वरदान या अभिशाप है बायोफ्यूल?
२६ जून २०१८ग्लोबल वॉर्मिंग, ग्रीन हाउस गैस और ओजोन लेयर में छेद, ये ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे निपटने के लिए विकसित देश कम धुंआ निकालने वाली कारों पर जोर दे रहे हैं. ग्रीन हाउस गैस को बनाने में ट्रांसपोर्ट की भूमिका 22 फीसदी होती है. इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए बायोफ्यूल्स यानि एक खास किस्म की फसल से बनने वाले ईंधन को इस्तेमाल में लाया जा रहा है जिसमें ऑयलसीड, ताड़ का तेल और मक्के की फसल प्रमुख है.
ब्राजील ने तो 40 साल पहले ही इथनॉल का प्रयोग गाड़ियों में शुरू कर दिया था. 2005 में अमेरिका ने पहला नवीकरणीय फ्यूल स्टैंडर्ड लागू किया और कहा कि 2012 तक 7.5 अरब गैलन बायोफ्यूल का इस्तेमाल किया जाएगा. मक्के की पैदावार के लिए प्रसिद्ध अमेरिका आज इथनॉल का सबसे बड़ा उत्पादक है. लेकिन क्या ऐसा करना एक अच्छा कदम है और क्या वाकई हमारा पर्यावरण इससे सुरक्षित हो रहा है? शायद नहीं.
इस बारे में पर्यावरणविद और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट से जुड़े प्रो. बी.डी. त्रिपाठी का कहना है, "पेट्रोल-डीजल की तुलना में बायोफ्यूल बेहतर हो सकते हैं, लेकिन यह समाधान नहीं है. मिथेनॉल या मिथेन गैस का इस्तेमाल ठीक है पर बायोफ्यूल से कार्बनडाइऑक्साइड का निकलना खतरनाक है."
फसलों को पैदा करने की होड़
बायोफ्यूल के बढ़ते इस्तेमाल के साथ ही पूरी दुनिया में मक्का उगाने की मानो होड़ सी शुरू हो गई है. दक्षिण अमेरिका और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों में अच्छी आमदनी के चलते किसान सिर्फ मक्का उगा रहे हैं. इसका नतीजा यह हुआ है कि दूसरी फसलों की पैदावार कम होती जा रही है और खान-पान की उपलब्धता पर इसका असर पड़ा है. कम पैदावार नाटकीय रूप से महंगाई बढ़ा रही है जो सरकारों के लिए चुनौती है.
2016 में की गई यूरोपीयन कमीशन की स्टडी बताती है कि ईयू के नवीकरणीय कानून के बाद कार्बन का उत्सर्जन बढ़ा है, कम नहीं हुआ. इसकी एक वजह यह है कि दुनिया भर के किसान बायोफ्यूल की पैदावार करना चाहते हैं और अब खेती के लिए जंगलों की कटाई भी शुरू हो गई है. यह इतना भयानक है कि इसका अंदाजा इससे बात से लगता है कि पर्यावरण को बचाने के नाम पर अब जंगलों की कटाई शुरू हो रही है. भूमि के इस्तेमाल को बेतरतीब तरीके से बदलने से नुकसान और बढ़ेगा.
कुछ बायोफ्यूल पुराने ईंधनों से भी खतरनाक
पर्यावरणविद् और एंटी-हंगर कैंपेनर सरकारों से अनुरोध कर रहे हैं कि बायोफ्यूल के इस्तेमाल पर खुली छूट पर लगाम लगाई जाए.
ऑक्सफैम से जुड़े कैंपेनर मार्क ओलिवियर हरमन कहते हैं कि सरकारों और लोगों को यह समझना होगा कि बायोफ्यूल के लिए फसलों को उगाना जलवायु परिवर्तन का उपाय नहीं, बल्कि समस्या का हिस्सा है.
पिछले दिनों ब्रसेल्स में पर्यावरणविदों की बायोफ्यूल बनाने वाली कंपनियों और फार्मर ग्रुप कोपा कोगेका से भिड़ंत हो गई. पर्यावरणविदों ने कहा कि खाने में प्रयोग किए जाने वाले तेल, सोयाबीन तेल और ताड़ के तेल से बायोफ्यूल बनाए जाने पर उन्हें आपत्ति है. तर्क दिया कि बायोडीजल अगर खाने के तेल से बनेगा तो आम लोगों के लिए इसकी उपलब्धता कम हो जाएगी. यूरोपीय बाजार में खाने का तेल सबसे सस्ता है और तीन-चौथाई हिस्से पर इसका कब्जा है. वहीं, बायोडीजल में ताड़ के तेल का इस्तेमाल गलत है क्योंकि इससे आम ईंधन के मुकाबले 3 गुना ग्रीन हाउस गैस निकलती है. बायोडीजल बनाने की अंधी दौड़ में दक्षिणपूर्वी एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के जंगलों का सफाया किया जा रहा है.
पृथ्वी को बर्बाद कर सकती है बर्फीली मीथेन
तेल के बाजार पर नजर रखने वाले ऑयल वर्ल्ड के मुताबिक, ताड़ के तेल का 51 फीसदी यूरोप की कार और ट्रकों में इस्तेमाल किया जाता है. यूरोप में लोगों को बायोडीजल से होने वाले नुकसान के बारे में अंदाजा ही नहीं है. वहीं, बायोडीजल इंडस्ट्री का कहना है कि पर्यावरणविदों और पर्यावरण संस्थाओं के पास ठोस सबूत या नतीजे नहीं है जिससे नवीकरण को रोका जा सके और सरकारें वापस पुराने ईंधनों को इस्तेमाल करे.
यूरोपीय संघ ने फसलों पर लगाई लगाम
इस साल जून में यूरोपीय संघ के कानूनविदों ने बायोफ्यूल के बेतरतीब इस्तेमाल पर लगाम लगाने का फैसला किया है. हालांकि उन्होंने ताड़ और सोयाबीन तेल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने से मना कर दिया. 2020 से 2030 के बीच यातायात में बायो ईंधन के सही इस्तेमाल पर जोर दिया. अमेरिका में बायोफ्यूल के प्रयोग पर दोबारा विचार किया जा रहा है और अब तक अपनी नीतियों पर गर्व करने वाला ब्राजील पसोपेश में है.
ऐसा माना जा रहा है कि जल्द ही एडवांस्ड बायोफ्यूल का इस्तेमाल देखने को मिलेगा और जल्द ही फसलों के बजाए काई से ईंधन बनाया जाएगा. यह अस्तित्व में आ चुका है, लेकिन आम लोगों के लिए अभी इसे लागू नहीं किया गया है.
रिपोर्ट: विनम्रता चतुर्वेदी, डेव कीटिंग