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एनआरसी ने और उलझाया घुसपैठ का मुद्दा

प्रभाकर मणि तिवारी
२ सितम्बर २०१९

असम में जारी एनआरसी में कारगिल युद्ध में हिस्सा लेने वाले फौजी मोहम्मद सनाउल्ला और उनके पुत्र-पुत्रियों के नाम नहीं है. लेकिन उनकी पत्नी का नाम सूची में शामिल है. मामला बहुत ही उलझ गया है.

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तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath

कहीं माता-पिता के नाम तो हैं लेकिन सात साल के बेटे का नहीं. और तो और देश के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के वंशजों के नाम भी इस सूची से बाहर हैं. यानी यह तमाम लोग उन 19 लाख लोगों में शामिल हैं जिनको पूर्वोत्तर राज्य असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के अपडेट होने के बाद भारतीय नागरिक नहीं माना गया है. लगभग 12 सौ करोड़ के खर्च और पांच साल से बड़े पैमाने पर जारी एनआरसी को अपडेट करने की कवायद का एकमात्र मकसद 24 मार्च, 1971 के बाद राज्य में आकर बसने और अवैध रूप से रहने वालों की पहचान करना था. लेकिन शनिवार को जारी एनआरसी की अंतिम सूची ने राज्य में सीमा पार से घुसपैठ के दशकों पुराने मुद्दे को सुलझाने की बजाय और उलझा दिया है.

इस सूची से 19 लाख से ज्यादा लोगों के नाम बाहर होने के बाद इस पर सियासी बवाल भी शुरू हो गया है. राज्य के ताकतवर अखिल असम छात्र संघ ने तो इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाने की बात कही है. असम सरकार व ताकतवर छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) समेत कई संगठनों ने सूची बड़े पैमाने पर तकनीकी गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की बात कही है. सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश और निगरानी में तैयार होने वाली इस सूची से कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है. ऐसे में यह पूरी कवायद ही बेमतलब साबित हो रही है. इसके अलावा यह सवाल उठ उठ रहा है कि एनआरसी के मसविदे व पूरक सूची से बाहर रहे लगभग 41 लाख लोगों में से ऐसे चार लाख लोग कहां गए जिन्होंने अपना नाम शामिल करने के लिए दोबारा अपील नहीं की थी.

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फाइनल लिस्ट से गायब 19 लाख नामतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Nath

एनआरसी की सूची से बाहर रहे इन 19 लाख लोगों का भविष्य अब सुप्रीम कोर्ट पर ही टिका है. केंद्र व राज्य सरकार बार-बार कहते रहे हैं कि एनआरसी से बाहर रहने वाले लोगों को तत्काल राज्यविहीन या विदेशी घोषित कर हिरासत में नहीं लिया जाएगा. सरकार ने इन लोगों को अपील करने के लिए चार महीने का समय दिया है और उसके बाद उन पर छह महीने के भीतर फैसला होगा. राज्य सरकार ने ऐसे जरूरतमंदों को कानूनी सहयाता मुहैया कराने का भी भरोसा दिया है. लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि अगर उस कवायद के बाद भी लाखों लोग अपनी नागरिकता साबित करने में नाकाम रहते हैं तो उनका क्या होगा? इस सवाल का जवाब फिलहाल न तो केंद्र सरकार के पास है और न ही राज्य सरकार के.

असम बीजेपी के वरिष्ठ नेता व राज्य के वित्त मंत्री हिमंत बिस्व सरमा कहते हैं, "एनआरसी में कई ऐसे भारतीय नागरिकों के नाम शामिल नहीं किए गए हैं जो वर्ष 1971 से पहले शरणार्थियों के रूप में बांग्लादेश से आए थे क्योंकि अधिकारियों ने शरणार्थी प्रमाण पत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया.” उनका कहना है कि राज्य और केंद्र सरकारों की ओर से पहले की गई अपील के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट को सीमावर्ती जिलों में कम से कम 20 प्रतिशत और राज्य के बाकी इलाकों में 10 प्रतिशत मामलों की दोबारा सत्यापन की अनुमति देनी चाहिए. पार्टी इस मांग में शीघ्र एक याचिका दायर करेगी.

असम समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल आसू एनआरसी से बाहर रखे गए नामों के आंकड़े से खुश नहीं है और उसने भी इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है. उक्त समझौते में असम में रह रहे अवैध विदेशियों को पहचानने, हटाने और निकालने का प्रावधान है. आसू के महासचिव लुरिन ज्योति गोगोई कहते हैं, "संगठन इस सूची से जरा भी खुश नहीं हैं. अंतिम आंकड़े प्रशासन की ओर से समय-समय पर घोषित आंकड़ों से मेल नहीं खाते.” वह कहते हैं कि एनआरसी को अपडेट करने की कवायद में कई खामियां हैं. यह सूची आधी-अधूरी है. इन कमियों को दूर करने की लिए संगठन सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगा.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने असम में नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजंस (एनआरसी) की अंतिम सूची के मुद्दे पर केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए कहा है कि उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी वैध नागरिक का नाम इस सूची से बाहर नहीं रहे. उन्होंने गोरखा समुदाय के एक लाख लोगों के नाम एनआरसी से बाहर रहने पर भी हैरत जताई है. तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष कहती हैं, "एनआरसी की कवायद पूरी तरह नाकाम रही है. अंतिम सूची से पूरी कवायद से राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करने वालों का खुलासा हो गया है.”

एनआरसी को अपडेट करने के लिए सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले गैर-सरकारी संगठन असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने भी अंतिम सूची को त्रुटिपूर्ण दस्तावेज करार दिया है. संगठन ने कहा कि दोबारा पुष्टि की उसकी मांग सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो जाने की वजह से एनआरसी को त्रुटिमुक्त नहीं रखा जा सका है. संगठन के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा कहते हैं, "एनआरसी की अंतिम सूची से साफ है कि असम में अवैध घुसपैठ की समस्या कभी हल नहीं होगी. अगर एनआरसी को अपडेट करने की यह कवायद त्रुटिमुक्त रहती तो असम के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जुड़ जाता. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.”

(एनआरसी में शामिल होने के लिए चाहिए ये कागजात)