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6 साल में पांचवी बार मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली

हृदयेश जोशी
१ सितम्बर २०२०

पिछले 6 साल में पांचवीं बार केंद्रीय सूचना आयुक्त का पद खाली पड़ा है. इसके अलावा सूचना आयुक्त के 10 में 4 पद भी खाली हैं. ये हाल तब है जबकि सुप्रीम कोर्ट इन नियुक्तियों के लिये सरकार को साफ निर्देश दे चुका है.

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तस्वीर: picture-alliance/EPA/STR

मुख्य सूचना आयुक्त बिमल जुल्का के पिछले हफ्ते रिटायर होने के साथ देश में सीआईसी का पद एक बार फिर खाली हो गया. पिछले 6 साल में पांचवीं बार ऐसा हो रहा है कि देश में चीफ इन्फॉर्मेशन कमिश्नर का पद खाली है. इतना ही नहीं केंद्रीय सूचना आयोग में सीआईसी के अलावा सूचना आयुक्तों के भी दस में से चार पद खाली पड़े हैं. यानी सीआईसी समेत जहां केंद्रीय सूचना आयोग में 11 कमिश्नर होने चाहिये वहां अभी सिर्फ 6 कमिश्नर ही मौजूद हैं.

साफ है कि केंद्रीय सूचना आयोग और देश के दूसरे सूचना आयोगों में आयुक्तों के पद खाली होने की चोट सूचना अधिकार कानून यानी आरटीआई एक्ट पर पड़ रही है. पारदर्शिता के लिये काम कर रहे सर्तक नागरिक संगठन ने अपने बयान में कहा है, "सीआईसी में अभी सूचना संबंधी 35,000 मामले लंबित पड़े हैं. इसकी वजह से नागरिकों को सूचना पाने के लिये महीनों और कई बार तो सालों इंतजार करना पड़ता है और यह काफी निराश करने वाला है.”

महत्वपूर्ण है कि नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में लगातार पांचवीं बार हो रहा है कि किसी मुख्य सूचना आयुक्त के जाने पर नया सीआईसी उसकी जगह पदभार ग्रहण करने के लिये उपलब्ध नहीं है. इन तथ्यों पर नजर डालिये

1- सीआईसी राजीव माथुर 22 अगस्त 2014 को रिटायर हुये तो करीब 10 महीने तक मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली रहा और अगले साल 10 जून को नये सीआईसी विजय शर्मा ने पद संभाला.

2-  इसके बाद जब विजय शर्मा उसी साल एक दिसंबर को रिटायर हुये तो एक महीने से अधिक वक्त तक पद खाली रहा और 4 जनवरी को नये सीआईसी राधा कृष्ण माथुर आये.

3- नवंबर 2018 में माथुर के रिटायर होने के बाद नये मुख्य सूचना आयुक्त सुधीर भार्गव के आने में सवा महीने का वक्त लगा.

4- जब भार्गव 11 जनवरी में रिटायर हुये तो उसके करीब दो महीने बाद ही 6 मार्च को सूचना आयुक्त बिमल जुल्का को सीआईसी बनाया गया और अब उनके रिटायर होने पर यह पद फिर खाली है.

आरटीआई कार्यकर्ताओं अंजली भारद्वाज, लोकेश बत्रा और अमृता जौहरी ने देश भर के सूचना आयोगों में पदों के खाली रहने को लेकर कोर्ट में कई बार अपील की है. जौहरी कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट रूप से कह चुका है कि अगर चीफ इंफॉर्मेशन कमिश्नर नहीं होंगे या आयोग में पर्याप्त कमिश्नर नहीं होंगे तो इससे काम पर खराब असर पड़ेगा और लोग अपने अधिकार से वंचित रह जायेंगे.

जौहरी के मुताबिक, "यह सरकार की इच्छाशक्ति पर बड़ा प्रश्न चिन्ह है. इससे पता चलता है कि सरकार सूचना अधिकार कानून को कमजोर करना चाहती है, तभी सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं हो रही है. देखिये जब पद खाली रहते हैं तो लोगों की अपीलें लंबित रहती हैं और उनके निवारण में अधिक वक्त लगता है. अब अगर किसी ने अपनी पेंशन या राशन के लिये आरटीआई लगाई है और आप उन्हें दो-दो, तीन-तीन साल इंतजार करवायेंगे तो फिर सूचना का क्या महत्व रह जाता है. सरकार ने नागरिकों के इस अधिकार पर सीधा हमला करने के बजाय उसके लिये परोक्ष रास्ता निकाल लिया है.”

मामला सिर्फ केंद्र सरकार या बीजेपी शासित राज्यों के सूचना आयोगों तक सीमित नहीं है. देश के कई सूचना आयोगों में भी यही हाल है. मिसाल के तौर पर राजस्थान सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली है. इसी तरह झारखंड और महाराष्ट्र में भी कई पद खाली पड़े हैं और ढेर सारे मामले लंबित हैं. महाराष्ट्र में पचास हजार से अधिक शिकायतों का निपटारा होना बाकी है. 

सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी 2019 को एक आदेश में सरकार से केंद्रीय सूचना आयोग के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, गुजरात, नागालैंड, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक समेत 8 राज्यों में खाली पड़े पदों को 1 से 6 महीने के भीतर भरने को कहा था. फिर पिछले साल दिसंबर में जब वकील प्रशांत भूषण ने याचिकाकर्ताओं की ओर से अपील की तो सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर आयोग में खाली पदों को भरने के निर्देश दिये थे. सरकार ने सीआईसी में  केवल एक पद पर डॉ अमिताव पांडव की नियुक्ति की लेकिन जब मार्च में सूचना आयुक्त बिमल जुल्का को सीआईसी नियुक्त किया गया तो आयोग में फिर से चार पद खाली हो गये.

नेशनल कैंपेन फॉर पीपुल्स राइट टु इंफॉर्मेशन (एनसीपीआरआई) की अंजली भारद्वाज कहती हैं, "ऐसा क्यों है कि हमें हर बार सीआईसी या दूसरे आयुक्तों की नियुक्ति के लिये कोर्ट जाना पड़े. क्या सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वह कानून  के हिसाब से नियुक्तियां सुनिश्चित करवाये. वरना सूचना अधिकार का पूरा मकसद ही व्यर्थ हो जाता है.”

आरटीआई कानून 2005 में आया और इसने आम आदमी को जो ताकत दी है उससे पिछले पंद्रह सालों में कई घोटाले और गड़बड़ियां सामने आई हैं लेकिन अब लोगों के लिये किसी भी विभाग से सूचना लेना कठिन होता जा रहा है. जब कोई विभाग नागरिक को सूचना नहीं देता तो वह इन्हीं आयोगों में अपील करता है और अपील तर्कसंगत होने पर आयोग संबंधित विभाग को जानकारी देने के लिये कहते हैं.

लेकिन आज देश भर के सूचना आयोगों में आयुक्तों की कमी से लटके मामले बढ़ते जा रहे हैं. हाल यह है कि पूरे देश की सूचना अदालतों में अभी कुल 2 लाख शिकायतें लंबित हैं और केंद्रीय सूचना आयोग में ही 35,000 मामले सुनवाई के लिये लटके हैं.

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