सूर्य और षष्ठी देवी की उपासना का महापर्व है छठ
सूर्य अर्थात भगवान भास्कर की आराधना का महापर्व है छठ. यह बिहार, झारखंड और नेपाल के बड़े इलाकों में धूमधाम और उत्साह से मनाया जाता है. प्रवासियों के विदेशों में फैलने से छठ अब पूरी दुनिया का जाना माना त्योहार बन गया है.
दीपावली के छह दिन बाद मनाया जाने वाला चार दिवसीय यह अनुष्ठान बिहार के लोगों के लिए सबसे पवित्र व महान आस्था का पर्व है. इसमें पवित्रता या कहें साफ-सफाई का काफी ख्याल रखा जाता है. प्रसाद तैयार करने के लिए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी की खरीदारी की जाती है.
इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत है कि फल-फूल या कंद-मूल का इसमें खासा उपयोग किया जाता है. अनुष्ठान आरंभ होने के पहले व्रत करने वाली महिलाएं पकवान तैयार करने के लिए खुद ही गेहूं धोतीं व सुखातीं हैं.
चार दिवसीय इस अनुष्ठान का आरंभ नहाय-खाय के साथ होता है. सूर्य को जल अर्पित कर व्रती महिलाएं अनुष्ठान आरंभ करने का संकल्प लेतीं हैं तथा फिर अरवा चावल, चने की दाल व लौकी की सब्जी का भोग लगाती हैं.
दूसरे दिन व्रती उपवास रहने के बाद सूर्यास्त के बाद गाय के दूध व अरवा चावल से खीर बनाकर खरना का प्रसाद ग्रहण करतीं हैं और फिर इसके बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास करतीं हैं.
तीसरे दिन बांस के बने सूप में गेहूं के बने पकवान, नारियल, सेब-संतरा व नाना प्रकार के कंद मूल सजाकर पानी में खड़ी होतीं हैं और स्वजन जल या दूध से अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
पर्व के अंतिम दिन इसी तरह प्रात: स्नान कर उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. छठ के मौके पर देश-विदेश में रह रहे लोग भी अपने घरों का रुख करते हैं. महाभारत व रामायण काल में छठ व्रत करने का संदर्भ मिलता है.
इस पर्व का महात्म्य अब केवल बिहार तक ही सीमित नहीं रह गया है. देश के कई हिस्सों में यह पर्व मनाया जाता है. अब तो विदेशों में रहने वाले लोग भी वहीं यह व्रत कर रहे हैं. उन्हें पूजन सामग्री स्पेशल ऑर्डर कर मंगवाना पड़ता है और जो चीजें नहीं मिल पाती, वैकल्पिक व्यवस्था कर पर्व मनाने की कोशिश करते हैं.
दिल्ली सरकार ने पर्व के बढ़ते महत्व को देख छठ के लिए बकायदा छुट्टी घोषित कर रखी है. मुंबई में भी समुद्र किनारे छठ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. कोरोना काल में नदी किनारे लोगों के जुटने की मनाही है. लोगों से सरकार ने अपने घरों में गड्ढों या वैकल्पिक व्यवस्था कर पर्व मनाने का आग्रह किया है.
जहां बाहर जाकर तालाब या नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्ध्य देना संभव नहीं वहां घरों में ही छोटे तालाब बनाकरह पूजा अर्चना की जाती है.
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