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समाज

सात साल बाद 'निर्भया' के हत्यारों को लगेगी फांसी

चारु कार्तिकेय
१९ मार्च २०२०

'निर्भया' मामले के चारों अपराधियों का 20 मार्च को फांसी लगना तय माना जा रहा है. चारों की सभी अपीलें दिल्ली की एक निचली अदालत ने ठुकरा दीं और कहा कि चारों को तय समय के अनुसार 20 मार्च की सुबह फांसी लगा दी जाएगी.

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Indien l Proteste gegen Vergewaltigungen
तस्वीर: picture alliance/NurPhoto/S. Pal Chaudhury

सात साल पुराने 'निर्भया' सामूहिक बलात्कार मामले के चारों जीवित अपराधियों को 20 मार्च को दिल्ली तिहाड़ जेल में फांसी लगना तय माना जा रहा है. 32 वर्षीय मुकेश सिंह, 31 वर्षीय अक्षय ठाकुर, 26 वर्षीय विनय शर्मा और 25 वर्षीय पवन गुप्ता की सभी अपीलें दिल्ली की एक निचली अदालत ने ठुकरा दीं और कहा कि चारों को तय समय के अनुसार 20 मार्च की सुबह फांसी लगा दी जाएगी.

चारों अपराधियों ने गुहार लगाई थी कि उनकी फांसी रोक दी जाए, क्योंकि उनके पास अभी भी लीगल रेमेडी है. लेकिन सरकारी पक्ष के वकील ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा पवन और अक्षय दोनों ही की दूसरी क्षमा याचिका को संज्ञान में लेने से मना कर देने के बाद, अब कोई लीगल रेमेडी बाकी नहीं रह गई है.

सालों चला मुकदमा

अदालत की घोषणा के बाद चारों अपराधियों का फांसी लगना अब तय माना जा रहा है. इसके पहले तीन बार तय की हुई फांसी की तारीख निकल गई क्योंकि हर बार चारों में से कोई ना कोई अपराधी एक नई याचिका दायर कर देता था. 'निर्भया' की मां आशा देवी ने एक बार मीडिया को यह बयान भी दिया था कि अपराधियों के वकील एपी सिंह ने उनके सामने दावा किया था कि वे अपराधियों को कभी फांसी नहीं लगने देंगे.

Indien | Asha Devi Mutter deren Tochter 2012 in einem Bus vergewaltigt wurde und verstarb verlässt das Oberste Gericht in Neu Delhi
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Swarup

दिसंबर 2012 में राष्ट्रीय राजधानी में 23 साल की पैरामेडिक्स की छात्रा के साथ चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म किया गया था, और विरोध करने पर उसे बुरी तरह मारा-पीटा गया था. गंभीर अंदरूनी जख्मों के कारण उसे बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर ले जाया गया था, जहां कुछ दिनों बाद उसने दम तोड़ दिया था. इस मामले में पुलिस ने छह आरोपियों को गिरफ्तार किया था, जिनमें से पांच को अदालत ने दोषी ठहराया और मृत्युदंड सुनाया. इसमें से दोषी राम सिंह ने जेल में आत्महत्या कर ली थी. छठा आरोपी नाबालिग था, जिसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया था.

विवादास्पद है सजाए मौत

मौत की सजा भारत में विवादास्पद विषय है जिसके बारे में लोगों की राय बंटी हुई है. मानवाधिकारों में गहरा विश्वास करने वाले लोग मानते हैं कि सभ्य समाज में मौत की सजा जैसी कानूनी सजा के लिए कोई जगह नहीं है. जबकि इसके समर्थकों का मानना है कि कुछ जुर्म होते ही इतने वीभत्स हैं कि उनके लिए मौत से कम कोई सजा हो ही नहीं सकती. विशेष रूप से इस मामले से बड़ी संख्या में लोगों का भावनात्मक जुड़ाव है. जितनी बार फांसी की तारीख टली, इन लोगों में भारतीय दंड व्यवस्था के प्रति मायूसी देखी गई. 20 मार्च की सुबह आशा देवी और इन लोगों के लिए जरूर एक तरह के समापन का एहसास ले कर आएगी.

Indien l Proteste gegen Vergewaltigungen
तस्वीर: Reuters/R. De Chowdhuri

लेकिन बहुत से लोगों का मानना है कि क्या ये वाकई समापन होगा? क्या इन चार अपराधियों को फांसी लगने से भारत में बलात्कार के मामले रुक जाएंगे? नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर दिन औसतन 91 बलात्कार होते हैं. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जोसफ कुरियन का कहना है फांसी से न्याय नहीं होता क्योंकि न्याय का मतलब जान के बदले जान ले लेना नहीं होता. उनका मानना है कि किसी भी व्यक्ति के लिए अपनी आजादी को खो देने से बुरा कुछ नहीं होता. वो कहते हैं कि अगर बलात्कार के अपराधियों को आजीवन जेल की सजा हो गई तो समाज को बताया जा सकता है कि ऐसे जुर्म करने वालों का यही हाल होगा, लेकिन उन्हें फांसी लगा देने से लोग जुर्म को भूल जाते हैं. 

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