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समलैंगिकता पर भारत सरकार की सफाई

२८ फ़रवरी २०१२

सुप्रीम कोर्ट में पिछले हफ्ते फजीहत झेलने के बाद भारत सरकार ने समलैंगिकता पर अपना बयान बदल दिया है. उसने कहा कि वह पूरी तरह अदालत के साथ है, जिसने तीन साल पहले ही समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है.

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तस्वीर: AP

मंगलवार को भारत सरकार ने अपने बयान में कहा कि वह समलैंगिकता को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को "पूरा समर्थन" देता है. भारत के सर्वोच्च अदालत में स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) मोहन जैन ने कहा कि 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का जो फैसला किया है, सरकार उसका समर्थन करती है.

जैन ने कहा, "भारत सरकार ने तय किया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है." सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भारत सरकार के इस पसोपेश की कड़ी आलोचना करते हुए अपनी प्रतिक्रिया में एएसजी जैन से कहा, "आप इस सिस्टम का मजाक न उड़ाएं. एएसजी मल्होत्रा पहले ही तीन घंटे अपनी दलीलों में खर्च कर चुके हैं. आप अदालत का समय बर्बाद न करें."

मल्होत्रा की गलती

पिछले हफ्ते गुरुवार को दूसरे एएसजी पीपी मल्होत्रा ने सुप्रीम कोर्ट को अपनी दलील में कहा था कि समलैंगिकता "प्रकृति के खिलाफ है." उन्होंने दलील दी कि भारतीय संविधान और भारत का समाज बाकी देशों अलग है जिसे देखते हुए समलैंगिकता को स्वीकृति देना सही नहीं होगा. इसके बाद समलैंगिकों के लिए कानून के बारे में सरकार के रवैये को लेकर काफी अस्पष्टता रही.

भारतीय समाचार चैनलों का कहना है कि मल्होत्रा शायद गलती से पुराने दस्तावेज को अपने साथ ले गए थे, जिसमें सरकार ने 2009 से पहले कानून को खत्म करने के खिलाफ अपनी दलीलें रखी थीं. इसके तुरंत बाद गृह मंत्रालय ने बयान दिया कि वह 2009 के फैसले को चुनौती नहीं दे रहा है और "सरकार की समलैंगिकता पर कोई स्पष्ट राय नहीं है."

गुस्से में अदालत

यहां तक कि पिछले गुरुवार को अदालती प्रक्रिया चलते चलते ही गृह मंत्रालय ने अपनी राय स्पष्ट करने के लिए एएसजी जैन को सुप्रीम कोर्ट भेज दिया, लेकिन अदालत ने उस दिन जैन की बात नहीं मानी. उसने कहा कि सरकार की तरफ से दलील रखी जा चुकी है और जैन अगली सुनवाई में अपनी बात रख सकते हैं.

भारतीय दंड संहिता में धारा 377 के मुताबिक समलैंगिक संबंध के मामले में आजीवन कारावास के अलावा जुर्माने तक का प्रावधान था. इस मामले में सजा के ज्यादा मामले तो नहीं हुए हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस ने इस कानून की आड़ में समलैंगिक लोगों को परेशान करने की कोशिश की. दिल्ली हाई कोर्ट का कहना है कि दो वयस्क व्यक्तियों के बीच समलैंगिक संबंध जायज हैं और इसे अपराध करार देना भारत के मौलिक अधिकारों के खिलाफ होगा. अदालत ने 2009 में ब्रिटिश राज के जमाने के इस कानून को खत्म करने का फैसला किया.

समाज की दुहाई

हालांकि भारत में कुछ धार्मिक और समाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की है और पुराने कानून को दोबारा लागू करने की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले पर सुनवाई चल रही है. भारतीय समाज समलैंगिकता को स्वीकार करने की राह पर तो है, लेकिन दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों के अलावा देश के बाकी हिस्सों में समलैंगिकता अब भी वर्जित विषय माना जाता है.

रिपोर्टः एपी, एएफपी/एमजी

संपादनः ए जमाल

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