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सेनेगल से संसद पहुंचने का सपना

१९ सितम्बर २०१३

कुछ लोग इसे जर्मनी में छोटी क्रांति मान रहे हैं. ऐसी संभावना नजर आ रही है कि पहली बार एक अश्वेत अफ्रीकी मूल के व्यक्ति जर्मन संसद में पहुंच सकते हैं. 2009 में वह जर्मनी के हाले शहर के काउंसलर चुने गए.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

51 साल के काराम्बा दियाबी करीब 30 साल से जर्मनी में रह रहे हैं. 12 साल पहले जर्मनी की नागरिकता लेने के बाद, 2008 में उन्होंने समाजवादी डेमोक्रेटिक पार्टी, एसपीडी की सदस्यता ली और उसके अगले साल हाले शहर के काउंसलर बने. वो कहते हैं, "जहां तक मेरा सवाल है, त्वचा के रंग से मेरे रोजमर्रा में कोई फर्क नहीं पड़ा. और अगर मैं संसद तक पहुंचता हूं तो भी मैं कोई अलग नहीं होऊंगा. मैं चाहता हूं कि मेरी और पार्टी की उपलब्धि की तारीफ की जाए."

पार्टी के वरिष्ठ नेता फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर दियाबी के बारे में कहते हैं, "वह बहुत ही जिंदादिल इंसान हैं जो लोगों से मिलना जुलना पसंद करते हैं. उनके पास वो है जिसकी नेताओं को जरूरत होती है."

Tür zu Tür Wahlkampf mit Karamba Diaby
तस्वीर: Christoph Richter

श्टाइनमायर ने कहा कि एसपीडी दियाबी को उम्मीदवार बनाने पर गर्व करती है और दिखाना चाहती है कि पार्टी में भी देश की ही तरह विविधता है. जर्मनी में एसपीडी, ग्रीन और लेफ्ट ही पहली पार्टियां थीं, जिन्होंने प्रवासी मूल के लोगों को अपनी पार्टी में जगह दी. काराम्बा दियाबी कहते हैं कि उनकी कई राजनीतिक प्रतिबद्धता हैं, उनमें से एक है कट्टर दक्षिणपंथियों के विरोध में खड़े रहना. उनकी चुनावी मांग में न्यूनतम वेतन कानून की मांग भी शामिल है, साथ ही गरीब बच्चों की बेहतर शिक्षा की भी.
हाले में दो लाख तीस हजार लोग रहते हैं और यह साम्यवादी पूर्वी जर्मनी का हिस्सा रहा है. पर्यटक इस इलाके के खालिस जर्मन माहौल को बहुत पसंद करते हैं. यहां सुंदर किले, सपनीले जंगल और शांत गांव हैं, लेकिन प्रवासियों का यहां अता पता नहीं.

डेयर श्पीगेल पत्रिका ने जब अप्रैल में खबर दी कि इस इलाके में उग्र दक्षिणपंथी और नस्लवाद है तो स्थानीय मीडिया ने इसका कड़ा विरोध करते हुए लिखा था कि कुछ ही हिस्सों में ये समस्या है. वहीं दियाबी बहुत सावधानी से संकेत देते हैं कि कुछ नागरिक बिना आक्रामक हुए इस मुद्दे पर बात नहीं कर पाते. वे कहते हैं, "ऐसे बहुत लोग हैं जो नहीं जानते हैं (कि उनके अलावा दूसरी जाति, नस्ल के भी लोग होते हैं)." वे जोर दे कर कहते हैं कि जर्मन नस्लवाद विरोधी हैं और उग्र दक्षिणपंथियों के खिलाफ खड़े रहेंगे. बहरहाल, दियाबी की कहानी कई कारणों से खास है, "जब मैं तीन साल का था तो मां गुजर गई और जब सात का था तो पिता." उनकी बड़ी बहन ने उन्हें सेनेगल में पाला पोसा और फिर 1982 में वह दकार यूनिवर्सिटी में दाखिल हुए. उस समय साम्यवादी विचारधारा और अपना असर दुनिया में बढ़ाने के उद्देश्य से जीडीआर अफ्रीकी छात्रों के लिए छात्रवृत्ति दे रहा था. 1985 में 24 साल के दियाबी इस स्कॉलरशिप के साथ जर्मनी के लाइप्जिष आए.

1986 में केमिस्ट्री में पीएचडी के लिए हाले शिफ्ट हुए. यहां उनकी मुलाकात हुई अपनी पत्नी से. हो सकता है कि 2013 के चुनावों में एसपीडी पार्टी को बहुमत नहीं मिले लेकिन उम्मीद की जा रही है कि पार्टी 25 फीसदी वोट ले जाएगी. इतना दियाबी के राष्ट्रीय स्तर पर करियर के लिए काफी है. काराम्बा दियाबी पार्टी की सूची में तीसरे नंबर के उम्मीदवार हैं.

रिपोर्टः आभा मोंढे (डीपीए)

संपादनः एन रंजन

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