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स्कूल नामांकन आंकड़ों में जातियों की हिस्सेदारी

चारु कार्तिकेय
३० जुलाई २०२१

प्राथमिक स्कूलों में नामांकन के सरकारी आंकड़ों में जातिगत विभाजन के आंकड़े सामने आए हैं. इसे 2021 की जनगणना में जातिगत जनगणना ना करने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद सामने आई एक महत्वपूर्ण जानकारी माना जा रहा है.

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Indien Demonstration von Studenten in Rohtak Haryana
तस्वीर: Imago

जिला स्तर पर देश के सभी स्कूलों का डाटा इकट्ठा करने वाली प्रणाली यूडीआईएसईप्लस के तहत एक दशक से भी ज्यादा से स्कूलों में भर्ती होने वाले बच्चों की जाति की जानकारी की जा रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार ने इन सरकारी आंकड़ों को छापा है. अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में प्राथमिक स्तर पर भर्ती होने वाले बच्चों में 45 प्रतिशत ओबीसी, 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) और 11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) के थे.

रिपोर्ट के अनुसार बाकी लगभग 25 प्रतिशत हिन्दू सवर्ण और बौद्ध धर्म को छोड़ कर बाकी सभी धर्मों के अधिकतर बच्चे आते हैं. अखबार का मानना है कि चूंकि पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक नामांकन दर 100 प्रतिशत है, इस  जातिगत तस्वीर को देश की आबादी में अलग अलग जातियों के हिस्सों का संकेत माना जा सकता है.

2011 की जनगणना

भारत की जनगणना में एससी और एसटी वर्गों की अलग से गिनती होती है, लेकिन बाकी जातियों की आबादी की गिनती नहीं होती है. 2011 की जनगणना की साथ साथ सामाजिक-आर्थिक जनगणना भी हुई थी, जिसके तहत जातिगत जनगणना भी की गई थी. हालांकि उस जनगणना में हासिल हुआ अलग अलग जातियों का आंकड़ा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.

Indien Lalu Prasad Yadav in Dehli
आरजेडी जैसी पार्टियां मांग करती आई हैं कि आबादी में हिस्सेदारी के हिसाब से आरक्षण मिलना चाहिएतस्वीर: IANS

इसी वजह से पिछले कुछ दिनों से कई पार्टियां 2021 की जनगणना के लिए जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रही हैं, लेकिन केंद्र सरकार इसके खिलाफ है. केंद्रीय गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोक सभा में एक प्रश्न के जवाब में कहा, "भारत सरकार ने नीतिगत निर्णय लिया है कि जनगणना में एससी और एसटी के अलावा जाती के आधार पर जनगणना नहीं की जाएगी."

इसे लेकर विशेष रूप से तथाकथित पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टियों में नाराजगी है. ऐसे समय में यूडीआईएसईप्लस का यह डाटा काफी महत्वपूर्ण है. दूसरी जातियों की गिनती को तो कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि उस समय देश की आबादी में पिछड़े वर्गों की 52 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जिन्हें ओबीसी कहा गया.

आबादी के हिसाब से आरक्षण

स्कूल नामांकन के आंकड़े इस संख्या से कुछ नीचे हैं, लेकिन सांकेतिक जरूर हैं. राज्यवार आंकड़े भी उपलब्ध हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा ओबीसी (71 प्रतिशत) तमिलनाडु में हैं. राज्य में एससी 23 प्रतिशत, एसटी दो प्रतिशत और सामान्य श्रेणी चार प्रतिशत हैं. केरल में ओबीसी 69 प्रतिशत, कर्नाटक में 62 प्रतिशत और बिहार में 61 प्रतिशत हैं.

सबसे कम ओबीसी पश्चिम बंगाल (13 प्रतिशत) और पंजाब में (15 प्रतिशत) हैं. पंजाब में एससी सबसे ज्यादा (37 प्रतिशत) हैं. एसटी सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़ (32 प्रतिशत) हैं. पिछड़े वर्गों में लोकप्रिय पार्टियां लंबे समय से मांग करती आई हैं कि शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण आबादी में हिस्सेदारी के हिसाब से मिलना चाहिए.

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