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यूएन में फलीस्तीन पर रस्साकशी

२३ सितम्बर २०११

संयुक्त राष्ट्र महासभा फलीस्तीन पर जारी रस्साकशी के इर्द गिर्द घूम रही है. अमेरिका फलीस्तीन को यूएन का सदस्य राष्ट्र बनाने के खिलाफ वीटो करने पर तुला है तो फ्रांस ने बीच का रास्ता सुझाया है. अब मतदान पर नजरें टिकीं.

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फलीस्तीन पर चर्चातस्वीर: dapd

बुधवार को फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में कहा कि फलीस्तीन को गैर सदस्यीय राष्ट्र के तौर पर संयुक्त राष्ट्र में शामिल किया जाए. अब तक उसे विश्व संस्था में सिर्फ पर्यवेक्षक का दर्जा ही प्राप्त था. लेकिन फ्रांस ने भी फलीस्तीन को पूरी तरह संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाए जाने का विरोध किया है. फलीस्तीनी शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण सदस्यता के लिए आवेदन करेंगे.

सारकोजी ने अपने भाषण में साल भर के भीतर इस्राएल और फलीस्तीन के बीच स्पष्ट समझौते के लिए भी कहा. उन्होंने कहा कि इस बारे में अमेरिका के नेतृत्व में चल रही शांति प्रक्रिया में यूरोपीय, अरब और दूसरे देशों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए.

'खतरनाक टकराव'

भाषण के बाद में फ्रांस के राष्ट्रपति ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से भी मुलाकात की जो इस बात पर जोर दे रहे हैं कि इस्राएल और फलीस्तीन के बीच बातचीत के जरिए ही स्थायी शांति कायम की जा सकती है. ओबामा ने सारकोजी के बयान पर कुछ नहीं कहा लेकिन उनके राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार बेन रोड्स ने कहा सारकोजी के सुझाव अहम और रचनात्मक हैं.

सारकोजी ने बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की है. एक तरफ जहां फलीस्तीनी संयुक्त राष्ट्र में एक अलग राष्ट्र के तौर पर सदस्यता चाहते हैं वहीं अमेरिका इस तरह की कोशिश को वीटो के जरिए रोकने के लिए कमर कस चुका है. सारकोजी ने कहा कि इस तरह का टकराव खतरनाक हो सकता है.

सारकोजी ने कहा, "हम सब जानते हैं कि फलीस्तीन को तुरंत संयुक्त से राष्ट्र के तौर पर मान्यता नहीं मिल सकती. इसकी सबसे बड़ी वजह मुख्य पक्षों के बीच भरोसे की कमी है. लेकिन क्या किसी को इस बात में शक हो सकता है कि सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर वीटो से मध्य पूर्व में हिंसा की झड़ी लगने का खतरा है."

ओबामा की तरह सारकोजी ने कहा कि बातचीत के जरिए दो राष्ट्र के सिद्धांत को अमली जामा पहनाया जाए जिसमें 1967 से पहले मौजूद सीमाओं के आधार पर फलीस्तीनी राष्ट्र बनना भी शामिल है, लेकिन कुछ यहूदी बस्तियों के जमीन देने की होगी जिन पर सहमति हो चुकी थी.

जर्मनी की ठंडी प्रतिक्रिया

सारकोजी के प्रस्ताव पर जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने ठंडी प्रतिक्रिया जताई है. उन्होने कहा है कि इस प्रस्ताव से उन्हें कोई हैरानी नहीं हुई है क्योंकि इसमें वही बातें हैं जिन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में बात होती रही है. उन्होंने कहा, "फिलहाल जो भी इस मुद्दे पर चर्चा कर रहा है, उसे पता है कि ये पैकेज के कुछ स्तंभ हैं." वेस्टरवेले ने कहा कि जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में फलीस्तीन को पूर्ण राष्ट्र का दर्जा देने के मामले पर मतदान होगा तो जर्मनी इस्राएल के साथ अपने विशेष रिश्तों का भी ध्यान रखेंगे.

इससे पहले वेस्टरवेले ने कहा कि फलीस्तीन और इस्राएल के बीच स्थायी शांति के लिए बातचीत ही अकेला रास्ता है. उनके मुताबिक, "हम अब भी समझते हैं कि बातचीत से ही कोई नतीजा निकल सकता है." राजनयिक मोर्चे पर कोशिश हो रही हैं कि फलीस्तीनियों को फिलहाल संयुक्त राष्ट्र से अलग राष्ट्र के तौर पर मान्यता हासिल करने की कोशिश बंद करने के लिए राजी किया जाए.

सकारात्मक प्रस्ताव

गुरुवार को एक फलीस्तीनी अधिकारी ने कहा कि सारकोजी का प्रस्ताव सकारात्मक है लेकिन इसका अध्ययन करना होगा. फलीस्तीनी शिष्टमंडल के सदस्य यासेर अब्देल रब्बो ने वॉयस ऑफ फलीस्तीन रेडियो के साथ बातचीत में कहा कि राष्ट्र के तौर पर मान्यता हासिल करने का आवेदन शुक्रवार को तय योजना के मुताबिक दिया जाएगा. इस आवेदन को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सिफारिश की जरूरत होगी जहां अमेरिका ने इसके खिलाफ वीटो करने का संकल्प ले रखा है.

अब्देल ने कहा कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि क्या अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और रूस के चार पक्षीय समूह ने मिल कर कोई नई पहल तैयार की है. फलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र की आम सभा को संबोधित करेंगे.

वहीं इस्राएल के विदेश मंत्री अवीकदो लीबरमान ने उम्मीद जताई है कि अब्बास के भाषण के बाद चार पक्षीय समूह कोई बयान जारी करेगा. इस बीच अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने राष्ट्रपति अब्बास और इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतान्याहू से मुलाकात की है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ए कुमार

संपादन: ए जमाल

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