरेलू बाजार, पर्याप्त मात्रा में सूरज की रोशनी और स्वेज की खाड़ी में बहने वाली तेज हवाएं. सबसे बड़ी जो कमी दिख रही है वह है सरकारी सहायता. हालांकि, पिछले कुछ महीनों में सरकार भी ग्रीन हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिए आगे आयी है.

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यूरोपीय बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट में दक्षिणी और पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र के प्रबंध निदेशक हाइके हार्मगार्ट ने डीडब्ल्यू को बताया, "मिस्र की सरकार का पर्याप्त धन के साथ आगे बढ़ना, ग्रीन हाइड्रोजन के लिए समुद्री खारे पानी को इस्तेमाल के लायक बनाने को प्राथमिकता देना, और विशेष आर्थिक क्षेत्रों को बढ़ावा देना सभी महत्वपूर्ण कदम हैं."

विशेषज्ञों का अनुमान है कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ पहले से ही कम से कम दो दर्जन समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं, ताकि कॉप 27 के दौरान ढांचागत समझौतों के साथ आगे बढ़ा जा सके. अगला जलवायु सम्मेलन 6 से 18 नवंबर तक मिस्र के शर्म अल शेख में होने वाला है. हार्मगार्ट ने कहा कि इस सम्मेलन के दौरान मिस्र की सरकार ग्रीन हाइड्रोजन की अपनी रणनीति पेश करेगी.

ग्रीन हाइड्रोजन की दिशा में कदम बढ़ा रहा है मिस्र
यूरोज ग्रीन हाइड्रोजन के साथ ज्यादा स्टील के उत्पादन के लिए दबाव बना रहा हैतस्वीर: Åsa Bäcklin/SSAB

विदेशी निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी

यूरोपीय बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट ने कंपनियों की दिलचस्पी की ओर ध्यान दिलाया है. यह बैंक लंदन में है जो विकास से जुड़ी परियोजनाओं में निवेश करता है और उसे कानूनी सहायता उपलब्ध कराता है. भारत के निवेशकों ने इसकी पुष्टि की है.

भारत की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनियों में से एक रीन्यू पावर के अध्यक्ष और सीईओ सुमंत सिन्हा ने कहा, "हम कॉप 27 के दौरान समझौते को अमल में लाने के लिए मिस्र के अधिकारियों के साथ काम कर रहे हैं, ताकि ढांचागत समझौते पर सभी पक्ष सहमत हो सकें.”

सिन्हा ने कहा कि कई साझेदारों की भागीदारी को देखते हुए, रिन्यू पावर को उम्मीद है कि अगले तीन से छह महीनों में परियोजना को शुरू करने से जुड़े जरूरी काम पूरे हो जाएंगे. कंपनी 2023 के मध्य तक निवेश से जुड़ा फैसला ले सकती है. कथित तौर पर रीन्यू पावर ने मिस्र में हाइड्रोजन परियोजनाओं में 7 अरब डॉलर से अधिक निवेश करने की योजना बनाई है.

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काहिरा में रहने वाले ऊर्जा सलाहकार अली हबीब सरकार की ग्रीन एनर्जी योजनाओं की ओर ध्यान दिलाते हैं. उन्होंने कहा, "हमने हवा और पीवी [फोटोवोल्टिक] के लिए नील नदी के किनारे जमीन का बड़ा टुकड़ा आवंटित किया है. क्षेत्रफल के हिसाब से यह इलाका सिंगापुर से भी बड़ा है. इस ग्रीन बिजली को आइन सोखना बंदरगाह के हाइड्रोजन प्रोजेक्ट तक पहुंचाने के लिए विशेष ट्रांसमिशन लाइनें होंगी.”

स्कैटेक एक और कंपनी है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह भी नवंबर में समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है. नॉर्वे की यह नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी वर्तमान में 100 मेगावाट की ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना विकसित कर रही है. इसके लिए उसे मिस्र की सरकार से वित्तीय मदद मिली है. मिस्र की निर्माण कंपनी ओर्सकॉम और संयुक्त अरब अमीरात की नाइट्रोजन उर्वरक उत्पादक कंपनी फर्टिग्लोब भी स्कैटेक के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है.

स्कैटेक के प्रतिनिधि ने डीडब्ल्यू को बताया, "साझेदारों के साथ मिलकर हम मिस्र में ग्रीन अमोनिया प्लांट बनाने के शुरुआती चरण में काम कर रहे हैं. इसकी उत्पादन क्षमता सालाना 10 लाख टन है जिसे बढ़ाकर 30 लाख टन किया जा सकता है.”

अक्षय ऊर्जा का बड़ा खिलाड़ी बनने की तैयारी में मिस्र
अक्षय ऊर्जा के लिहाज से मिस्र में प्राकृतिक संसाधन भरपूर हैंतस्वीर: Joerg Boethling/imago images

जुड़ रहे हैं नए साझेदार

मिस्र यूरोपीय संघ के देशों और जापान के साथ-साथ चीन और रूस के साथ भी अच्छे संबंध बनाये रखना चाहता है. इसके अलावा, ऐसी कंपनियों के साथ भी कारोबार करना चाहता है जो अभी तक देश में मौजूद नहीं हैं. निवेश के इस दौर में भारत, ऑस्ट्रेलिया, सऊदी अरब और यूएई की कंपनियां आगे आ सकती हैं.

इसके लिए व्यापक तौर पर प्रयास किया जा रहा है. मिस्र यूरोप पर निर्भरता कम करने के लिए नए संबंध बना कर अफ्रीकी महाद्वीप के अन्य देशों के सामने एक विकास मॉडल पेश करना चाहता है. साथ ही, अपनी भू-राजनीतिक भूमिका को मजबूत बनाना चाहता है.

हालांकि, अमोनिया के रूप में निर्यात किए जाने वाले हाइड्रोजन के लिए यूरोपीय संघ मिस्र का सबसे बड़ा संभावित बाजार बना हुआ है. भारत के एसीएमई समूह के सीईओ रजत सेक्सारिया ने डीडब्ल्यू को बताया, "मिस्र से ग्रीन अमोनिया यूरोप और दुनिया के पूर्वी देशों के उपभोक्ताओं के पास जाने की ज्यादा संभावना है.”

विशेषज्ञ और कंपनियां इस बात से सहमत हैं कि यूरोपीय बाजार सबसे अधिक आकर्षक हैं. इसकी एक वजह यह भी है कि वे काफी करीब हैं.

ऑक्सफोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी स्टडीज ने मिस्र में हाइड्रोजन ऊर्जा की संभावनाओं पर शोध लेख प्रकाशित किया है. इसके सह-लेखक हबीब ने कहा, "हाइड्रोजन के लिए सबसे बड़ी बाधा उत्पादन नहीं, बल्कि इसका भंडारण और इसे एक-जगह से दूसरी जगह ले जाने से जुड़ी समस्या है.”

अक्षय ऊर्जा का बड़ा खिलाड़ी बनने की तैयारी में मिस्र
मिस्र में धूप और तेज हवाएं भरपूर मात्रा में मौजूद हैंतस्वीर: picture alliance/Rainer Hackenberg

बाधाएं बनी रहती हैं

विशेषज्ञों के मुताबिक, मिस्र के ग्रीन प्रोजेक्ट आने वाले समय में पवन ऊर्जा के विकास को सहायता प्रदान करेंगे. हालांकि, हाल के समय में विंड टरबाइन बनाने वाली कुछ कंपनियों को समस्याओं का सामना करना पड़ा है.

ऑस्ट्रेलिया की फोर्टस्क्यू फ्यूचर इंडस्ट्रीज मिस्र के साथ हाइड्रोजन समझौते पर हस्ताक्षर करने वाली कंपनियों में शामिल है. यह कंपनी नवीकरणीय ऊर्जा की कंपनियों के लिए जरूरी संसाधन के उत्पादन में प्रत्यक्ष निवेश करने की कोशिश कर रही है.

फोर्टस्क्यू फ्यूचर इंडस्ट्रीज के मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के अध्यक्ष मोआताज कंदील ने डीडब्ल्यू को बताया, "हम इलाके या देश की जरूरत के हिसाब से उत्पादन करने की कोशिश कर रहे हैं. खासकर अमेरिका जैसी जगहों पर जहां मुद्रास्फीति में कमी जैसे अधिनियम पारित किए गए हैं. हम ऑस्ट्रेलिया में पहले से ही ऐसा कर रहे हैं.”

कंपनी पहले ही ग्रीन हाइड्रोजन के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुकी है. जिन कंपनियों के साथ समझौता किया जा चुका है उनमें जर्मनी की बिजली ऊर्जा कंपनी ई.ऑन और बेल्जियम की टीईएस शामिल हैं. कंदील ने कहा, "ग्राहक यह तय करेंगे कि किस जगह से हाइड्रोजन आएगा.” जर्मनी को यह फैसला लेना बाकी है, क्योंकि टीईएस विलहेम्सहॉफेन में ग्रीन एनर्जी हब को विकसित कर रही है.

हार्मगार्ट के अनुसार, मिस्र को अपने स्थानीय ऊर्जा संयंत्रों में गैस का इस्तेमाल करने के बजाय उसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने पर ज्यादा फायदा है. वहीं दूसरी ओर, ग्रीन हाइड्रोजन स्थानीय कंपनियों का पसंदीदा विकल्प नहीं है.

हबीब ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर यूरोपीय संघ ज्यादा कार्बन फुटप्रिंट के आयात पर कर लागू करेगी, तो चीजें बदल सकती हैं. उन्होंने कहा, "मिस्र में गैस की कीमत यूरोप की तुलना में बहुत कम है. ऐसे में स्थानीय उद्योगों के लिए ग्रीन हाइड्रोजन पर स्विच करने का कोई मकसद नहीं है.”

प्लास्टिक की बोतलों से बनाया गया स्कूल

हाइड्रोजन उत्पादन के लिए नए अवसर

हालांकि दूसरी ओर, मिस्र इस समय यूरोपीय संघ के साथ हाइड्रोजन समझौते पर बातचीत कर रहा है. यूरोपीय आयोग को उम्मीद है कि नवंबर में होने वाले सम्मेलन में इस दिशा में बातचीत आगे बढ़ सकती है.

यूरोपीय बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट के अनुसार, यूरोपीय संघ की कच्चे माल से जुड़ी रणनीति को लेकर जो बैठक होने वाली है उसमें भी मिस्र अहम भूमिका निभा सकता है. हार्मगार्ट ने कहा, "निवेशकों के आने और विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की वजह से आने वाले समय में मिस्र के प्रति आकर्षण बढ़ेगा.” 

विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने से निवेशकों को बेहतर सुविधा मिलती है, नौकरशाही से निजात मिलती है और विदेशी निवेशकों को प्रोत्साहित करने वाला माहौल बनता है. स्थानीय स्तर पर इस्पात के उत्पादन में भी इसका फायदा देखने को मिल सकता है.

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस के विश्लेषक सोरौश बसीरत ने कहा, "कुछ सबसे बड़े इस्पात संयंत्र स्वेज नहर के पास हैं. इस वजह से, ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना और उन्हें उन संयंत्रों में ट्रांसफर करना आसान हो जाएगा. हाइड्रोजन को एक-जगह से दूसरे जगह ले जाना उन देशों के लिए समस्या है जो घरेलू स्तर पर इसका उत्पादन नहीं कर सकते हैं.”