1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजएशिया

लॉकडाउन और अनलॉक के बीच पिस रहे हैं लोग

प्रभाकर मणि तिवारी
९ जुलाई २०२०

बार-बार होने वाले लॉकडाउन का आम लोगों के रोजमर्रा के जीवन पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है. बहुत लोग मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं.

https://p.dw.com/p/3f0PL
Indien Coronavirus
तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

पहले अचानक लॉकडाउन, उसके बाद उसे कम से कम चार बार बढ़ाना, फिर उसमें ढील से तेजी से बढ़ते संक्रमण के कारण दोबारा पहले के मुकाबले सख्ती से लॉकडाउन - देश में उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक यही कवायद दोहराई जा रही है. लेकिन बार-बार होने वाले लॉकडाउन और अनलॉक की वजह से जीवन बिखरने लगा है. नौकरी, रोजगार, कमाई और पढ़ाई तो दूर की बात है, लोगों के लिए सामान्य जीवन जीना भी दूभर होता जा रहा है. कोलकाता स्थिति जर्मन कॉन्सुलेट ने भी नौ जुलाई से शुरू होने वाले लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए अपने कर्मचारियों की उपस्थिति न्यूनतम करने का एलान किया है.

बीते महीने से धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील दी जा रही थी. लेकिन उसके बाद अचानक कोविड-19 संक्रमण में आए उछाल के बाद असम से लेकर पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और केरल समेत कई राज्यों ने ज्यादा संक्रमित इलाकों में दोबारा सख्त लॉकडाउन लागू कर दिया है. इससे आम लोगों की धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही जिंदगी एक बार फिर बेपटरी हो गई है. कोलकाता के कंटनेमेंट जोन विजयगढ़ में रहने वाले संतोष मंडल पेशे से हॉकर हैं. कोई तीन महीने की बेरोजगारी के बाद अभी जून के आखिरी सप्ताह से उन्होंने दोबारा रेहड़ी लगाना शुरू किया था. लेकिन अब लॉकडाउन की वजह से उनका घर से निकलना बंद हो जाएगा. संतोष कहते हैं, "बड़ी मुश्किल से तो थोड़ी-बहुत आय हो रही थी. अब वह भी बंद हो जाएगी. यही हालत रही तो भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.” एक निजी कंपनी में काम करने वाले मोहित नाथ कहते हैं, "कंपनी ने लॉकडाउन के दौरान वेतन नहीं दिया. बीते महीने से दफ्तर जा रहा था. जून का वेतन अब तक नहीं मिला है. अब लॉकडाउन का मतलब दफ्तर आना-जाना बंद यानी वेतन में कटौती.”

पश्चिम बंगाल में तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में 31 जुलाई तक पर्यटन से संबंधित तमाम गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी गई है. अभी एक सप्ताह पहले ही देशी-विदेशी सैलानियों में मशहूर इस पर्यटन केंद्र को सौ दिनों बाद दोबारा खोला गया था. लेकिन संक्रमण की आशंका से गोरखालैंड टेरीटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) ने पर्यटन पर पाबंदी लगाते हुए तमाम पर्यटकों से शीघ्र लौटने को कहा है. जीटीए ने बिना खास जरूरत के इलाके के लोगों को मैदानी इलाकों में आवाजाही नहीं करने का निर्देश दिया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है, "संक्रमण बढ़ने की वजह से सरकार को मजबूरी में सख्ती करनी पड़ रही है. राज्य में मास्क पहनना अनिवार्य है. बिना मास्क के बाहर निकलने वालों को लौटा दिया जाएगा. कोरोना से उपजी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए ही सरकार ने मास्क नहीं पहनने वालों पर कोई जुर्माना नहीं लगाने का फैसला किया है.”

कोलकाता के विभिन्न कंटेनमेंट जोन में गुरुवार शाम से होने वाले लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए जर्मन कॉन्सुलेट ने अपने कर्मचारियों की उपस्थिति न्यूनतम करने का फैसला किया है. कॉन्सुलेट की ओर से बुधवार को जारी एक ट्वीट में इसकी जानकारी दी गई है. इससे पहले केरल और कर्नाटर सरकारों ने भी इसी सप्ताह से सख्त लॉकडाउन लागू किया है. पूर्वोत्तर राज्य असम में कामरूप और जोरहाट जिले के विभिन्न इलाके सख्त लॉकडाउन में हैं. राजधानी गुवाहाटी भी कामरूप जिले के तहत ही है. राज्य के कई जिलों ने कामरूप से लोगों की आवाजाही पर पाबंदी लगा दी है. इसकी वजह वहां तेजी से बढ़ता संक्रमण है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा तो राज्य में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की आशंका जता चुके हैं.

कर्नाटक की राजधानी और देश के सबसे बड़े तकनीकी हब बंगलुरू की हालत सबसे संवेदनशील है. जून के मध्य तक वहां हालात बाकी शहरों के मुकाबले बेहतर थे. मिसाल के तौर पर उस समय मुंबई में 60 हजार संक्रमित थे और 3,167 मौतें हुई थीं. दिल्ली में यह आंकड़ा क्रमशः 44 हजार और 1,837 था और चेन्नई में क्रमशः 34 हजार और 422. लेकिन बंगलुरू में महज 827 पॉजिटिव मामले थे और 43 लोगों की मौत हुई थी. लेकिन उसके बाद अंतरराज्यीय सीमाएं खोलने की वजह से कोरोना का ग्राफ तेजी से चढ़ रहा है. मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने उच्च-स्तरीय बैठक में हालात की समीक्षा करने के बाद सख्त लॉकडाउन लागू किया है. इसी सप्ताह एक केंद्रीय टीम भी राज्य का दौरा कर चुकी है. अब तमाम प्रमुख पर्यटन केंद्रों के होटलों और गेस्ट हाउसों को फिलहाल बंद करने का निर्देश दिया गया है. शुरुआती दौर में बेहतर कोविड-19 प्रबंधन के लिए सुर्खियां बटोरने वाला केरल भी खासकर प्रवासियों की वापसी के बाद कोरोना के गंभीर संक्रमण से जूझ रहा है. राजधानी तिरुअनंतपुरम के अलावा कोच्चि में भी सख्त लॉकडाउन किया गया है.

बार-बार होने वाले लॉकडाउन का आम लोगों के रोजमर्रा के जीवन पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ रहा है. नौकरी और रोजगार छिनने की वजह से ज्यादातर लोग पहले से ही मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं. बीते महीने पाबंदियों में ढील से उम्मीद की एक किरण पैदा हुई थी. लेकिन इसके साथ ही तेजी से बढ़ते संक्रमण ने मन में तमाम आशंकाएं भी पैदा कर दी थीं. अब तमाम राज्यों में नए सिरे से पाबंदियां लगाई जा रही हैं. असम में एक निजी कंपनी में काम करने वाले श्याम सुंदर शर्मा ढाई महीने तक बेरोजगार थे. बीते महीने से काम शुरू हुआ था. लेकिन अब फिर बंद हो गया. शर्मा कहते हैं, "लॉकडाउन में पैसों की तंगी जरूर थी. लेकिन जिंदगी एक लीक पर चलने लगी थी. फिर अनलाक होने पर कुछ बदलाव आया. लेकिन अब दोबारा पाबंदियों के साथ जीना पड़ रहा है. हमारा जीवन घड़ी के पेंडुलम की तरह हो गया है.”

समाजविज्ञानी भी इस स्थिति से चिंता में हैं. उत्तर बंगाल के में समाज विज्ञान पढ़ाने वाले प्रोफेसर कुलदीप थापा कहते हैं, "उम्मीद और नाउम्मीदी के बीच की यह अनिश्चितता बेहद खतरनाक है. आम लोगों के जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल असर पड़ना तय है. लेकिन इसके सिवा सरकारों के सामने दूसरा कोई चारा भी नहीं है.” समाजशास्त्रियों का कहना है कि इस स्थिति के लिए काफी हद तक लोग भी जिम्मेदार हैं. लॉकडाउन में ढील मिलते ही लोगों की भीड़ बाजारों से शॉपिंग मॉल तक उमड़ने लगी थी. अब उसी का खामियाजा भरना पड़ रहा है. एक गैर-सरकारी संगठन के संयोजक सुदीप बर्मन कहते हैं, "कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बावजूद लोग मास्क के इस्तेमाल और सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन नहीं कर रहे हैं. या तो उनमें जागरूकता का अभाव है या फिर वे हद दर्जे तक लापरवाह हैं. कोलकाता की बसों में उमड़ती भीड़ इसका सबसे बड़ा सबूत है.” विशेषज्ञों का कहना है कि अगर लोगों ने अपना रवैया नहीं बदला, तो आगे लंबे समय तक इसी तरह लॉकडाउन और अनलॉक के दो पाटों के बीच पिसते रहना पड़ सकता है.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

लॉकडाउन ने बना दिया किसान को बिजनेसमैन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी