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समाज

रूस की जनता के लिए पेंशन बनी टेंशन

३० अगस्त २०१८

बुजुर्गों की बढ़ती आबादी से परेशान रूस चाहता है कि रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाई जाए जिससे लोगों को पेंशन कुछ साल बाद मिलनी शुरू हो. रूस की जनता को यह नामंजूर है और पुतिन सरकार से पूछ रहे हैं- हम कब तक काम करते रहेंगे?

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Rentner in Russland
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Ryumin/TASS

पिछले साल 53 वर्षीय मरीना निकोलायेव्ना की नौकरी चली गई और अब उन्हें नौकरी ढूंढने में दिक्कतें आ रही हैं. कारण यह कि कंपनी युवा कैंडिडेट्स को पसंद कर रही है. वह कहती हैं, ''मेरी उम्र की वजह से मुझे नौकरी पर नहीं रखा जा रहा है.'' मौजूदा नियमों के मुताबिक, मरीना दो साल में रिटायर हो जाएंगी. सरकार की ओर से पेंशन की उम्र बढ़ाए जाने वह विरोध करती हैं. वह कहती हैं, ''मेरे कई दोस्त हैं जो इसके लिए राजी नहीं होंगे.''

बीते दिनों राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने अपने भाषण में रिटायरमेंट की उम्र कम से कम पांच साल बढ़ाए जाने की बात कही. हालांकि सरकार ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है, लेकिन ज्यादातर रूसियों को सरकार का यह विचार पसंद नहीं आया. 

65 वर्षीय पुतिन चाहते हैं कि महिलाओं के लिए पेंशन की उम्र बढ़ाकर 60 वर्ष और पुरुषों के लिए 65 वर्ष कर दी जाए. कारण बताया कि रूस जन्म और मृत्यु दर के आंकड़ों में संघर्ष कर रहा है. देश में बूढ़ों की संख्या बढ़ गई है जिससे पेंशन सिस्टम पर दबाव है.  

विश्व बैंक के आंकड़ों पर गौर करें तो रूस में पुरुषों का औसत जीवनकाल 66 वर्ष और महिलाओं का 77 वर्ष होता है. वहीं 43 फीसदी रूसी पुरुष 65 की उम्र तक नहीं पहुंच पाते है.

अर्थशास्त्री व्लादिमीर निकोलायेविच का तर्क है कि रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने से लोगों को काम करने का मौका मिलेगा और पेंशन के मुकाबले ज्यादा कमाई होगी. वह कहते हैं, ''मैं पेंशन की उम्र बढ़ाए जाने का समर्थन करता हूं क्योंकि इससे मुझे काम करने और परिवार का ख्याल रखने में मदद मिलेगी.''

लेकिन औद्योगिक शहर टोलयाती में रहने वाली निकोलायेव्ना के लिए परिस्थितियां बेहद अलग थीं. उन्हें 4500 रूबल (65 डॉलर) प्रति महीना मिलते थे जिसमें से 4200 रूबल वह घर के कामों के लिए खर्च करती थीं. अब उन्हें रिटेल क्लर्क की नौकरी ढूंढने में दिक्कतें आ रही हैं. वह कहती हैं, ''कंपनी वाले सीधे कह देते हैं कि उम्र की वजह से मैं उपयुक्त नहीं हूं.''

मॉस्को में रहने वाले 47 वर्षीय ग्राफिक डिजाइनर मैक्सिम, निकोलायेव्ना की बातों से सहमत हैं. वह मौजूदा माहौल को कड़ी प्रतिस्तपर्धा वाला मानते हैं और कहते हैं कि युवाओं को नौकरी पर रखना आसान है. वह कहते हैं, ''खाने-पीने और दवाइयों के दाम बढ़ रहे हैं. इन खर्चों पर लगाम लगने की कोई गारंटी नहीं है.'' वह बताते हैं कि गनीमत है कि परिवार के पास किराए पर देने के लिए एक घर है जिससे दूसरे खर्चे पूरे हो रहे हैं.  

रूसी संसद के ऊपरी सदन ने रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने के बिल को पास कर दिया है. अगर यह कानून बनता है तो 80 वर्षों में ऐसा पहली बार होगा कि रूस ने पेंशन की उम्र बढ़ेगी. लेवादा सेंटर के एक सर्वेक्षण से मालूम चला है कि इस बिल को लेकर रूसियों में विरोध है और उनका पुतिन पर से भरोसा कम हुआ है. पोल बताता है कि 6 महीने पहले जहां लोगों का पुतिन पर भरोसा 60 फीसदी था, वहीं अब यह घटकर 48 फीसदी हो गया है.

मॉस्को में रहने वाले रिटायर्ड इंजीनियर मिखाएल अलेक्सांद्रोविच (68) का तर्क है कि रूस ऊत्तरी गोलार्ध का एक देश है जहां का मौसम काफी जटिल है. यहां गरीबी है और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं खराब है. वह कहते हैं, ''जल्दी पेंशन मिलने से इन अड़चनों से मुकाबला करना आसान होता है क्योंकि लोगों की काम करने की क्षमता खत्म होने लगती है.''

105 साल की ब्लॉगर

मॉस्को में टीचर स्वेतलाना (44) का कहना है कि सरकार वरिष्ठ नागरिकों का पैसा लेकर अपना फर्ज निभा रही है. वह कहती हैं, ''सिवाए प्रशासन के मैंने किसी को पेंशन की उम्र बढ़ाए जाने के समर्थन में नहीं देखा.'' उनके मुताबिक, ''वे आम लोगों का पैसा चुरा रहे हैं. वे कुछ भी कर सकते हैं. यह सामंतवाद की तरह है. हम अपनी मांग के लिए खड़े नहीं हो सकते हैं.'' वह मानती हैं कि अधिक उम्र वालों को नौकरी तलाशने में मुश्किल हो रही है. लोगों के लिए जीना कठिन हो जाएगा.

ऐसा ही ख्याल 32 वर्षीय एनातासिया पलोनी का है जो टेक्नोलॉजी सेक्टर में काम करती हैं. वह कहती हैं, ''यह बदलाव बेकार है और हमें वरिष्ठ नागरिकों के लिए बचत नहीं करनी चाहिए.'' वह कहती हैं कि अभी यह कहना मुश्किल होगा कि उनके वक्त में क्या स्थिति बनेगी क्योंकि उन्हें 30 साल बाद पेंशन मिलेगी. रूस और अमेरिका की दोहरी नागरिकता वाली पलोनी के मुताबिक, ''मैं रूस की पेंशन पर निर्भर नहीं हूं क्योंकि सरकार की यह प्राथमिकता नहीं है, लेकिन मैं अमेरिका से भी उम्मीद नहीं कर रही.'' वह तर्क देती हैं कि रूस अकेला ऐसा देश नहीं हैं जहां वरिष्ठ नागरिकों की आबादी और उनकी देखरेख मुद्दा बन चुकी है.  

वीसी/ओएसजे (डीपीए)

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