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यूपी में नागरिकता बिल पर सबसे ज्यादा उबाल क्यों?

समीरात्मज मिश्र
२३ दिसम्बर २०१९

उत्तर प्रदेश में नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शनों में हुई हिंसा में अब तक 16 लोगों के मरने की पुष्टि हुई है. दो दिन से हिंसाग्रस्त इलाकों में तनावपूर्ण शांति बनी हुई है. बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया है.

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Sicherheitsbeamte an der Grenze zwischen Indien und Bangladesch
तस्वीर: DW/S. Mishra

19 दिसंबर को कई वामपंथी संगठनों और विपक्षी दलों की ओर से बुलाए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान राजधानी लखनऊ समेत करीब पंद्रह शहरों में हिंसा हुई. कुछ प्रदर्शनकारियों ने जहां पत्थरबाजी और आगजनी की वहीं स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को भी लाठीचार्ज करना पड़ा और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. कुछ जगहों पर पुलिस को गोली भी चलाई. बताया जा रहा है कि मरने वालों में से 14 लोगों की मौत पुलिस की गोली से ही हुई है. हालांकि राज्य के डीजीपी ओपी सिंह ने दावा किया है कि पुलिस ने एक भी गोली नहीं चलाई.

लखनऊ के साथ ही कानपुर, मेरठ, गोरखपुर, वाराणसी, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, संभल, मऊ, आजजमगढ़, गोरखपुर, फिरोजाबाद समेत कुछ अन्य शहरों में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में प्रदर्शन के दौरान लोग हिंसक हो गए थे. बताया जा रहा है कि पुलिस को इस तरह की हिंसा का अनुमान नहीं था या फिर पुलिस के पास इतनी भीड़ को नियंत्रित करने की कोई कार्य योजना नहीं थी.

हिंसक प्रदर्शन पर नियंत्रण करने के बाद पुलिस हिंसा में शामिल लोगों की पहचान करने और उन्हें गिरफ्तार करने में लग गई है. ज्यादातर जगहों पर हालात सामान्य होने के बावजूद पुलिस बेहद सतर्क है. अभियुक्तों की पहचान के लिए तमाम जगहों पर वीडियो फुटेज खंगाले जा रहे हैं लेकिन आरोप ये भी लग रहे हैं कि पुलिस निर्दोष लोगों को जबरन उनके घरों से उठा ले जा रही है. अब तक हुई हिंसा में ये बात भी सामने आई है कि जिन जगहों पर भी विरोध प्रदर्शन हिंसक हुए, उनका तरीका एक जैसा था और इसे बाहरी तत्वों ने अंजाम दिया है. खुद पुलिस भी इस बात को स्वीकार कर रही है.

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रविवार को इस मामले में राज्य के उप मुख्यमंत्री डॉक्टर दिनेश शर्मा ने प्रेस कांफ्रेंस की और साफ तौर पर कहा कि हिंसा में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई जैसे संगठनों का हाथ है जिन्होंने सुनियोजित तरीके से पूरे राज्य में हिंसा को अंजाम दिया. पिछले चार दिनों से हिंसाग्रस्त जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं और परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं.

यूपी में इतना हंगामा क्यों

लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं कि प्रदर्शन हर जगह हुए लेकिन यूपी में हिंसा के पीछे प्रशासनिक अक्षमता और लापरवाही जिम्मेदारी रही. उनका कहना है, "सरकार को ऐसे इनपुट्स मिले थे कि 19 दिसंबर को, फिर बीस दिसंबर यानी शुक्रवार को और उसके बाद रविवार को जिस तरीके से प्रदर्शन और विरोध का आह्वान किया जा रहा था, पर्चे बांटे जा रहे थे तो उस हिसाब से तैयारी रखनी चाहिए थी. या तो इंटेलीजेंस इनपुट्स और मीडिया की खबरों को गंभीरता से नहीं लिया गया या फिर इनपुट्स के हिसाब से तैयारी में कमी रह गई. क्योंकि जिन जगहों पर भी हिंसा हुई है सबका पैटर्न एक है. ”

वह कहते हैं, "आपने इंटरनेट बंद कर दिया लेकिन संगठित तरीके से माहौल को हिंसक बनाने वाले कुछ लोग अपने मकसद में कामयाब कैसे हो गए, ये सोचने वाली बात है. जिन शहरों में हिंसा हुई, ज्यादातर जगहों पर अधिकारी कह रहे हैं कि बाहरी तत्व शामिल थे. सवाल उठता है ये बाहरी तत्व पहुंच कैसे गए? वो भी तब, जबकि पूरे राज्य में धारा 144 लागू है.”

Indien Protest gegen neues Einbürgerungsgesetz
तस्वीर: DW/S. Kumar

हालांकि इसके लिए कुछ अन्य वजहों को भी गिनाया जा रहा है. यह बात भी देखने मिली है कि मुस्लिम समुदाय में सरकार के खिलाफ गुस्सा काफी दिनों से भड़क रहा था लेकिन वो सामने नहीं आ रहा था. इस मुद्दे पर उन्हें कुछ राजनीतिक दलों का भी साथ दिखा तो कुछ शरारती तत्व इसमें सक्रिय हो गए. राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "इन शरारती तत्वों ने धारा 370, ट्रिपल तलाक, अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला जैसी घटनाओं को एक साथ जोड़ा और मुस्लिम युवाओं को गुमराह करने की कोशिश की.”

यूपी के 22 जिलों में प्रदर्शन

हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित कानपुर शहर में भी लगातार दो दिन तक हुई हिंसा के बाद अब शांति है. कानपुर के बाबूपुरवा इलाके में शुक्रवार को नमाज के बाद प्रदर्शन हुआ और फिर अचानक पत्थरबाजी होने लगी. देखते ही देखते पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच जमकर संघर्ष हुआ जिसमें करीब एक दर्जन लोग बुरी तरह से घायल हो गए और तीन लोगों की मौत हो गई. बाबूपुरवा में स्थिति को नियंत्रित करने गए जिले के डीएम और एसएसपी को भी अपनी जान बचाने में मशक्कत करनी पड़ी और इलाके के पुलिस क्षेत्राधिकारी मनोज गुप्त घायल भी हो गए थे.

कानपुर में शनिवार को शहर के दूसरे इलाके यानी यतीमखाना के आस-पास एक बार फिर हिंसा भड़की. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच करीब पांच घंटे तक पत्थरबाजी और गोलीबारी होती रही. यतीमखाना पुलिस चौकी के पास आग लगा दी गई जिसमें पुलिस के कई वाहन जल गए. कानपुर के एडीजी प्रेम प्रकाश के मुताबिक यहां की हिंसा में पीएफआई जैसे संगठनों का हाथ होने के साक्ष्य मिले हैं और उसी के अनुसार कार्रवाई की जा रही है.

Indien Protest gegen neues Einbürgerungsgesetz
तस्वीर: DW/S. Kumar

वहीं कानपुर के हिंसाग्रस्त इलाकों में पुलिस की धरपकड़ से लोगों में नाराजगी भी है. बाबूपुरवा के कई लोगों ने बताया कि हिंसा वाली रात में पुलिस ने लोगों को घरों से उठाया और उन्हें मारा पीटा. लोगों का आरोप था कि बिना कुछ कहे पुलिस वालों ने उनके घरों के दरवाजे, शीशे और दुकानों में तोड़-फोड़ शुरू कर दी. यहां तक कि महिलाओं को भी पीटा गया. पास में ही बेगमपुरवा मोहल्ले की कुछ महिलाओं का कहना था कि डर के मारे उनके मोहल्ले की सैकड़ों महिलाएं मस्जिद में चली गईं.

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर उत्तर प्रदेश के 22 जिलों में हिंसक प्रदर्शन हुए और उसके बाद इन जिलों में पुलिस की कार्रवाई लगातार जारी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य भर में अब तक 164 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं और 889 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है. इसके अलावा 5312 लोगों को हिरासत में लेकर निरोधात्मक कार्रवाई की गई.

सोशल मीडिया पोस्ट्स पर कार्रवाई

हिंसा प्रभावित जिलों में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी गई थी लेकिन इसके बावजूद सोशल मीडिया पर अफवाहें और कथित तौर पर भड़काऊ बयान पोस्ट्स होते रहे. राज्य के डीजीपी ओपी सिंह के मुताबिक अब तक में कुल 15,344 सोशल मीडिया पोस्ट्स के विरुद्ध कार्रवाई की गई है. डीजीपी के अनुसार, हिंसा के दौरान 288 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, जिसमें 61 पुलिसकर्मियों को गोली लगी है.

Indien Protest gegen neues Einbürgerungsgesetz
तस्वीर: DW/S. Ghosh

इस बीच, प्रदर्शन की सूचना, हिंसा की आशंका और राज्य भर में धारा 144 लागू होने के बावजूद इन सब को रोक पाने में नाकाम रहने और स्थिति पर तत्काल नियंत्रण न पाने को लेकर पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल भी उठ रहे हैं. गुरुवार यानी 19 दिसंबर को राज्य भर में हुए प्रदर्शनों और फिर हिंसा के बावजूद पुलिस और प्रशासन कानपुर, रामपुर, बिजनौर जैसी जगहों पर हिंसा रोकने में नाकाम रहा. मेरठ में भी लगातार प्रदर्शन होते रहे और हिंसा भी होती रही, लेकिन पुलिस को नियंत्रण पाने में तीन दिन लग गए. मेरठ में चार लोगों की मौत हुई है.

बताया ये भी जा रहा है कि सभी जिलों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की कमी भी स्थिति को समय से नियंत्रित न कर पाने की बड़ी वजह रही. प्रशासन ने हिंसा की आशंका वाले इलाकों में ज्यादा पुलिस बल तैनात किए लेकिन दूसरी जगहों को या तो नजरअंदाज किया या फिर पुलिस बलों की कमी रही. और इसका परिणाम ये हुआ कि हिंसा अलग-अलग जगहों पर होती रही.

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