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रंग ला रही है यूरोपीय संघ और आसियान की दोस्ती

राहुल मिश्र
१० दिसम्बर २०२०

यूरोपीय संघ और आसियान के बीच की दोस्ती दशकों पुरानी है. यूरोपीय संघ चीन के बाद आसियान का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है तो वहीं यूरोपीय संघ के लिए आसियान तीसरा सबसे बड़ा साझेदार है.

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Brüssel EU Gipfel | Ursula von der Leyen
तस्वीर: picture-alliance/AP/O. Matthys

यूरोपीय संघ के आलोचकों का मानना रहा है कि उसने चीन और अमेरिका के मुकाबले आसियान क्षेत्र में सामरिक स्तर पर कम दिलचस्पी दिखाई है. जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंड ने अपनी-अपनी इंडो-पैसिफिक नीतियों की घोषणा कर स्थिति बदलने में पहल की है.

यूरोपीय संघ और आसियान के विदेशमंत्रियों के बीच दिसंबर में हुई वर्चुअल बैठक में दोनों क्षेत्रीय संगठनों ने स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर दस्तखत किए. ऐसा नहीं है कि दोनों क्षेत्रीय संगठनों के रिश्तों में स्ट्रेटेजिक आयाम नहीं थे लेकिन इस समझौते ने औपचारिक तौर पर सहयोग के कई चैनल खोल दिए हैं. दोनों संगठनों के बीच इसके बारे में 2019 में ही सैद्धांतिक सहमति हो गई थी लेकिन इसके  बावजूद इस समझौते को अमली जामा पहनाने में छः साल लग गए. आपसी सलाह–मशविरे के बाद दोनों पक्षों ने यह वादा किया है कि दोनों के बीच राष्ट्राध्यक्षों के स्तर की सालाना बैठकों के साथ-साथ कनेक्टिविटी, विकास, और आर्थिक सहयोग को भी बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. इस फैसले का सबसे फौरी नतीजा यह है कि 9 और 10 दिसम्बर को आसियान के रक्षा मंत्रियों की मीटिंग एडीएमएम प्लस में आसियान के साथ चीन, जापान, कोरिया, रूस, भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, और न्यूजीलैंड के अलावा पहली बार यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि भी हिस्सा ले रहे हैं.

हिस्से में एक चौथाई अर्थव्यवस्था

यूरोपीय संघ और आसियान की साझा ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दोनों क्षेत्रीय संगठन मिलकर दुनिया की एक चौथाई अर्थव्यवस्था पर अधिकार रखते हैं. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बीसवीं शताब्दी के कई योगदानों में क्षेत्रवाद और क्षेत्रीय संगठनों का उदय बेशक एक बड़ा पहलू रहा है. राष्ट्र राज्यों की संकीर्ण राजनीति से बाहर निकल कर क्षेत्रीय स्तर पर एक ही इलाके के तमाम देशों को उनकी साझा समस्याओं से जूझने में मददगार होने के साथ ही एक बेहतर भविष्य की परिकल्पना और उसे मूर्तरूप देने में भी इसने बड़ा योगदान दिया है. यूरोपीय संघ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

आम तौर पर यह माना जाता है कि राष्ट्र राज्य अपनी सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के परे नहीं देख पाते, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ्रांस ने ऐसा नहीं किया. जर्मनी के साथ कुछ ही वर्षों पहले हुए भयानक युद्ध के बावजूद फ्रांस ने एक पहल की और उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया. 1952 में यूरोपीय स्टील एंड कोल कम्युनिटी की स्थापना हुई जिसने पांच दशकों के भीतर ही यूरोप के देशों को एक साथ एक मंच पर लाकर खड़ा किया, जहां सीमाओं की बाधा टूट गई, देशों में बंटे बाजार एक हो गए, जिनकी एक मुद्रा और एक जैसी आर्थिक सामरिक नीतियां भी निखर कर सामने आ गयीं. हालांकि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान (एसोसिएशन आफ साउथईस्ट एशियन नेशंस) ने हू-ब-हू वैसा नहीं किया जैसे कदम यूरोपीय संघ ने क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाने में उठाए थे. लेकिन इसके बावजूद आसियान भी क्षेत्रीय सहयोग के एक बड़े मंच के तौर पर उभरा है और तीसरे विश्व के विकासशील देशों या ग्लोबल साउथ के बीच तो यह सबसे सफल संगठन तो है ही.

ASEAN EU Virtual Event
यूरोपीय संघ और आसियान के विदेशमंत्रियों के बीच दिसंबर में हुई वर्चुअल बैठक

पांच दशक पुरानी दोस्ती

यूरोपीय संघ और आसियान के बीच की दोस्ती दशकों पुरानी है. एक भारत में जहां यूरोपीय संघ अपनी पहचान को लेकर संघर्ष कर रहा है, आसियान के साथ दोस्ती की शुरुआत 1972 में ही हो गई, जब यूरोपीय संघ आसियान का पहला डायलॉग पार्टनर बना. तब यूरोपीय संघ अपने आज वाले स्वरूप में नहीं था और इसे यूरोपीय आर्थिक समुदाय के नाम से जाना जाता था. सतत और समेकित विकास के मुद्दों पर यूरोप ने आसियान देशों की बड़ी मदद की और आर्थिक मोर्चे पर सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग भी रहा. शीत युद्ध के दौरान ब्रिटेन और फ्रांस सैन्य स्तर पर भी इलाके में मौजूद रहे.

90 के दशक में दोनों गुटों के बीच मानवाधिकारों को लेकर कुछ खटपट भी हुई. जहां यूरोपीय संघ को बर्मा (म्यांमार) में सैन्य तानाशाही नागवार गुजरी तो वहीं इंडोनेशिया पुर्तगाल के पूर्वी तिमोर (तिमोर लेस्त) में दखल से नाराज था. बहरहाल यह तनातनी ज्यादा दिन नहीं चली और आपसी गिले-शिकवे भुला कर 1994 में संबंधों को मजबूत करने की एक बार फिर से कोशिश की गई. तिमोर लेस्त और म्यांमार, दोनों ही मुद्दों पर आसियान ने दखल देने से मना कर दिया और इंडोनेशिया और म्यांमार को यूरोपीय संघ से सीधे बात करने को कहा. इससे दोनों क्षेत्रीय संगठनों के आपसी रिश्ते मधुर बने रहे.

आपसी संबंधों को अगले स्तर तक ले जाने में न्यूरेमबर्ग घोषणा का खास महत्व है. 2007 में इस घोषणा के साथ ही यूरोपीय संघ-आसियान की साझेदारी बढ़ाने पर सहमति बनी और इसके कुछ ही महीनों के भीतर एक एक्शन प्लान की भी घोषणा हुई जिसका मकसद था न्यूरेमबर्ग घोषणा के तहत साझेदारी के समझौते को मूर्त रूप देना. 2011 में पहली आसियान–यूरोपीय संघ व्यापार शिखर बैठक से आर्थिक संबंधों को और मजबूती मिली. लगातार आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाने के प्रयास जारी रहे और बंदर सेरी बेगावान एक्शन प्लान 2013-2017 के जरिए व्यापार, निवेश, जलवायु परिवर्तन, उच्च शिक्षा जैसे कई मसलों पर यूरोप ने आसियान का बहुत साथ दिया. बाद में यूरोपीय संघ-आसियान प्लान ऑफ एक्शन 2018-2022 से इसे आगे बढ़ाया गया. बात आर्थिक संबंधों की हो या राजनयिक सहयोग की, यूरोपीय संघ ने हमेशा ही आसियान में दिलचस्पी दिखाई है. यूरोपीय संघ चीन के बाद आसियान का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है तो वहीं यूरोपीय संघ के लिए आसियान तीसरा सबसे बड़ा साझेदार है. यहीं नहीं, यूरोपीय संघ आसियान क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेशक है. जर्मनी के तो कहने ही क्या, यह आसियान देशों का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है.

सहयोग के साथ मुश्किलें भी

स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप पर हस्ताक्षर के साथ इन दोनों क्षेत्रीय संगठनों के आपसी संबंध नई ऊंचाइयों को छुएंगे. चीन के साथ पश्चिमी देशों के बिगड़ते रिश्तों के बीच ईयू और आसियान के बीच सामरिक संबंधों का महत्व बढ़ गया है. एक ओर आर्थिक स्तर पर पश्चिमी देशों को चीन पर निर्भरता कम करने के लिए विकल्प खोजने की जरूरत है तो दूसरी ओर कम से कम आयात निर्यात को विस्तार देने की भी. लेकिन दोनों क्षेत्रीय संगठनों के बीच कई मुश्किलें भी हैं जिनमें पाम ऑयल से जुड़े सतत विकास के मुद्दे भी हैं और थाईलैंड, फिलीपींस, कंबोडिया और म्यांमार में बढ़ रही मानवाधिकार हनन की घटनाएं भी. दोनों के बीच फ्री ट्रेड समझौता बरसों से लटका पड़ा है. इन मुद्दों को सुलझाना यूरोपीय संघ और आसियान दोनों के लिए जरूरी है.

इलाके पर नजर रखने वाले प्रेक्षक यह भी कहते रहे हैं कि दोनों क्षेत्रीय संगठनों के रिश्ते अब और एकतरफा नहीं रह सकते. सामरिक सहयोग के नए मंसूबे बांधते आसियान देशों को यह भी ध्यान रखना होगा कि जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, महिला और बाल कल्याण और विकास जैसे पारस्परिक सहयोग के अहम मुद्दों से जरा भी ध्यान न हटे. सामरिक और सैन्य सहयोग तथा शिखर वार्ताओं के लिए आसियान के कई सहयोगी हैं लेकिन आसियान के देशों और वहां के लोगों के आर्थिक और टिकाऊ विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सहयोग करने वाले यूरोपीय संघ जैसे पार्टनर  कम ही हैं.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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