'समझौता ऐतिहासिक गलती'
२५ नवम्बर २०१३रविवार के समझौते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस्राएल के शीर्ष नेता को टेलीफोन किया. अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय के मुताबिक, ओबामा ने नेतन्याहू से कहा कि "इस्राएल के साथ दृढ़ता से खड़े रहने की वचनबद्धता पर अमेरिका डटा रहेगा. ईरान के इरादों पर शक करने के लिए इस्राएल के पास अच्छे कारण हैं." बातचीत में ओबामा ने जोर देते हुए कहा कि समझौते के बाद अमेरिका और इस्राएल को तर्कसंगत समाधान के लिए तुरंत काम शुरू करना चाहिए.
समझौते की शर्तें
24 नवंबर को ईरान का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों समेत जर्मनी के साथ समझौता हुआ. जिनेवा में हुए समझौते के तहत ईरान अपने यूरेनियम को पांच फीसदी तक ही संवर्धित करेगा. पांच फीसदी संवर्धन से बिजली बनाने लायक परमाणु ईंधन मिलता है. यूरेनियम को इससे कहीं ज्यादा संवर्धित किया जाए तो उससे परमाणु हथियार भी बनाए जा सकते हैं. सीमित संवर्धन की शर्त के साथ ईरान परमाणु केंद्रों का निरीक्षण करवाने के लिए भी तैयार हुआ है. साथ ही तेहरान ने यह भी साफ कहा कि वो परमाणु हथियार बनाने की तरफ नहीं जाएगा.
इसके बदले पश्चिमी देश ईरान पर लगाए गए कुछ आर्थिक प्रतिबंध ढीले करेंगे. उम्मीद की जा रही है कि इससे कमजोर ईरानी अर्थव्यवस्था को कुछ शक्ति मिलेगी. प्रतिबंधों की वजह से ईरान पेट्रोकेमिकल्स और सोने का निर्यात नहीं कर पा रहा था. प्रतिबंध ढीले होते ही ईरान तेल और सोने के निर्यात से डेढ़ अरब डॉलर कमा सकेगा. अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से ईरान अपने मित्र देशों के केंद्रीय बैंकों से भी वित्तीय लेन देन नहीं कर पा रहा था. इसकी वजह से आ रही भुगतान की दिक्कतें भी अब कम हो सकेंगी.
समझौते के अगले दिन फ्रांस के विदेश मंत्री लॉरां फाबियस ने कहा कि ईरान पर लगाए गए यूरोपीय संघ के कुछ प्रतिबंध जल्द से जल्द ढीले करने में भी महीने भर का वक्त लग ही जाएगा. रविवार के समझौते के तहत छह महीने के दौरान ईरान के परमाणु कार्यक्रम की समीक्षा की जाएगी और स्थायी तौर पर प्रतिबंध हटाने के बारे में बाद में ही कोई फैसला किया जाएगा. फाबियास ने कहा, "ईरान परमाणु हथियारों की संभावना को अलविदा कहने के प्रति वचनबद्ध दिखता है. ये बहुत साफ है."
ऐतिहासिक कहे जा रहे समझौते की अहमियत का असर सोमवार को बाजार में दिखा. बाजार खुलते ही कच्चे तेल का दाम गिर गए.
ऐतिहासिक गलती
लेकिन इस्राएल समझौते से बुरी तरह नाराज है. सोमवार को इस्राएली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा, "जिनेवा में जो कुछ बीती रात हुआ, वो ऐतिहासिक समझौता नहीं, ऐतिहासिक गलती है. ये दुनिया को सुरक्षित नहीं बनाएगा. ये 2005 में उत्तर कोरिया के साथ हुए समझौते जैसा है, उस करार ने दुनिया को पहले से ज्यादा खतरनाक जगह बना दिया."
तेहरान पर परमाणु हथियार बनाने के शक जताते हुए नेतन्याहू ने कहा, "कई सालों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय ईरान से हर तरह के यूरेनियम संवर्धन को बंद करने की मांग कर रहा था. अब, पहली बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय आधिकारिक रूप से सहमत हो गया है कि ईरान अपना यूरेनियम संवर्धित करे."
ईरान का धुर विरोधी देश सऊदी अरब भी समझौते से खुश नहीं है. लंदन में ब्रिटिश मीडिया से बात करते हुए एक सऊदी अधिकारी ने कहा कि उनका देश छला हुआ महसूस कर रहा है.
ईरान में जश्न
समझौते से ईरान में जश्न सा माहौल है. करीब 25 फीसदी बेरोजगारी दर वाले देश में उम्मीद जगी है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी तो नौकरियां पैदा होंगी. ईरान के एक अखबार ने समझौते और लोगों के उत्साह की दो तस्वीरें पहले पेज पर लगा कर लिखा, "ये ईरान है और यहां हर कोई खुश है." कुछ कट्टरपंथियों को छोड़ ईरान के आम लोग समझौते से राहत महसूस कर रहे हैं.
ईरान ने अमेरिका की मदद से 1957 में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया. तब ईरान में शाह का शासन था, उस दौर में वॉशिंगटन और तेहरान की अच्छी दोस्ती थी. अमेरिकी मदद से 1970 के दशक में ईरान ने परमाणु बिजली कार्यक्रम की शुरुआत की. लेकिन 1979 की इस्लामिक क्रांति में जब शाह को सत्ता से बेदखल कर दिया गया तो अमेरिका के साथ संबंधों में कड़वाहट आ गई. धीरे धीरे ईरान पर प्रतिबंध लगते गए. 2005 में महमूद अहमदीनेजाद के राष्ट्रपति बनने के बाद ईरान ने एक बार फिर परमाणु कार्यक्रम तेज कर दिया. इस्राएल और पश्चिमी देशों को लगा कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है. इस्राएल और ईरान के बीच तो समय समय पर एक दूसरे को मिटा देने जैसी धमकियां भी सुनाई पड़ने लगी. तनाव कम करने के लिए कुछ मौकों पर बातचीत हुई लेकिन हल नहीं निकला. इसके बाद ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध कड़े होते गए.
इसी साल अहमदीनेजाद के उम्मीदवार को हराकर हसन रोहानी ईरान के राष्ट्रपति बने. रोहानी के सत्ता में आने से ईरान अंतरराष्ट्रीय मंच पर वापस जगह बनाने की कोशिश कर रहा है.
ओएसजे/एनआर (डीपीए, एपी, एएफपी, रॉयटर्स)