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सरकार और सिविल सोसाइटी में मतभेद उभरे

३० मई २०११

प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और सांसदों को लोकपाल के दायरे में लाने को लेकर सरकार और सिविल सोसाइटी के सदस्यों में ठन गई है. सोमवार को हुई बैठक में कुछ ठोस नहीं निकल पाया.

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तस्वीर: picture alliance/dpa

लोकपाल बिल ड्राफ्ट पर बनी समिति की सोमवार को हुई बैठक में गहरे मतभेद उभर आए हैं. सरकार ने

प्रधानमंत्री, न्यायपालिका के ऊपरी हिस्से और सांसदों को लोकपाल के दायरे में लाने का कड़ा विरोध किया है. समिति के सदस्य और कड़े लोकपाल बिल की मांग कर रहे अन्ना हजारे ने कहा है कि ऐसा नहीं लगता है कि सरकार 30 जून की समय सीमा के भीतर बिल तैयार कर पाएगी.

वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में हुई बैठक में पहली बार कई विवादपू्र्ण मुद्दे सामने आए. सिविल सोसाइटी के नुमाइंदे के तौर पर समिति में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल और वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि नागरिक घोषणापत्र और सार्वजनिक शिकायतों को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में रखने के अलावा सरकार ने प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका तथा संसद के भीतर सांसदों के भ्रष्ट कृत्यों को लोकपाल के दायरे में लाए जाने का विरोध किया.

उन्होंने कहा कि सरकार के सोमवार के प्रस्ताव उसके पहले प्रस्तावों से भी खराब थे. उन प्रस्तावों की भ‌र्त्सना की गई और उन्हें खारिज कर दिया गया. केजरीलवाल ने कहा कि सरकार के नवीनतम विधेयक में प्रधानमंत्री को इसके दायरे में रखा गया था, लेकिन सरकार इससे पीछे हट गई.

सरकार और सिविल सोसाइटी में मतभेद

समिति के सदस्यों के बीच सोमवार को सहमति नहीं बन पाने के कारण सरकार ने तय किया है कि वह मतभेद के इन मुद्दों पर राज्यों और राजनीतिक दलों को लिखेगी और उनकी राय मांगेगी. इसके बाद वह 6 जून को सभी पक्षों की राय जानने के बाद समिति में फिर विचार-विमर्श करेगी.

राज्यों की राय जरूरी

मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्ब ने कहा कि राज्यों की राय जानने की जरूरत है क्योंकि लोकायुक्तों की नियुक्ति वहां की जानी है. प्रशांत भूषण ने कहा "सरकारी प्रतिनिधियों ने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने से वह निष्क्रिय हो जाएगा." उन्होंने ध्यान दिलाया कि सरकार के विधेयक में भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के तहत लाने का प्रावधान है तथा अभी तक वह भ्रष्टाचार के मुद्दों पर जांच के दायरे से बाहर नहीं है.

भूषण ने कहा कि हम केवल यही चाहते हैं कि वह एक निष्पक्ष एजेंसी के दायरे के भीतर आए न कि ऐसी एजेंसी के, जो स्वयं सरकार के अधीन हो. इससे हितों का टकराव होता है. केजरीवाल ने अफसोस जताया कि "प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उनके कार्यकलाप की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से नहीं, बल्कि सीबीआई जैसी एजेंसी से करवाई जानी चाहिए जो उनके अधीन हो."

समिति की बैठक में मुखर्जी के साथ-साथ सरकार की ओर से गृह मंत्री पी चिदंबरम, कानून मंत्री कपिल सिब्बल, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद और कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने भी भाग लिया. सिविल सोसाइटी की ओर से बैठक में अन्ना हजारे, शांतिभूषण और प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल और संतोष हेगड़े शामिल हुए.

रिपोर्ट: एजेंसियां/आमिर अंसारी

संपादन: एस गौड़

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