सिकल सेल एनिमिया की गिरफ्त में छत्तीसगढ़
२४ अप्रैल २०११इलाके में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं के बराबर हैं और लोगों में इस विषय पर जागरूकता का भी अभाव है. कार्यक्रमों की निगरानी के लिए न तो कोई ठोस योजना है और न ही कोई जिम्मेवार एजेंसी. यही वजह है कि यह काम राम भरोसे ही चल रहा है. इसकी वजह से इलाके के बच्चों में खून की कमी यानी एनीमिया जैसी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं. देश के पिछड़े राज्य छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला इस सिकल सेल एनीमिया के मरीजों के मामले में भारत में पहले नंबर पर है. इस बीमारी में रेड ब्लड सेल यानी खून की लाल कोशिकाएं विकृति का शिकार होती हैं. ऐसे मरीजों की औसत उम्र 48 साल होती है. यह बीमारी आनुवांशिक है यानी यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी फैलता रहता है.
कई मामले
विजय को तो पता ही नहीं था कि उसका बच्चा इस खतरनाक बीमारी की चपेट में है. वह कहता है कि अस्पताल में खून की जांच के बाद डाक्टरों ने इसके बारे में बताया. 35 साल की सरस्वती कोई 20 साल से एनीमिया से जूझ रही है. वह कहती है कि इससे कई तरह की समस्याएं पैदा हो गई थी.
इलाके में स्वास्थ्य सुविधाओं का बेहद अभाव है. सरकार ने लोगों में जागरुकता पैदा करने की दिशा में भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. राज्य सरकार ने वर्ष 2004 में तमाम सरकारी अस्पतालों को एनीमिया का पता लगाने के लिए खून की जांच का आदेश दिया था. लेकिन अकेले छत्तीसगढ़ में लगभग 35 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में हैं. इलाके के एक सामाजिक कार्यकर्ता रामकुमार कहते हैं कि सरकार को दूसरी खतरनाक बीमारियों की तरह एनीमिया के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू करना चाहिए.
कुपोषण मुख्य कारण
दरअसल, इलाके में ज्यादातर बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं. कहने को तो कई संगठनों ने कुपोषण के खिलाफ तमाम योजनाएं चला रखी हैं. लेकिन जमीनी स्तर पर उनका खास असर नहीं नजर आ रहा है. सरकारी स्तर पर शुरू आंगनवाड़ी कार्यक्रम के जरिए भी बच्चों को पोषक आहार और दवाएं बांटी जाती हैं. लेकिन लोगों की शिकायत है कि उनको समय पर कोई चीज ही नहीं मिलती. इसकी वजह है कि अक्सर वह राशन समय पर नहीं मिलता. लेकिन आंगनवाड़ी की एक कार्यकर्ता सीमा कहती हैं कि कई बार जब सप्लाई नहीं मिलती तो हम अगले हफ्ते एक साथ इसकी सप्लाई करते हैं. आखिर इस कुपोषण और इसके चलते पैदा होने वाली बीमारियों की वजह क्या है? एक डाक्टर रमेश सिंह इस सवाल का जवाब देते हैं कि पहले लोगों में जागरूकता जरूरी है. बच्चों के बीमार होते ही लोग पहले उसे डाक्टर के पास ले जाते हैं. और इसके बाद उनके खान पान पर कोई ध्यान नहीं देते.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः आभा एम