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रूस में संसद के लिए वोटिंग

अनवर जमाल अशरफ़२ दिसम्बर २००७

रूसी संसद की वोटिंग शुरू हो गई है। राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन भी संसद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। क्या वो जीत जाते हैं तो रूस के प्रधानमंत्री बनेंगे?

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पुतिन पर कई आरोप भी लगे हैं
पुतिन पर कई आरोप भी लगे हैंतस्वीर: AP

रूस की संसद यानी डूमा के लिए वोटिंग शुरू हो गई है। सबसे पहले अमेरिका के अलास्का से सटे इलाक़े चुकोत्का और कमस-चात्का इलाक़े के लोगों ने मतदान शुरू किया। विशाल देश रूस में अलग अलग टाइम ज़ोन की वजह से मतदान का काम आज देर शाम तक जारी रहेगा। रूस की विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन पर चुनाव में अपनी ताक़त का ग़लत इस्तेमाल का इलज़ाम लगाया है। जानकारों की राय है कि इस चुनाव में पुतिन की यूनाइटेड रशिया पार्टी को बहुत बड़ी जीत मिलेगी। पुतिन ख़ुद संसद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। वो लगातार दो बार राष्ट्रपति रह चुके हैं और रूसी संविधान के मुताबिक़ तीसरी बार इस पद पर नहीं आ सकते हैं। ऐसे में वो देश के नए प्रधानमंत्री बनने का रास्ता खुला रखना चाहते हैं।

सवालों में पुतिन

पिछले आठ साल में पुतिन ने रूस को नई मज़बूती दी है लेकिन साथ ही अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने कई मुद्दों को लेकर उनकी किरकिरी भी हुई है। ख़ास कर चुनावों के एलान के बाद से। पहले पुतिन ने कहा कि वो संसद के चुनाव में हिस्सा लेंगे। यानी अगर वो सांसद बनते हैं तो वो राष्ट्रपति पुतिन की जगह प्रधानमंत्री पुतिन बन सकते हैं और ऐसे में रूस की सत्ता पर उनका अच्छा ख़ासा दख़ल बना रहेगा। हो सकता है कि वो देश के नए प्रधानमंत्री बन जाएं।

पुतिन की राह आसान

राष्ट्रपति पुतिन के सामने वैसे तो कोई बड़ी चुनौती नहीं दिख रही है लेकिन शतरंज से राजनीति तक का सफ़र तय करने वाले गैरी कास्परोव बीच बीच में उनका खुल कर विरोध करते रहे हैं। ख़ुद कास्परोव भी चुनावों में हिस्सा ले रहे हैं। कुछ दिनों पहले एक विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्हें थोड़े वक़्त के लिए हिरासत में रखा गया था लेकिन चुनाव के ठीक पहले तो उन्हें प्रदर्शन करने पर पांच दिनों के लिए गिरफ़्तार कर लिया गया। कास्परोव का आरोप है कि पुतिन अपनी ताक़त का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं और चुनावों के नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। पुतिन ने रूस की राजधानी मॉस्को में प्रदर्शनों पर बंदिश लगा रखी है और ऐसे में सभी विपक्षी पार्टियां नाराज़ हैं।

विपक्ष को दबाने के आरोप

पुतिन पर विपक्ष को दबाने के साथ साथ मीडिया को भी प्रभाव और बंदिशों में रखने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि वो इससे इनकार करते आए हैं लेकिन रूस की सरकारी मीडिया बहुत ताक़तवर है और इसी के एक सर्वे में 80 फ़ीसदी लोगों ने कहा है कि संविधान में प्रावधान न होते हुए भी वो पुतिन को तीसरी बार राष्ट्रपति के तौर पर देखना चाहते हैं। चुनाव पर नज़र रखने के लिए यूरोपीय पर्यवेक्षकों के वीज़ा में भी दिक़्क़त हुई, जिसके बाद उन्होंने रूसी चुनाव के बहिष्कार का फ़ैसला किया। हालांकि राष्ट्रपति पुतिन इन सबके लिए अमेरिका को ज़िम्मेदार मानते हैं और कहते हैं कि अमेरिका चुनावी प्रक्रिया में गतिरोध पैदा करना चाहता है।

वोटरों को तोहफ़ा

वैसे, चुनाव से डेढ़ महीने पहले रूस की सरकार ने रोज़मर्रा और खाने पीने की चीजें तैयार करने वाली कंपनियों से समझौता किया है। इसके तहत दूध, अंडे, ब्रेड और रोज़मर्रा के सामानों की क़ीमत तीन महीने तक नहीं बढ़ेगी। साथ ही व्लादीमीर पुतिन ने रिटायर्ड लोगों का पेंशन भी बढ़ा दिया है। जानकारों की राय है कि सरकार ये सब वोटरों को रिझाने के लिए कर रही है।