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बाइडेन प्रशासन और सुरक्षा परिषद का विस्तार

चारु कार्तिकेय
२९ जनवरी २०२१

क्या जो बाइडेन सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के सवाल पर झिझक रहे हैं? संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की अगली राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड के अमेरिकी संसद में दिए गए बयान को लेकर यह सवाल उठाया जा रहा है.

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Washington Narendra Modi Rede vor Kongress
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E.Vucci

लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड अमेरिकी सीनेट की विदेशी रिश्तों की समिति के सामने पेश हुई थीं जहां उनसे पूछा गया कि वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के बारे में क्या सोचती हैं और उनकी राय में क्या भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील को परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए.

थॉमस-ग्रीनफील्ड ने जवाब में कहा कि उन्हें लगता है कि इस विषय पर कुछ चर्चा हुई है और इन देशों को स्थायी सदस्य बनाए जाने के पक्ष में कुछ मजबूत दलीलें दी गई हैं. उन्होंने आगे कहा कि उन्हें यह भी मालूम है कि जिन प्रांतों में ये देश हैं वहां कुछ दूसरे देश इन देशों को इलाके का प्रतिनिधि बना दिए जाने के फैसले से असहमत हैं. उन्होंने कहा कि इस पर अभी चर्चा चल ही रही है.

थॉमस-ग्रीनफील्ड के इस बयान को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि ये कहीं इस बात का संकेत तो नहीं है कि बाइडेन प्रशासन भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर प्रतिबद्ध नहीं है और झिझक रहा है. हालांकि जानकारों का कहना है कि उस बयान को सही परिपेक्ष में देखना जरूरी है. भारत की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की दावेदारी कई सालों पुरानी है.

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सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.तस्वीर: Reuters/B. McDermid

और भी हैं दावेदार

बीते दशकों में पिछले कम से कम तीन अमेरिकी राष्ट्रपति भारत की दावेदारी का समर्थन कर चुके हैं, जिनमें जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और डॉनल्ड ट्रंप शामिल हैं. तो क्या जो बाइडेन पिछले राष्ट्रपतियों की राय से अलग जाकर इस समर्थन को लेकर झिझक रहे हैं? सिर्फ थॉमस-ग्रीनफील्ड के ताजा बयान की वजह से यह निष्कर्ष निकालना शायद मुनासिब ना हो.

यह सच है कि भारत में सत्तारुढ़ बीजेपी ने राष्ट्रपति चुनावों से पहले ट्रंप की पुनर्निर्वाचित होने की दावेदारी का समर्थन किया था, लेकिन इसके बावजूद बाइडेन ने अपने चुनावी अभियान के दौरान सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी का नीतिगत स्तर पर समर्थन किया था. ऐसे में इतनी जल्दी अपने समर्थन से उनके मुकर जाने की कोई वजह नजर नहीं आती है.

वरिष्ठ पत्रकार और विदेशी मामलों की जानकार नीलोवा रॉय चौधरी का कहना है कि थॉमस-ग्रीनफील्ड ने इस तरह का जवाब इसलिए दिया क्योंकि उनसे सवाल सिर्फ भारत नहीं बल्कि तीन और देशों की दावेदारी के बारे में पूछा गया था. नीलोवा कहती हैं कि भारत के साथ जी-चार समूह के बाकी तीनों सदस्य देशों - जर्मनी, ब्राजील और जापान - भी स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं और अमेरिका इनमें से सिर्फ भारत और जापान की दावेदारी का समर्थन करता है.

USA New York G4 Gipfel Angela Merkel mit Rousseff, Modi und Abe
सितंबर 2015 में हुई जी-चार समूह की एक बैठक.तस्वीर: Agencia Brasil

प्रांतों में विरोध

अमेरिकी राजदूत से सवाल चारों देशों के बारे में किया गया था और अमेरिका ने अभी तक जी-चार समूह के सभी सदस्य देशों को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिए जाने के पक्ष में प्रतिबद्धता नहीं जताई है. नीलोवा कहती हैं कि अमेरिका विशेष रूप से जर्मनी और ब्राजील की दावेदारी का समर्थन नहीं करता है. उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि थॉमस-ग्रीनफील्ड ने संसदीय समिति को यह बताया कि इन चारों देशों के अपने प्रांतों में इनकी दावेदारी को लेकर विरोध है.

बीते सालों में देखा गया है कि पाकिस्तान ने भारत की दावेदारी का, दक्षिण कोरिया ने जापान की, इटली ने जर्मनी की और अर्जेंटीना ने ब्राजील की दावेदारी का विरोध किया है. इन्हें युनाइटिंग फॉर कंसेंसस (यूएफसी) समूह के रूप में भी जाना जाता है. इनके अलावा चीन भी भारत और जापान दोनों की दावेदारी का विरोध करता है.

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