लोकसभा चुनाव 1957: बरकरार रहा पंडित नेहरू का करिश्मा
१२ अप्रैल २०१९लोकसभा का दूसरा आम चुनाव 1957 में हुआ. तमाम आशंकाओं के विपरीत 1952 के मुकाबले इस चुनाव में कांग्रेस की सीटें और वोट दोनों बढ़े. इसके कारण भारतीय राजनीति में भाषाई विभाजन को लेकर लगाई जाने वाली अटकलें भी समाप्त हो गईं और जाति-संप्रदाय की तरह भाषा के आधार पर बड़े राजनीतिक विभाजन का खतरा समाप्त हो गया. इसी चुनाव में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव लड़े थे. तीन सीटों में एक पर उन्हें जीत मिली, जबकि एक पर तो उनकी जमानत ही जब्त हो गई.
1952 के चुनाव के मुकाबले इस चुनाव की पूरी प्रक्रिया काफी कम दिनों तक चली थी. 19 जनवरी से शुरू होकर एक मार्च 1957 तक चलने वाले इस चुनावी जलसे के भी केंद्रीय व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू ही थे. एक चुनी हुई सरकार के पांच साल तक मुखिया रह चुके नेहरू के खिलाफ कोई बड़ा मामला नहीं उठा था. कांग्रेस के भीतर उनका नेतृत्व निर्द्वंद्व था. कहीं से कोई चुनौती नहीं थी. सारे कांग्रेसी क्षत्रप भी नेहरू के आगे नतमस्तक थे. विपक्ष में भी एका नहीं था और वह कई दलों और गुटों में बंटा हुआ था.
बंटा विपक्ष
कम्युनिस्ट अलग झंडा उठाए हुए थे तो तो सोशलिस्टों के भी कई खेमे थे. 1952 के आम चुनाव के बाद आचार्य जेबी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी (केएमपीपी) और जयप्रकाश-लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी के विलय से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनी थी, लेकिन 1955 आते-आते उसका विभाजन हो गया. डॉ लोहिया और उनके समर्थकों ने अपनी अलग सोशलिस्ट पार्टी बना ली थी. जनसंघ का प्रभाव क्षेत्र सीमित था. उसके संस्थापक और सबसे बड़े नेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का देहांत हो चुका था. लेकिन 1957 के चुनाव में ही जनसंघ को अटल बिहारी वाजपेयी जैसा नेता मिला.
भारतीय राजनीति का अटल सितारा
1957 में लोकसभा में कुल 494 सीटें थीं. 494 जीते और इतने ही उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. कांग्रेस 490 सीटों पर चुनाव लड़ी और 371 यानी तीन चौथाई से अधिक सीटें जीतने में सफल रही. 1952 के मुकाबले उसकी सीटों में सात का इजाफा हुआ. पहले आम चुनाव के 45 से बढ़कर उसका मत प्रतिशत 47.8 हो गया. उसके मात्र दो उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई.
कांग्रेस के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन उसके और कांग्रेस के बीच फासला बहुत ज्यादा था. सीपीआई ने 110 सीटों पर लड़कर 27 पर जीत हासिल की. उसे नौ फीसदी वोट मिले और उसके 16 प्रत्याशियों को जमानत गंवानी पड़ी. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के खाते मे 19 सीटें आईं. वह 189 पर चुनाव लड़ी थी जिनमें से 55 पर उसे जमानत गंवानी पड़ी थी. पीएसपी को इस चुनाव में 10.4 फीसदी वोट मिले थे. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की पूर्वगामी पार्टी जनसंघ ने 130 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जीत उसे महज चार सीटों पर ही मिली. प्राप्त मतों का प्रतिशत तीन ही रहा. उसके 57 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी.
क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व
करीब 119 सीटों पर क्षेत्रीय दल चुनाव लड़े थे, जिनमें से 31 सीटों पर उनकी जीत हुई और 40 पर जमानत गंवानी पड़ी. क्षेत्रीय दलों के खाते में 7.6 प्रतिशत मत गए थे. कुल 1519 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. 481 निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे. इनमें से 42 जीते और 324 को अपनी जमानत गंवानी पड़ी. निर्दलीय उम्मीदवारों को कुल 19 प्रतिशत वोट मिले थे. इस चुनाव में कुल 45 महिलाएं चुनाव लड़ी थीं जिनमें से 22 जीती और आठ की जमानत जब्त हो गई.
इस चुनाव में भी दो तरह के लोकसभा क्षेत्र थे. 312 उम्मीदवार एक सीट वाले क्षेत्रों से और 182 सांसद दो सीट वाले क्षेत्रों से चुनकर लोकसभा में पहुंचे थे. पिछली बार के मुकाबले इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या करीब दो करोड़ बढ़कर 19.36 करोड़ हो गई थी. 1957 में 12.05 करोड़ मतदाताओं ने अपने मत का इस्तेमाल किया था यानि मतदान का प्रतिशत 63.74 रहा. इस चुनाव में सरकारी खजाने से करीब 5.9 करोड़ रुपए खर्च हुए. 1952 की ही तरह 1957 में भी चुनाव प्रचार पर सादगी का असर रहा. पैदल, साइकिल, तांगा और रिक्शा ही चुनाव प्रचार के मुख्य साधन थे. कार पर बड़े नेता ही घूमते थे. एक लोकसभा क्षेत्र में एक गाड़ी का प्रबंध करना भी बड़ी बात थी.
किसी को नहीं मिल सकी आधिकारिक विपक्ष की मान्यता: इस चुनाव का दिलचस्प पहलू यह रहा कि पहले आम चुनाव की तरह इस बार भी चुनाव के बाद जो लोकसभा गठित हुई उसमें किसी एक विपक्षी दल को इतनी सीटें भी नहीं मिल पाई कि उसे सदन में आधिकारिक विपक्षी दल की मान्यता दी जा सके. इस कारण सदन बिना नेता विरोध दल के ही रहा. ऐसा 1952 के चुनाव में भी हुआ था. उसमें भी किसी राजनीतिक दल को आधिकारिक विरोधी दल का दर्जा नहीं मिला था.
भारत के प्रधानमंत्री
दिग्गज जो लोकसभा पहुंचे
लोकसभा का दूसरा आम चुनाव एक लिहाज से खास महत्वपूर्ण रहा. इस चुनाव में पहली बार ऐसे चार बड़े नेता चुनाव लड़े और जीते जो आगे चलकर भारतीय राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे. इलाहाबाद से कांग्रेस के टिकट पर लालबहादुर शास्त्री जीते. सूरत से कांग्रेस के ही टिकट पर मोरारजी देसाई जीते थे. इसी चुनाव में बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार लोकसभा में पहुंचे थे. बाद में ये तीनों देश के प्रधानमंत्री बने. इसी चुनाव में मद्रास की तंजावुर लोकसभा सीट से आर. वेंकटरमन चुनाव जीते जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने.
ग्वालियर राजघराने की विजया राजे सिंधिया भी गुना से 1957 में पहली बार चुनाव जीती थीं. ताउम्र संघ परिवार से जुड़ी रहीं विजया राजे ने अपना यह पहला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीता था. 1952 में चुनाव हार चुके प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के दिग्गज आचार्य जेबी कृपलानी 1957 का चुनाव बिहार के सीतामढ़ी संसदीय क्षेत्र से जीते. इसी तरह 1952 में हारे दिग्गज कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृत डांगे को भी 1957 में जीत मिली. वे मुंबई (मध्य) से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर जीते थे.
मुंबई (उत्तरी) से वीके कृष्ण मेनन, गुजरात के साबरकांठा से गुलजारी लाल नंदा, पंजाब के जालंधर से स्वर्णसिंह, बिहार के सहरसा से ललित नारायण मिश्र, पश्चिम बंगाल के आसनसोल से अतुल्य घोष, उत्तर प्रदेश के बस्ती से केडी मालवीय, बांदा से राजा दिनेशसिंह और मध्यप्रदेश के बालौदा बाजार (अब छत्तीसगढ़ में) से विद्याचरण शुक्ल भी चुनाव जीतने में सफल रहे थे. सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता एके गोपालन केरल के कासरगौड़ा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीते थे.
बिहार के बाढ़ से तारकेश्वरी सिन्हा, पश्चिम बंगाल के बशीरहाट से रेणु चक्रवर्ती ओर अंबाला से सुभद्रा जोशी भी दोबारा चुनाव जीतने मे सफल रही थीं. सीतापुर से उमा नेहरू भी चुनाव जीती थीं. जाने-माने समाजवादी नेता बापू नाथ पई महाराष्ट्र के राजापुर से और हेम बरुआ भी गुवाहाटी से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे.
पिछले तीन दशकों में ऐसी रही भारत की लोकसभा
हार गए ये दिग्गज
डॉ. लोहिया, वीवी गिरि, चंद्रशेखर, रामधन हारे : 1957 का लोकसभा चुनाव कई दिग्गजों की हार का भी गवाह बना. दिग्गज समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया को कांग्रेस ने हराया तो वीवी गिरी को एक निर्दलीय से हार का मुंह देखना पड़ा. उत्तरप्रदेश की चंदोली लोकसभा सीट से डॉ. लोहिया को कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह ने हराया था. कांग्रेस के टिकट पर आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम लोकसभा क्षेत्र से वीवी गिरि मात्र 565 वोट से चुनाव हार गए थे. उन्हें निर्दलीय डॉ. सूरीदौड़ा ने हराया था. एक अन्य समाजवादी नेता पट्टम थानु पिल्ले केरल की त्रिवेन्द्रम लोकसभा सीट से चुनाव हारे थे. उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी ईश्वर अय्यर ने हराया था.
चंद्रशेखर ने भी पहला चुनाव 1957 में ही पीएसपी के टिकट पर लड़ा था. तब बलिया और गाजीपुर के कुछ हिस्से को मिलाकर रसड़ा संसदीय सीट थी. चंद्रशेखर ने इसी सीट से चुनाव लड़ा था और तीसरे नंबर पर रहे थे. जीत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सरयू पांडेय की हुई थी. युवा तुर्क के रूप में मशहूर रहे एक और नेता रामधन ने भी आजमगढ़ से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था लेकिन वे कांग्रेस उम्मीदवार के मुकाबले हार गए थे.
जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय जीवन की शुरुआत इसी आम चुनाव से हुई थी. उन्होंने उत्तर प्रदेश की तीन सीटों से एक साथ चुनाव लड़ा था. वे बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से तो जीत गए थे लेकिन लखनऊ और मथुरा में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. मथुरा में तो उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी. लखनऊ से कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी ने उन्हें हराया था, जबकि मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप की जीत हुई थी.
पांच क्षेत्रीय दलों का उदय : इस चुनाव की यह भी विशेषता रही कि पहली बार कम से कम पांच बड़े क्षेत्रीय दल अस्तित्व में आए थे. तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़घम (द्रमुक), ओडिशा में गणतंत्र परिषद, बिहार में झारखंड पार्टी, संयुक्त महाराष्ट्र समिति और महागुजरात परिषद जैसे क्षेत्रीय दलों का गठन इसी चुनाव में हुआ था.
अनिल जैन (वेबदुनिया)