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कानून और न्याय

क्यों नहीं हुई प्रशांत भूषण को सजा

चारु कार्तिकेय
२० अगस्त २०२०

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी करार देने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सजा नहीं सुनाई. इतना ही नहीं, अदालत ने भूषण को अपने बयान पर पुनर्विचार करने के लिए और समय दे दिया.

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Indien Recht auf Privatsphäre- Anwalt Prashant Bhushan vor Oberstem Gerichtshof in New Delhi
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

सुनवाई से पहले प्रशांत भूषण ने अदालत से अनुरोध किया था कि आज उन्हें सजा ना सुनाई जाए क्योंकि वो उन्हें दोषी सिद्ध करने वाले अदालत के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करना चाहते हैं. सुनवाई टली तो नहीं, लेकिन उन्हें सजा नहीं सुनाई गई. ऐसा कम ही होता है कि किसी को अपराधी ठहराने के बाद सजा सुनाने की तय तिथि पर सुप्रीम कोर्ट सजा ना सुनाकर उसे अपने किए पर पुनर्विचार के लिए और वक्त दे दे.

सुनवाई के पहले अदालत में दायर किए गए अपने वक्तव्य में भूषण ने महात्मा गांधी को दोहराते हुए कहा, "मैं क्षमा नहीं मांगता. मैं उदारता का अनुरोध नहीं करता. मैं यहां प्रसन्नतापूर्वक प्रस्तुत हूं हर उस सजा को स्वीकार करने के लिए जो मुझे कानूनी रूप से दी जा सकती है. जिसे यह अदालत अपराध मानती है, उसे मैं एक नागरिक का सर्वोच्च कर्त्तव्य मानता हूं."

भूषण ने यह भी कहा कि उन्हें खेद सजा मिलने की संभावना पर नहीं है बल्कि इस बात पर है कि उन्हें गलत समझा गया. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने पिछले तीन दशक से अदालत के एक रक्षक के रूप में काम किया है और जिन बयानों के लिए उन्हें सजा दी जाने वाली है उन्हें व्यक्त करना उनके जैसे व्यक्ति के लिए और ज्यादा जरूरी था.

अटॉर्नी जनरल का समर्थन

दिलचस्प यह रहा है कि आज की सुनवाई में अटॉर्नी जनरल ने भी भूषण के बचाव में दलीलें रखीं और अदालत से उन्हें सजा ना देने की अपील की. वेणुगोपाल वैसे तो इस सुनवाई में बार के सबसे वरिष्ठ सदस्य के नाते सम्मिलित थे, लेकिन अटॉर्नी जनरल केंद्र सरकार का सबसे वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी होने के नाते सरकार का नुमाइंदा भी होता है. भूषण को केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के एक मुखर आलोचक के रूप में जाना जाता है. इसके बावजूद सरकार की तरफ से आज वेणुगोपाल ने भूषण का समर्थन किया.

उन्होंने भूषण के अदालत में भ्रष्टाचार के आरोपों का भी समर्थन किया और कहा कि कम से कम नौ पूर्व जज खुद कह चुके हैं कि उच्चतर न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है. उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के पांच सेवानिवृत्त जजों की एक लिस्ट है जिन्होंने कहा था कि अदालत में लोकतंत्र विफल हो गया है. वो और भी दलीलें देना चाह रहे थे लेकिन अदालत ने उन्हें रोकते हुए कहा कि पीठ को उनकी राय सिर्फ इस बात पर चाहिए कि भूषण को अपने बयानों पर पुनर्विचार करने के लिए और समय देना चाहिए या नहीं.

वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि समय देना अच्छा ही रहेगा, हालांकि वो भूषण को 30 सालों से जानते हैं और उन्हें इसकी संभावना कम ही नजर आती है कि वो अपना बयान बदलेंगे. भूषण ने भी यही कहा, लेकिन 3-4 दिनों का समय लेने के अदालत के सुझाव को मान लिया.

Indien Oberster Gerichtshof in Neu Dehli
जब से प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का दोषी ठहराया है, तब से देश में कई आम नागरिकों, पत्रकारों, टीकाकारों, एक्टिविस्टों, अधिवक्ताओं और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों ने भी फैसले की आलोचना की है और सार्वजनिक रूप से भूषण का समर्थन किया है.तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/N. Kachroo

लक्ष्मण रेखा

प्रशांत भूषण की तरफ से उनके वकील दुष्यंत दवे और राजीव धवन ने अदालत से कहा कि अवमानना पर फैसला देने से पहले बयान देने वाले  के व्यक्तित्व पर भी विचार करना चाहिए. कानून और न्याय के क्षेत्र में भूषण के योगदान के बारे में याद दिलाते हुए दोनों वकीलों ने कोयला खनन घोटाला, सीवीसी को हटाने, 2जी घोटाला, नर्मदा पर बांध, पुलिस सुधार, इच्छा मृत्यु, रेहड़ी-पटरी वालों के अधिकार, सिंगुर भूमि अधिग्रहण, सूचना का अधिकार जैसे मामले गिनाए और कहा कि जनहित के ये सारे के सारे केस भूषण ने निःशुल्क लड़े.

जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि पीठ भी भूषण की कोशिशों की सराहना करती है, लेकिन लक्ष्मण-रेखा किसी को पार नहीं करनी चाहिए. उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने बतौर जज अपने कार्यकाल में आज तक किसी को अवमानना का दोषी नहीं ठहराया. अंत में भूषण को और समय देने के साथ सुनवाई समाप्त हो गई.

माना जा रहा है कि पीठ का भूषण को सजा ना सुनाना, उन्हें पुनर्विचार करने के लिए उनके ठुकराने के बावजूद उन्हें और समय देना, उनके काम की सराहना करना और विशेष रूप से जस्टिस मिश्रा का यह कहना कि उन्होंने आज तक किसी को अवमानना का दोषी नहीं ठहराया, इस बात का संकेत हैं कि अदालत खुद अब इस मामले को रफा दफा करना चाह रही है.

क्या अदालत पर दबाव है?

दरअसल जब से भूषण को अदालत ने अवमानना का दोषी ठहराया है, तब से इस फैसले को लेकर देश में काफी विरोध सामने आया है. कई आम नागरिकों, पत्रकारों, टीकाकारों, एक्टिविस्टों, अधिवक्ताओं और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों ने भी फैसले की आलोचना की है और सार्वजनिक रूप से प्रशांत भूषण का समर्थन किया है. 

भूषण के वकीलों ने सुनवाई के दौरान भी अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के ही कम से कम चार पूर्व जजों ने भूषण का समर्थन किया है. जानकारों का कहना है कि इसी संभव है कि इसी वजह से अदालत अपने फैसले को लेकर अपने ऊपर दबाव महसूस कर रही हो और विवाद को शांत करना चाह रही हो.

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