समलैंगिकता पर केंद्र सरकार को नोटिस
९ जुलाई २००९सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद अगर ज़रूरत पड़ी तो हाई कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ कोई अंतरिम आदेश देने पर विचार किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में नाज़ फाउंडेशन को भी नोटिस जारी किया है, जो हाई कोर्ट में एक पक्ष था. दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 जुलाई को अपने एक फ़ैसले में कहा था कि भारत में समलैंगिकता को अपराध नहीं माना जा सकता और आपसी रज़ामंदी से समलैंगिक रिश्तों में कोई दिक्कत नहीं. इस फ़ैसले को चुनौती देते हुए एक ज्योतिषी सुरेश कुमार कौशल ने एक याचिका दायर की थी.
इस याचिका पर दलील देते हुए कौशल के वकील ने अदालत से कहा कि हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद से भारत में सात समलैंगिक शादियां हो चुकी हैं और इसके बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. वकील ने दावा किया कि इसकी वजह से शादी की परंपरा ख़तरे में पड़ सकती है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, "हमने शादी की परिभाषा नहीं बदली है." छोटी सी सुनवाई के दौरान जब कौशल के वकील ने कहा कि हाई कोर्ट के फ़ैसले से ग़लत असर पड़ सकता है, तो बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस आम तौर पर केस दर्ज नहीं करती. अदालत ने कहा कि हालांकि क़ानून 1860 से लागू है लेकिन ऐसे मामलों में बाल यौन शोषण को छोड़ कर कुछ गिने चुने मामले ही दर्ज हैं. बेंच ने कहा, "हमारी जानकारी में समलैंगिक रिश्तों के मामले में कभी किसी को सज़ा नहीं मिली." इस बेंच में जस्टिस पी सतासिवम भी शामिल थे.
कौशल की याचिका में 2 जुलाई को हाई कोर्ट के फ़ैसले को फ़ौरन रद्द करने की मांग की गई थी. इससे पहले भारत में समलैंगिक रिश्ते अपराध की श्रेणी में आते थे और इसमें कड़ी सज़ा का प्रावधान था. याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक रिश्ते हर तरह से अप्राकृतिक हैं और इनकी इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया, "ऐसे अप्राकृतिक रिश्तों के नतीजों के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता. जानवर भी ऐसा नहीं करते हैं."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल
संपादनः ए कुमार