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समाज

शॉल बेचने वाले बोले, सब उनसे पूछते हैं कश्मीर का हाल

आमिर अंसारी
१२ फ़रवरी २०२०

सर्दी के मौसम में हर साल कश्मीरी शॉल विक्रेता दिल्ली की गलियों में घूमकर अपने उत्पाद बेचते हैं. अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से आम लोग उनसे कश्मीर के हालात के बारे में पूछने लगे हैं.

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Kashmir Händler
तस्वीर: DW/A. Ansari

कश्मीर के पहलगाम के रहने वाले सब्जार पिछले 10 सालों से हर साल दिल्ली में सर्दी के मौसम में शॉल, स्टोल और सूखे मेवे बेचने आते रहे हैं. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वह इस बार पहली बार दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में घूम-घूमकर शॉल और गर्म कपड़े बेच रहे हैं. सब्जार कहते हैं कि इस बार जब वह अपना माल बेचने निकले तो ग्राहकों के अलावा आम लोगों ने भी उनसे कश्मीर के ताजा हालात के बारे में जानना चाहा.

इस अनुभव के बारे में बताते हुए सब्जार कहते हैं, "ग्राहकों के अलावा आम लोगों ने भी हमसे जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बारे में प्रतिक्रिया जाननी चाही. हमने लोगों से यही कहा कि विशेष राज्य का दर्जा हटाने से हमें भविष्य में दिक्कतें आ सकती हैं. आज हमें नहीं तो भविष्य में हमारे बच्चों को दिक्कतें पेश आ सकती हैं. कश्मीर के हालात को देखते हुए उसे विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था लेकिन अब उसे हटा लिया गया है."

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कश्मीरी काम वाले गर्म कपड़े लोग बड़े शौक से खरीदते और पहनते आए हैं. तस्वीर: DW/A. Ansari

कश्मीर के छोटे कारोबारी देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर कश्मीर में बनी पश्मीना शॉल, गर्म कपड़े, केसर और सूखे मेवे बेचते हैं. कश्मीर के हथकरघा कारीगर साल भर की मेहनत के बाद शॉल और स्टोल तैयार करते हैं जिनमें जरी का बारीक काम होता है. ऊन से बनने वाली शॉल में भी कढ़ाई और डिजाइन गढ़ने में कारीगरों को काफी वक्त लगता है.

"ग्राहकों से रिश्ता परिवार जैसा"

24 साल के सुहेल अहमद कहते हैं, "दिल्ली हम जैसे आते थे इस बार भी वैसे ही आए हैं, हमारे ग्राहक पहले जैसे थे आज भी वैसे ही हैं. हमसे पहले भी वहां के हालात के बारे में पूछा जाता था और आज भी लोग पूछते हैं कि वहां कैसे हालात हैं. यहां से लोग कश्मीर घूमने के लिए जाना चाहते हैं. हमसे लोग पूछते हैं कि वहां कब जाना चाहिए."

सुहेल बताते हैं कि पहलगाम में इन दिनों पर्यटकों की आवाजाही ना के बराबर है जिस वजह से पर्यटन उद्योग मंदा है. सुहेल और सब्जार जैसे सैकड़ों कश्मीरी फेरीवाले देश के अलग-अलग शहरों में हर साल सर्दी के मौसम में शॉल, स्टोल और ऊन से बने गर्म कपड़े बेचने निकलते हैं. नवंबर से लेकर फरवरी तक वे कंधे पर गठरी लादकर गली-गली घूमते हैं और कश्मीरी कारीगरी के हुनर को ग्राहकों तक पहुंचाने का काम करते हैं.

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कढ़ाई का काम खास तौर पर पसंद किया जाता है. तस्वीर: DW/A. Ansari

सब्जार और सुहेल हफ्ते में 6 दिन सुबह से लेकर शाम तक फेरी लगाते हैं और छुट्टी वाले दिन मोबाइल पर फिल्म या फिर मैच देखना पसंद करते हैं. सब्जार कहते हैं, "कश्मीर में 2जी इंटरनेट की सुविधा दी जा रही है. दिल्ली में इंटरनेट अच्छा चलता है." राजनीति शास्त्र में एमए करने वाले सुहेल बताते हैं कि वह इंटरनेट का इस्तेमाल मोबाइल पर न्यूज और अपडेट्स के अलावा खेल और फिल्में देखने के लिए करते हैं. इसके अलावा सुहेल बताते हैं कि वह ग्राहकों से बातचीत करने के लिए व्हाट्सऐप का इस्तेमाल भी करते हैं.

पिछले साल अगस्त में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निरस्त कर दिया था. विशेष राज्य का दर्जा हटाए जाने पर सुहेल कहते हैं, "370 हटाए जाने के बाद घाटी के लोगों में घबराहट है, अगर लोग खुश होते तो वे खुशियां मना रहे होते, फिर इंटरनेट बंद नहीं होता और ना ही मोबाइल सेवा बंद की जाती. लोग खुशी की बात साझा करते हैं और जब दुख की बात है तभी वह दबाई जा रही है." सुहेल का कहना है कि विशेष राज्य का दर्जा हटाने से कश्मीर की संस्कृति और वहां की जनसांख्यिकी बदल जाएगी.

पर्यटन उद्योग ठप्प

370 हटाए जाने के बाद से कश्मीर में पर्यटन उद्योग ठप्प है और पाबंदियों की वजह से लोग घाटी जाने से हिचक रहे हैं. सब्जार और सुहेल की तरह ही शॉल बेचने का काम करने वाले बशीर अहमद भट कहते हैं, "दिल्ली में हमारा ग्राहकों से रिश्ता परिवार की तरह है और इस बार जब हम आए तो उस रिश्ते में कोई बदलाव नहीं दिखा. मुझे तो कोई फर्क महसूस नहीं हुआ." बशीर बताते हैं कि कैसे श्रद्धालुओं के अमरनाथ यात्रा के लिए पहलगाम पहुंचने पर वहां के लोग दिल खोलकर यात्रियों की मेहमाननवाजी करते हैं.

सब्जार, सुहेल और बशीर जैसे फेरीवाले मार्च के पहले या दूसरे हफ्ते में कश्मीर वापस लौट जाएंगे. घर पहुंचने के बाद वे कारीगरों को अगली सर्दी के लिए ऑर्डर देंगे और कुछ लोग पर्यटन के क्षेत्र में काम में लग जाएंगे, तो कुछ किसानी करेंगे. सुहेल कहते हैं कि अप्रैल के बाद से पर्यटकों के आने की उम्मीद है और वह इसकी तैयारी करेंगे और फिर अगली सर्दी के लिए दिल्ली आकर दोबारा इसी तरह से फेरी लगाएंगे.

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कुछ महीने गली गली घूम कर सामान बेचते हैं तो बाकी में कश्मीर में पर्यटन से जुड़े काम धंधे करते हैं.तस्वीर: DW/A. Ansari

पहलगाम होटल एंड रेस्तरां ओनर्स एसोसिएशन का कहना है कि घाटी आने के लिए पर्यटकों की रूचि बढ़ रही है और वह इस बारे में पूछताछ भी कर रहे हैं. दूसरी ओर हाल ही में पेश बजट में भारत के वित्त मंत्री ने जम्मू-कश्मीर के लिए 30,757 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. केंद्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत मिले जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करते हुए राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों-जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था.

इस बीच, केंद्र सरकार द्वारा 12 और 13 फरवरी को विदेशी राजदूतों का दूसरा दल कश्मीर दौरे पर लाया गया है. इस प्रतिनिधिमंडल में फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड, जर्मनी, कनाडा और अफगानिस्तान समेत 25 विदेशी राजदूत शामिल हैं. इससे पहले भी एक विदेशी दल कश्मीर का दौरा कर चुका है. इन दौरे के जरिए कहीं ना कहीं केंद्र सरकार विदेशों में यही संदेश भेजना चाहती है कि कश्मीर में हालात सामान्य हो चुके हैं.

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