विवादों में है सेतुसमुद्रम
५ जुलाई २०१२भारत के पौराणिक महत्व तथा करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक रामसेतु पर सेतु समुद्रम परियोजना बनाई गई है. इसमें पौराणिक रामसेतु को तोड़कर भारत के दक्षिणी हिस्से के इर्द गिर्द समुद्र में छोटा नौवहन मार्ग बनाए जाने पर केंद्रित है. लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए रामसेतु के अलावा दूसरा मार्ग न तो आर्थिक तौर पर लाभकारी है और न ही पर्यावरण की दृष्टि से ठीक है. सॉलिसिटर जनरल आर नरीमन ने जस्टिस एचएल दत्तू और सीके प्रसाद की बेंच को यह जानकारी दी.
भौगोलिक स्थिति: भारत के दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के बीच समुद्र में 48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग के उपग्रह से खींचे गए चित्रों को अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (नासा) ने जब 1993 में दुनिया भर में जारी किया तो भारत में इसे लेकर राजनीतिक विवाद पैदा हो गया था.
इस पुल जैसे भू-भाग को रामसेतु कहा जाने लगा. ईसाई या पश्चिमी लोग इसे एडम ब्रिज कहते हैं. रामसेतु का चित्र नासा ने 14 दिसम्बर 1966 को जेमिनी-11 से अंतरिक्ष से प्राप्त किया था. इसके 22 साल बाद आई.एस.एस 1 ए ने तमिलनाडु तट पर स्थित रामेश्वरम और जाफना द्वीपों के बीच समुद्र के भीतर भूमि-भाग का पता लगाया और उसका चित्र लिया. इससे अमेरिकी उपग्रह के चित्र की पुष्टि हुई. वैज्ञानिकों में इसको लेकर विवाद है. कुछ वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक पुल मानते हैं तो कुछ इसे मानव निर्मित मानते हैं.
क्या है रामसेतु : नासा और भारतीय सेटेलाइट से लिए गए चित्रों में धनुषकोडि से जाफना तक जो एक पतली-सी द्वीपों की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु माना जाता है. भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच उथली चट्टानों की एक ऋंखला है. समुद्र में इन चट्टानों की गहराई सिर्फ 3 फुट से लेकर 30 फुट के बीच है. इस पुल की लंबाई लगभग 48 किलोमीटर है. यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य को एक दूसरे से अलग करता है. इस इलाके में समुद्र बेहद उथला है.
कहा जाता है कि 15वीं शताब्दी तक इस पुल पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था, लेकिन तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया. 1480 ईस्वी में यह चक्रवात के कारण टूट गया और समुद्र का जल स्तर बढ़ने के कारण यह डूब गया. दूसरी ओर पुल की प्राचीनता पर शोधकर्ता एकमत नहीं है. कुछ इसे 3500 साल पुराना पुराना बताते हैं तो कुछ इसे आज से 7000 हजार वर्ष पुराना बताते हैं. कुछ का मानना है कि यह 17 लाख वर्ष पुराना है.
क्या है सेतु समुद्रम परियोजना: 2005 में भारत सरकार ने सेतुसमुद्रम परियोजना का ऐलान किया गया. भारत सरकार सेतुसमुद्रम परियोजना के तहत तमिलनाडु को श्रीलंका से जोड़ने की योजना पर काम कर रही है. इससे व्यापारिक फायदा होने की बात कही जा रही है.
इसके तहत रामसेतु के कुछ इलाके को गहरा कर समुद्री जहाजों के आने जाने लायक बनाया जाएगा. इसके लिए सेतु की चट्टानों को तोड़ना जरूरी है. इस परियोजना से रामेश्वरम देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बन जाएगा. तूतिकोरन हार्बर एक नोडल पोर्ट में तब्दील हो जाएगा और तमिलनाडु के तटीय इलाकों में कम से कम 13 छोटे एयरपोर्ट बन जाएंगे. माना जा रहा है कि सेतु समुद्रम परियोजना पूरी होने के बाद सारे अंतरराष्ट्रीय जहाज कोलंबो बंदरगाह का लंबा मार्ग छोड़कर इसी नहर से गुजरेंगे. अनुमान है कि 2000 या इससे अधिक जलपोत प्रतिवर्ष इस नहर का उपयोग करेंगे.
मार्ग छोटा होने से सफर का समय और लंबाई तो छोटी होगी ही, संभावना है कि जलपोतों का 22 हजार करोड़ रुपये का तेल बचेगा. 19वें वर्ष तक परियोजना 5000 करोड़ से अधिक का व्यवसाय करने लगेगी जबकि इसके निर्माण में 2000 करोड़ की राशि खर्च होने का अनुमान है.
परियोजना से नुकसान : रामसेतु को तोड़े जाने से ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगली सुनामी से केरल में तबाही का जो मंजर होगा उससे बचाना मुश्किल हो जाएगा. हजारों मछुआरे बेरोजगार हो जाएंगे. इस क्षेत्र में मिलने वाले दुर्लभ शंख व शिप जिनसे 150 करोड़ रुपए की वार्षिक आय होती है, से लोगों को वंचित होना पड़ेगा. जल जीवों की कई दुर्लभ प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी. भारत के पास यूरेनियम के सर्वश्रेष्ठ विकल्प थोरियम का विश्व में सबसे बड़ा भंडार है. यदि रामसेतु को तोड़ दिया जाता है तो भारत को थोरियम के इस अमूल्य भंडार से हाथ धोना पड़ेगा.
सेतु समुद्रम पर सरकार राम की शरण में: किंवदंती के अनुसार भगवान राम ने जहां धनुष मारा था उस स्थान को 'धनुषकोटि' कहते हैं. राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने के लिए उक्त स्थान से समुद्र में एक पुल बनाया था, इसका उल्लेख 'वाल्मिकी रामायण' में मिलता है.
केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल किए गए एक हलफनामे में कहा था कि रामसेतु को खुद भगवान राम ने अपने एक जादुई बाण से तोड़ दिया था. इसके सबूत के तौर पर सरकार ने 'कंबन रामायण' और 'पद्मपुराण' को पेश किया. सरकार ने रामसेतु के वर्तमान हिस्से के बारे में कहा कि यह हिस्सा मानव निर्मित न होकर भौगोलिक रूप से प्रकृति द्वारा निर्मित है. इसमें रामसेतु नाम की कोई चीज नहीं है.
विवाद का कारण : इससे पूर्व जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने सितंबर 2007 में उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में रामायण में उल्लिखित पौराणिक चरित्रों के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिए थे, जिसे हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाना माना गया.
एएसआई के हलफनामे में उसके निदेशक (स्मारक) सी. दोरजी ने कहा था कि राहत की मांग कर रहे याचिकाकर्ता मूल रूप से वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास रचित राम चरित्र मानस और पौराणिक ग्रंथों पर विश्वास कर रहे हैं, जो प्राचीन भारतीय साहित्य का महत्वपूर्ण अंग हैं, लेकिन इन्हें ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं कहा जा सकता और उनमें वर्णित चरित्रों तथा घटनाओं को भी प्रामाणिक सिद्ध नहीं किया जा सकता.
इससे पूर्व अहमदाबाद के मैरीन ऐंड वाटर रिसोर्सेज ग्रुप स्पेस एप्लिकेशन सेंटर ने कहा कि माना जाता है कि एडम्स ब्रिज या रामसेतु भगवान राम ने समुद्र पारकर श्रीलंका जाने के लिए बनाया था, जो मानव निर्मित नहीं है. सरकार और एएसआई ने भी इस मामले में इसी अध्ययन से मिलते जुलते विचार प्रकट किए हैं.
रामसेतु की रक्षा के लिए लड़ रहे याचिकाकर्ता ने अदालत से रामसेतु को संरक्षित एवं प्राचीन स्मारक घोषित करने का अनुरोध कर रहे हैं. यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया था कि रामेश्वरम को श्रीलंका से जोड़ने वाले सेतुसमुद्रम के निर्माण के समय रामसेतु को नष्ट न किया जाए. इस याचिका पर 14 सितम्बर 20007 को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई.
सरकारी हलफनामा: विवाद के चलते भारत सरकार ने हलमनामे को वापस लेते हुए 29 फरवरी 2008 को उच्चतम न्यायालय में नया हलफनामा पेश कर कहा कि रामसेतु के मानव निर्मित अथवा प्राकृतिक बनावट सुनिश्चित करने के लिए कोई वैज्ञानिक विधि मौजूद नहीं है. इस विवाद के चलते तमिलनाडु की करुणानिधि सरकार ने रामसेतु को तोड़कर सेतु समुद्रम परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कमर कस ली. हालांकि उच्चतम न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि खनन गतिविधियों के दौरान रामसेतु को किसी प्रकार का नुकसान नहीं हो, लेकिन इस आदेश का पालन किस हद तक किया जा रहा है यह राज्य सरकार ही बता सकती है.
सरकारी दावे का खंडन : रामकथा के लेखक नरेंद्र कोहली के अनुसार सरकार यह झूठ प्रचारित कर रही है कि राम ने लौटते हुए सेतु को तोड़ दिया था. जबकि रामायण के मुताबिक राम लंका से वायुमार्ग से लौटे थे, तो वह पुल कैसे तुड़वा सकते थे. रामायण में सेतु निर्माण का जितना जीवंत और विस्तृत वर्णन मिलता है, वह कल्पना नहीं हो सकता. यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया, मगर इसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता.
लालबहादुर शास्त्री विद्यापीठ के लेक्चरर डॉ. राम सलाई द्विवेदी का कहना है कि वाल्मीकि रामायण के अलावा कालिदास ने 'रघुवंश' के तेरहवें सर्ग में राम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है. इस सर्ग में राम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है. इसलिए यह कहना गलत है कि राम ने लंका से लौटते हुए सेतु तोड़ दिया था.
भारतीय नौ सेना की चिंता : सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर चल रही राजनीति के बीच कोस्ट गार्ड के डायरेक्टर जनरल आर.एफ. कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि यह परियोजना देश की सुरक्षा के लिए एक खतरा साबित हो सकती है. वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर ने कहा था कि इसकी पूरी संभावना है कि इस चैनल का इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते हैं. वाइस एडमिरल कॉन्ट्रैक्टर का इशारा श्रीलंकाई तमिल उग्रवादियों तथा अन्य आतंकवादियों की ओर है, जो इसका इस्तेमाल भारत में घुसने के लिए कर सकते हैं.
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख : वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब श्रीराम ने सीता को लंका पर शासन करने वाले रावण से छुड़ाने के लिए लंका द्वीप पर चढ़ाई की, तो उस वक्त उन्होंने सभी देवताओं का आह्वान किया और युद्ध में विजय के लिए आशीर्वाद मांगा था. इनमें समुद्र के देवता वरुण भी थे. वरुण से उन्होंने समुद्र पार जाने के लिए रास्ता मांगा था. जब वरुण ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी तो उन्होंने समुद्र को सुखाने के लिए धनुष उठाया.
डरे हुए वरुण ने क्षमायाचना करते हुए उन्हें बताया कि श्रीराम की सेना में मौजूद नल-नील नाम के वानर जिस पत्थर पर उनका नाम लिखकर समुद्र में डाल देंगे, वह तैर जाएगा और इस तरह श्रीराम की सेना समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर सकेगी. इसके बाद श्रीराम की सेना ने लंका के रास्ते में पुल बनाया और लंका पर हमला कर विजय हासिल की.
नल सेतु : वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग पांच दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन थी. रामायण में इस पुल को ‘नल सेतु' की संज्ञा दी गई है. नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था.- (वाल्मीकि रामायण-6/22/76). वाल्मीकि रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था. कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आए थे. कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था.- (वाल्मीकि रामायण- 6/22/62)
गीताप्रेस गोरखपुर से छपी पुस्तक श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-कथा-सुख-सागर में वर्णन है कि राम ने सेतु के नामकरण के अवसर पर उसका नाम ‘नल सेतु' रखा. इसका कारण था कि लंका तक पहुंचने के लिए निर्मित पुल का निर्माण विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक से संपन्न हुआ था. महाभारत में भी राम के नल सेतु का जिक्र आया है. अन्य ग्रंथों में कालिदास की रघुवंश में इस सेतु का वर्णन है. स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी राम सेतु का जिक्र किया गया है.
रिपोर्ट: वेब दुनिया डेस्क
संपादन: महेश झा