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वक्त में खाक मुंबई के शानदार फिल्म स्टूडियो

११ मई २०११

भारतीय सिनेमा को दुनिया भर में पहचान देने वाला बॉम्बे टॉकीज इतिहास में खो गया है. बॉम्बे टॉकीज में अब फिल्मी कलाकार नहीं दिखते. बस कूड़े का अंबार ही नजर आता है.

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खाक में स्टुडियो

79 साल के इस्माइल मोहम्मद गौरी जब बॉम्बे टॉकीज के बारे में बात करते हैं तो उनकी आंखों से आंसू निकल आते हैं. बॉम्बे टॉकीज उन दिनों सबसे बड़ा प्रोडक्शन हाउस हुआ करता था. सिनेमा प्रेमियों को शायद इस बात से दुःख होगा कि कई शानदार और मशहूर फिल्में देने वाला स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज इतिहास के पन्नों में दफन हो चुका है.इस्माइल को आज भी याद हैं कि कैसे उन्होंने बॉम्बे टॉकीज के कैंपस में अपने बचपन गुजारे. वह बताते हैं कि बड़ी-बड़ी कारें को देख वह हैरान होते थे. वह और उनके दोस्त फिल्मी हस्तियों को पास के रेस्तरां में खाना खाते देखा करते थे.

इस्माइल कहते हैं कि जब वह इस जगह को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि वे दिन कभी हुआ ही नहीं करते थे. मुंबई के मलाड इलाके बने बॉम्बे टॉकीज में अब सिर्फ यादें बची हैं. और कूड़े का अंबार लगा है. बॉम्बे टॉकीज सिर्फ धूल में बस कर रह गया है. इस्माइल के मुताबिक उन्हें यकीन नहीं होता कि इस स्टूडियो का यह हश्र हो गया है. वह कहते हैं कि उनकी मौत के बाद शायद ही कोई होगा जो उन गौरवशाली दिनों को याद करे.

Film My Name is Khan FLASH Galerie
बॉलीवुड आगे.. पुरानी यादें दफ्नतस्वीर: AP

तेज दौड़ में बॉलीवुड

दो साल बाद भारतीय सिनेमा के सौ साल पूरे हो जाएंगे. भारतीय सिनेमा अब काफी आगे बढ़ चुका है. बॉलीवुड के नाम से मशहूर भारतीय सिनेमा का बाजार सालाना 1.85 अरब डॉलर का कारोबार कर रहा है. भारत की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र थी. यह मूक फिल्म हिन्दू पौराणिक कथा पर आधारित थी. इसी के साथ शुरू हुई भारत की रजतपट की गाथा का नाम आगे जाकर हॉलीवुड की तर्ज पर बॉलीवुड हो गया. मराठी फिल्म 'हरिश्चंद्र ची फैक्ट्री' भारत की पहली फिल्म के निर्माण पर आधारित थी, यह ऑस्कर प्रतियोगिता में आधिकारिक तौर पर 2010 में बेस्ट फॉरन लैंग्वेज कैटगरी में नामांकित हुई.

इस्माइल जैसे कई और लोगों को मलाल है कि राजा हरिश्चंद्र फिल्म को हम आज भी याद करते हैं लेकिन बॉम्बे टॉकीज और इन जैसी महत्पूर्ण इमारतों में जहां भारतीय फिल्म बढ़ी हैं, उन्हें भूल जाते हैं.

जाने माने फिल्म निर्देशक महेश भट्ट के मुताबिक हम उन पुरानी चीजों को कबाड़ खाने में फेंक देते हैं, जो हमारे लिए धन नहीं जुटा पाती हैं.

भट्ट आगे कहते हैं, "हम भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहे हैं लेकिन यह कड़वा सच है कि न सरकारें और न ही फिल्म इंडस्ट्री हमारे सिनेमाई विरासत के बारे में सोचती है." बॉम्बे टॉकीज ने ही दिग्गज कलाकारों जैसे दिलीप कुमार, अशोक कुमार, देवानंद, राज कपूर और देविका रानी को पहचान दी. इन कलाकारों ने अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत यहीं से की. उन दिनों गायिका लता मंगेशकर और गायक किशोर कुमार भी स्टूडियो में देखे जा सकते थे. 1934 में देविका रानी और हिमांशु राय ने बॉम्बे टॉकीज की स्थापना की. एक समय ऐसा था कि जब इस स्टूडियो में पांच हजार से ज्यादा लोग काम किया करते थे. इसे एशिया का सबसे बढ़िया स्टूडियो कहा जाता था. तकनीक के मामले में यह स्टूडियो औरों से कहीं आगे था. 1940 में हिमांशु राय के निधन के बाद कंपनी की बागडोर देविका रानी ने संभाल ली, लेकिन उनके कामकाज के तरीके की वजह से जल्द ही कंपनी के भागीदारों के बीच मतभेद उभरने लगे. 1954 में बंद होने के बाद से तो यह कबाड़खाने में तबदील हो गया. लोग यहां कूड़ा फेंकते हैं. बढ़ई और मिस्तरी भी अपना छोटा मोटा काम यहीं करते हैं.

वक्त में खाक

बीते सालों में तीन बार लगी में आग में सब कुछ खाक हो गया. बस बचा है तो 1949 में बनी फिल्म महल का टूटा फूटा सेट. महल बॉलीवुड की पहली हॉरर फिल्म थी.

वक्त के साथ मलाड की भी तस्वीर बदल गई है. अब यहां नए बाजार खुल गए हैं, कॉल सेंटर्स भी देखे जा सकते हैं. अब शायद कोई भारतीय सिनेमा की विरासत को देखने यहां नहीं आता. पास की फैक्ट्री में काम करने वाले कमलेश पांडे बताते हैं कि शायद ही कोई अब उस फिल्मी दुनिया को देखने आता है. कोई नहीं जानता कि पहले यहां कोई ढांचा भी हुआ करता था. कमलेश पांडे के मुताबिक फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह भूला हुआ अतीत है, और वे लोग इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते हैं. रोजाना के कामों के अलावा उनके पास ऐसी बातें सोचने के लिए समय भी नहीं है.

क्यों भूल गए विरासत

बॉम्बे टॉकीज ही नहीं कई ऐसी ऐतिहासिक इमारते हैं जो भारत में गुमनामी की मौत मर रही है. सरकार का ढुलमुल रवैया, सही समय पर मरम्मत न होना और इनकी देखरेख के लिए कोष में पैसे की कमी. इन सब वजहों से ये इमारतें इतिहास के पन्नों में खो रही हैं. एक जमाने में मुंबई के बेहद मशहूर होटल वॉट्सन का भी यही हाल है. इसी होटल में पहली दफा लुमेयर ब्रदर्स ने 1896 में अपने आविष्कार सिनेमाटोग्राफी का प्रदर्शन किया था. सालों से नजरंदाजी के कारण वॉट्सन होटल का हुलिया ही बदल गया है.फिल्मिस्तान स्टूडियो को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि कहीं उसके मालिक उसे बेच न दें. हालांकि स्टूडियो के मालिक इस बात से इनकार करते आए हैं. फिल्म इतिहासकार अमृत गांगर कहते हैं कि प्रशासन भारतीय सिनेमा में बॉम्बे टॉकीज की पहचान को एक दिन समझेगा और उसे सही दर्जा देगा. वह कहते हैं कि उन्होंने हेरिटेज कमेटी के सदस्यों को पत्र लिखा है ताकि इस बारे में कुछ किया जा सके. उनके मुताबिक बॉम्बे टॉकीज को देख उन्हें शर्म आती है कि कैसे एक शानदार स्टूडियो कूड़ेदान बन गया.

रिपोर्टः एजेंसियां/ आमिर अंसारी

संपादनः उभ

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