1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

रातों रात जम्मू कश्मीर में निवेश नहीं शुरू हो जाएगा

थोमस कोलमन
९ अगस्त २०१९

जम्मू और कश्मीर के भारतीय हिस्से में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत की दोगुनी है. नियमित रूप से होने वाली अशांति का असर अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर है. निवेशकों के लिए अहम होगा कि सुरक्षा की स्थिति में कितना सुधार होता है.

https://p.dw.com/p/3NeZg
Kaschmir Dal-See in Srinagar
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Mustafa

सेव और खुबानी के बगीचे, हरी भरी वादियां, पहाड़ों से उतरता साफ पानी और गहरी नीली झीलें दरअसल कश्मीर में वह सब कुछ है जो उसे दुनिया भर के सैलानियों का आकर्षण बना सके. बार बार स्थानीय प्रदर्शनकारियों और भारतीय सुरक्षा बलों की नियमित झड़पों की तस्वीर इसका रंग बिगाड़ देती है जिसकी वजह से बहुत से लोग यहां छुट्टी मनाने नहीं आ पाते. निवेशक भी कश्मीर से सिर्फ इसलिए कन्नी नहीं काटते हैं क्योंकि वहां कोई जमीन नहीं खरीद सकते बल्कि इसलिए भी कि सालों से वहां सुरक्षा की स्थिति तनावपूर्ण है.

इसमें इलाके की स्वायत्तता खत्म कर उसे केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने से भी कोई बदलाव नहीं होगा. इस बात की कोई संभावना नहीं है कि अब इलाके में जमीन खरीदने की होड़ लग जाएगी. रियल स्टेट पर रिसर्च करने वाली संस्था प्रॉपइक्विटी के संस्थापक समीर जसूजा ने डीडब्ल्यू से कहा, "जम्मू और कश्मीर इस वक्त रियल इस्टेट कंपनियों के रडार पर भी नहीं है. सबसे पहले इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि वहां कोई भारत विरोधी गतिविधि ना हो." जसूजा का मानना है कि रियल इस्टेट कारोबारी अभी एक साल स्थिति पर नजर रखेंगे.

Indien Kaschmir Srinagar
तस्वीर: picture-alliance/Design Pics/C. Caldicott

कश्मीर यूनिवर्सिटी के भूतपूर्व डीन निसार अली का कहना है जहां पर्यटन के क्षेत्र में निवेश की योजनाएं हैं भी, वहां खराब ढांचागत संरचना की वजह से कामयाबी नहीं मिल रही है. निसार अली कहते हैं, "बिजली की खराब आपूर्ति राज्य की प्रगति में बाधा डाल रही है. इसकी वजह से भारतीय और स्थानीय निवेशक भी सक्रिय नहीं हो रहे हैं. अब तक 55 टूरिस्ट डेस्टिनेशन तय किए गए हैं लेकिन बिजली की कमी के कारण वहां कुछ नहीं हो सका है."

कृषि और पर्यटन का दबदबा

जम्मू कश्मीर का 80 फीसदी हिस्सा खेती पर निर्भर है. यहां गेहूं और बाजरे के अलावा चावल, मक्का और फलों की खेती होती है. यह इलाका दस्तकारी, कालीन, लकड़ी के सजावटी सामान, ऊन और रेशम के लिए मशहूर है. कश्मीरी बकरियों के रोएं से बनने वाला कश्मीर ऊन इलाके में ही नहीं पूरी दुनिया में विख्यात है. लेकिन इस बीच कश्मीर ऊन का बड़ा हिस्सा मंगोलिया और चीन से आ रहा है. कभी यहां लहलहाता पर्यटन उद्योग मुस्लिम अलगाववादियों और भारत सरकार के विवाद की भेंट चढ़ गया है.

निसार अली कहते हैं कि छोटे पारिवारिक उद्यम भी इस विवाद से अछूते नहीं है. उनका कहना है, "छोटे उद्यम मझोले उद्यमों की तरह ही बुरे हाल में हैं. राज्य में कोई विदेशी निवेश नहीं हो रहा और यहां कोई विशेष आर्थिक क्षेत्र भी नहीं जो निवेशको को आकर्षित कर सके." सुरक्षा की खराब स्थिति के अलावा भ्रष्टाचार भी इलाके के विकास को प्रभावित कर रहा है. थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सुशांत सरीन ने डीडब्ल्यू को बताया कि ये ऐसी चीजें हैं जो निवेशकों को परेशान करती हैं." उम्मीद की जा रही है कि भारी निवेश आएगा लेकिन मैं समझता हूं कि यह बहुत हद तक प्रदेश की सुरक्षा की स्थिति पर निर्भर करेगा."

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार जम्मू और कश्मीर में बेरोजगारी की दर भारत में सबसे ज्यादा है. बड़े अनौपचारिक श्रम बाजार के कारण इस आंकड़े को सावधानी से देखा जाना चाहिए. उद्योग के विकास में प्रदेश ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.9 फीसदी ही खर्च किया है. बहुत से पर्यवेक्षक इसीलिए प्रगति की संभावना परंपरागत उद्योग में देखते हैं. भारतीय निर्यात संगठन के अध्यक्ष शरद कुमार सर्राफ ने डीडब्ल्यू को बताया कि भविष्य में ज्यादा दस्तकारी वाले सामान निर्यात किए जा सकेंगे. शरद कुमार का कहना है, "अब जबकि सरकार ने जम्मू कश्मीर के बाहर के निर्यातकों को निवेश की अनुमति दे दी है तो राज्य के दरवाजे खुल गए हैं."

Grenzkonflikt Indien China Ladakh
तस्वीर: Rouf Bhat/Afp/Getty Images

बिगड़ती आर्थिक स्थिति

कश्मीर के उद्योग और वाणिज्य संघ के मुताबिक भारत सरकार की घोषणा से पहले ही इलाके में अफरातफरी मच गई थी. लोग सामान, पैसा और पेट्रोल जमा करने लगे थे. इलाके के कुछ पेट्रोल पंपों पर सारा पेट्रोल बिक गया था. उद्योग और वाणिज्य संघ के अध्यक्ष शेख आशिक के अनुसार पर्यटकों और अमरनाथ यात्रा पर गए तीर्थयात्रियों को वापस लौटने के लिए कहा गया. बहुत से मजदूरों ने अशांति के डर से इलाका छोड़ दिया और काम पर नहीं गए. उन्होंने कहा, "नीति में परिवर्तन की संभावना फरवरी 2019 से ही दिख रही थी और तब से कश्मीर की जनता इससे परेशान हो रही थी. जबसे श्रीनगर और जम्मू के रास्ते पर रोकटोक होने लगी पर्यटन बागवानी और दूसरे क्षेत्रों में काफी नुकसान हुआ. उसने पर्यटन की रीढ़ तोड़ दी और राज्य की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया."

निसार अली प्रांतीय वित्त आयोग के सदस्य भी हैं. उनका कहना है कि कश्मीर में अब जो भी हो इलाके के लोगों को आर्थिक भविष्य की जरूरत है. उन्होंने कहा, "अगर हम राज्य में बेरोजगारी की समस्या दूर कर सकें तो कश्मीर की 95 फीसदी समस्या दूर हो जाएगी."

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore