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समाज

खापों के राज्य में बेटियां नहीं हैं महफूज

२२ जनवरी २०१८

ऐसा एक भी दिन नहीं गुजर रहा, जब हरियाणा से महिलाओं के साथ दुष्कर्म की खबर ना आ रही हों. क्या वजह है कि हरियाणा औरतों के लिए इतना खतरनाक बन गया है?

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Indien Pakistan Symbolbild Vergewaltigung
तस्वीर: Getty Images

हरियाणा में सब कुछ ठीक नहीं है. 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान के सरकारी शोर के बीच राज्य में लगातार हो रही दुष्कर्म और हत्या की घटनाओं ने मनोहर लाल खट्टर सरकार के महिला सुरक्षा के दावों की पोल खोलकर रख दी है. वह भी ऐसे समय में, जब बेटियों के लिए मोदी सरकार के अभियान के सबसे ज्यादा कारगर होने की खबरें इसी हरियाणे से आ रही थीं.

हरियाणा की चंद कामयाब महिलाओं की उपलब्धियों का ढोल पीटकर और बाकी बहू-बेटियों की दुर्दशा पर पर्दा डालकर कहीं लोगों को बेवकूफ तो नहीं बनाया जा रहा है? बड़ा सवाल यह है कि देशभर की महिलाएं असुरक्षा के साए में जी रही हैं, लेकिन महिलाओं की बदहाली की सूई हर बार 'खाप प्रधान राज्य' हरियाणा पर ही आकर क्यों रुकती है?

शान है घूंघट

कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं पार्टी के संचार विभाग की संयोजक प्रियंका चतुर्वेदी ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा, "जिस बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ रिपोर्ट का जिक्र किया जा रहा है कि हरियाणा इसमें अव्वल है, उस रिपोर्ट में कई कमियां पाई गई हैं. एक ऑडिट में यह सच्चाई सामने आई है. दरअसल, सरकार ने अपनी छवि सुधारने के लिए जानबूझकर गलत डाटा पेश किया था."

उन्होंने आगे कहा, "हरियाणा सरकार महिलाओं पर जुल्म को लेकर गंभीर कहां से होगी, जब राज्य के मुखिया ही इस तरह की वारदातों को छोटी-मोटी घटनाएं कहकर कन्नी काट लेते हैं. यहां महिलाओं को आजादी के नाम पर बगैर कपड़ों के घूमने की नसीहत दी जा रही है. आंदोलन कर रही महिलाओं को वेश्या कहा जा रहा है. घूंघट को शान से जोड़कर देखा जा रहा है."

चतुर्वेदी हैं, "हद है, सरकार का एक मंत्री एक महिला का पीछा करता दिखता है. क्या ऐसी सरकार महिला सुरक्षा को लेकर कभी गंभीर हो सकती है? जब सरकार ही महिलाओं को लेकर असंवेदनशील होगी तो अपराध बढ़ेंगे ही."

गाय ज्यादा जरूरी

सवाल यह भी उठता है कि क्या हरियाणा की पृष्ठभूमि पर आधारित 'दंगल' जैसी कुछेक फिल्मों से राज्य की छवि चमकी है? प्रियंका चतुर्वेदी कहती हैं, "फिल्मों से समाज पर थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन राज्य की छवि नहीं चमकाई जा सकती. महिलाओं की सुरक्षा को लेकर धरातल पर पूरे मन से काम करने की जरूरत है."

वह बताती हैं, "हरियाणा सामूहिक दुष्कर्म में नंबर वन है. सरकार का ध्यान महिलाओं की सुरक्षा से ज्यादा गायों को बचाने पर है क्योंकि यह आरएसएस के एजेंडे में शामिल है. हां, गायों को भी बचाया जाना चाहिए, लेकिन दोनों को एक तराजू में नहीं तोला जा सकता."

लैंगिक असमानता भी वजह

हरियाणा में इन अपराधों को संबल देने में क्या खाप पंचायतों की अहम भूमिका रही है? इस सवाल पर महिला कार्यकर्ता मानसी प्रधान कहती हैं, "यह सच है. खाप पंचायतों के बर्बर फैसलों और लैंगिक असमानता की वजह से राज्य की छवि तार-तार हुई है. यूं तो महिलाएं देश में कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन हरियाणा में हालात बद से बदतर हैं. आए दिन महिलाओं के खिलाफ अपराध की खबरें सुनने को मिल रही हैं. लोक गायिकाओं की हत्या हो रही है. प्रेमी जोड़ों में खाप का आतंक है. पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों को वह सम्मान नहीं दिया जा रहा, जिसकी वह हकदार हैं."

राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम कहती हैं कि स्त्री-पुरुष अनुपात को लेकर हरियाणा का जिस तरह का इतिहास रहा है, वह अभी भी इसके आड़े आ रहा है. उनका कहना है, "महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले तो देशभर से सामने आ रहे हैं, लेकिन क्योंकि लैंगिक असमानता का मुद्दा हरियाणा में बरसों से रहा है, तो यकीनन स्त्री-पुरुष भेदभाव के मामले में पहली नजर हरियाणा पर ही जाती है. समाज का दृष्टिकोण बदलने से सुधार संभव है. इसे राजनीतिक चश्मे से देखना बंद करना होगा."

ऋतु तोमर (आईएएनएस)