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वोट के बदले नोट मामले में पुलिस की खिंचाई

१५ जुलाई २०११

वोट के बदले नोट मामले में पुलिस जांच पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख. जांच में लापरवाही बरतने के चलते कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई और दो हफ्तों के भीतर नई रिपोर्ट पेश करने को कहा. अब तक मामले में एफआईआर भी दर्ज नहीं हुई.

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तस्वीर: cc-by-nc-sa roop1977

भारत की सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली पुलिस की जांच से वह खुश नहीं है और किसी गंभीर अपराध को साबित करने का यह तरीका नहीं है. कोर्ट के मुताबिक दो साल में अब तक जांच में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है जिससे वह चिंतित है. मामला तीन साल पुराना है.

पूर्व चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह की ओर से दायर याचिका में उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील की गई है जो वोट के बदले नोट घोटाले में शामिल हैं. भारत-अमेरिका परमाणु करार के विरोध के चलते यूपीए सरकार को 2008 में विश्वासमत का सामना करना पड़ा और उस दौरान भारतीय जनता पार्टी के तीन सांसदों ने संसद में नोटों की गड्डियां लहराते हुए दावा किया कि सरकार बचाने के लिए वोट के बदले उन्हें रिश्वत देने की पेशकश की गई.

याचिका पर सुनवाई करते समय कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश की गई स्टेटस रिपोर्ट पर हैरानी जताते हुए कहा, "यह जांच नहीं है. कुछ लोगों के बयान के आधार पर आप मुझे एक कहानी सुना रहे हैं. आप किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे. लोकसभा सचिव की शिकायत पर लापरवाही भरी कार्रवाई की गई है." कोर्ट ने पुलिस से पूछा कि किसी को हिरासत में लेकर अब तक पूछताछ क्यों नहीं की गई है.

कोर्ट ने पुलिस से दो हफ्तों के अंदर नई रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है. लिंगदोह ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि विश्वासमत के दौरान वोट के बदले नोट कांड में दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है. 22 जुलाई 2008 के इस कांड में अब तक दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने एफआईआर दर्ज नहीं की है.

संयुक्त संसदीय समिति के चेयरमैन ने भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है. इसलिए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट से एसआईटी बनाने का अनुरोध किया है. बीजेपी के तीन सांसदों अशोक अर्गल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा ने वोट के बदले रिश्वत की पेशकश किए जाने आरोप लगाया.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए जमाल

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