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समाज

युवाओं में हताशा और अवसाद बढ़ा रही है बेरोजगारी

२ मार्च २०२१

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में पिछले दो हफ्ते में कम से कम चार प्रतियोगी छात्रों ने आत्महत्या कर ली. बताया जा रहा है कि सभी ने अवसाद के चलते यह कदम उठाया है. अवसाद के पीछे परीक्षाओं में असफलता और अवसरों की कमी है.

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Symbolbild Tabletten Selbstmord
तस्वीर: picture-alliance/PYMCA/F. Finn

प्रयागराज में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए लाखों की संख्या में छात्र रहते हैं और कोचिंग सेंटरों या फिर घर पर रहकर पढ़ाई करते हैं. सलोरी इलाके के मनीष यादव ने 27 फरवरी को फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली. मनीष गाजीपुर के रहने वाले थे और पिछले दो साल से यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. पिछले कुछ दिनों में यह इस तरह की चौथी घटना थी. प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र बड़ी संख्या में लंबे समय से रह रहे हैं और इन परीक्षाओं में सफलता भी पाते रहे हैं और विफलता भी. लेकिन अवसाद में आकर आत्महत्या कर लेने की बातें अक्सर सुनने में नहीं आती हैं. इसीलिए जब महज दो हफ्तों में ऐसी ही कई घटनाएं सामने आईं तो लोगों का हैरान होना लाजिमी था.

प्रयागराज में बैंकिंग परीक्षाओं की तैयारी के लिए एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाने वाले दिनेश कुमार सिंह कहते हैं, "इस तरह की घटनाएं चिंतित करने वाली हैं. हम लोग छात्रों से अवसाद में न आने की अपील करते रहते हैं. पढ़ाई के दौरान उन्हें यह बताते रहते हैं कि परीक्षा में फेल हो जाना, जीवन समाप्त होने जैसा नहीं है. आगे भी बहुत से रास्ते हैं लेकिन इस तरह का कदम उठाने वाले छात्रों के साथ सिर्फ पढ़ाई का दबाव ही नहीं बल्कि और भी वजहें हो सकती हैं. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि नौकरियों में अवसरों की कमी, परीक्षाओं का समय पर न होना, होने पर भी परिणाम का समय पर न आना जैसी स्थितियों से छात्र फ्रस्टेशन का शिकार हो जाते हैं.”

मानसिक बीमारी कलंक तो नहीं...

वर्षों चलती है भर्ती प्रक्रिया

प्रयागराज यानी इलाहाबाद प्रतियोगी छात्रों का एक पसंदीदा शहर रहा है. इसकी एक वजह यह भी है कि यहां राज्य लोक सेवा आयोग के मुख्यालय के अलावा कई अन्य भर्ती आयोगों के मुख्यालय और केंद्रीय आयोगों के क्षेत्रीय कार्यालय हैं. यही आयोग विभिन्न सेवाओं के लिए भर्ती परीक्षाओं का आयोजन करते हैं. लेकिन हर जगह पिछले कई सालों से भर्तियां रुकी हुई हैं या फिर देर-सवेर चल रही हैं. कर्मचारी चयन आयोग, उत्तर प्रदेश माध्यमिक सेवा चयन बोर्ड, उच्चतर शि‍क्षा सेवा चयन आयोग जैसी संस्थाओं की भर्ती प्रक्रिया पूरी होने में तीन से चार साल तक का समय लग रहा है.

उदाहरण के तौर पर कर्मचारी चयन आयोग की साल 2017 और साल 2018 की भर्ती प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हो सकी है. यही नहीं, उत्तर प्रदेश माध्यमिक शि‍क्षा चयन बोर्ड ने पिछले चार साल में किसी नई भर्ती के लिए घोषणा ही नहीं की है. इस बोर्ड से राज्य के माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है. पिछले साल अक्टूबर में चयन बोर्ड की ओर से करीब पंद्रह हजार पदों के लिए भर्ती करने की घोषणा हुई लेकिन शुरुआती दौर में ही तमाम विसंगतियों के चलते बोर्ड ने इसे वापस ले लिया. नए सिरे से अब तक कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है. पिछले दिनों सोशल मीडिया पर छात्रों ने इस बारे में अभियान भी चलाया था.

बेरोजगारी के कारण आत्महत्या

प्रयागराज में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले एक छात्र सुदीप चौहान बताते हैं, "भर्ती प्रक्रिया की लेट-लतीफी तो एक समस्या है ही, पिछले कई सालों से ऐसी शायद ही कोई परीक्षा हुई हो जो कोर्ट के चक्कर में न फंसी हो. यहां रहकर जो छात्र छह-सात साल लगा देता है, उसके बाद भी उसे असफलता मिले और नौकरियों में लगातार कमी होती रहे तो उसे आगे का भविष्य अंधकारमय दिखने लगता है. हालांकि इसकी वजह से अवसाद में आने वाले लोग यहां न के बराबर मिलेंगे. प्रयागराज में आपको चालीस साल की उम्र तक के लोग भी लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं की तैयारी करते मिलेंगे. कई असफलताओं के बावजूद चिंतित जरूर देखेंगे लेकिन अवसादग्रस्त नहीं. आत्महत्या जैसा कदम उठाने वाले छात्रों के साथ कुछ अन्य वजहें भी होती होंगी.”

अभी कुछ महीने पहले जारी नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट कहती है कि साल 2019 में आत्महत्या करने वाले कुल 1,39,123 लोगों में से दस फीसद ऐसे थे जिन्होंने बेरोजगारी से तंग आकर यह कदम उठाया था. यानी यदि साल 2019 की बात करें तो हर रोज करीब 38 बेरोजगारों ने खुदकुशी की. आंकड़ों के मुताबिक, बेरोजगार लोगों की आत्महत्या का यह आंकड़ा पिछले 25 साल में सबसे ज्यादा है. पिछले कोविड संक्रमण की वजह से मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन के बाद यह संख्या और भी ज्यादा हुई है. बेरोजगार युवकों की आत्महत्या का यह आंकड़ा किसानों की आत्महत्या से भी ज्यादा है. आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर वे छात्र हैं जो किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं या फिर प्रतियोगी परीक्षा में असफल रह जाते हैं और अवसादग्रस्त होकर खुदकुशी जैसा कदम उठाते हैं.

डिप्रेशन की रोकथाम में कैसे फायदेमंद है कसरत

डिप्रेशन में इलाज सरकार की जिम्मेदारी

मनोचिकित्सक डॉक्टर राजीव मेहता कहते हैं, "गहरी निराशा की चरम अवस्था ही आत्महत्या के लिए प्रेरित करती है. गहरी निराशा से होपलेसनेस जैसी स्थिति जन्म लेती है. मतलब, व्यक्ति यह सोचने लगता है कि अब तो मेरा कुछ हो ही नहीं सकता, इसलिए मर जाना ही बेहतर है. हालांकि अक्सर लोग यह भी सोचते हैं कि परेशानियां हैं, ठीक हो जाएंगी. डिप्रेशन है, तो यह भी अपने आप ठीक हो जाएगा. लेकिन, ऐसा होता बहुत कम है कि कोई बीमारी अपने आप ठीक हो जाए.” साल 2018 में पारित हुए 'मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017' के तहत भारत में आत्महत्या के अपराधीकरण का कानून खत्म कर दिया गया है और मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों को मुफ्त मदद का प्रावधान किया गया है. इस के तहत आत्महत्या का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मदद पहुंचाना, इलाज कराना और उन्हें पुनर्वास देना सरकार की जिम्मेदारी होगी.

लेकिन जहां तक छात्रों और खासकर बेरोजगार छात्रों का संबंध है, इस तरह की किसी मदद की कोशिश दिखाई नहीं देती है. सरकारी अधिकारियों की उदासीनता इस बात से भी पता चलती है कि इस मामले में किसी आयोग या बोर्ड का कोई अधिकारी आधिकारिक रूप से कोई बयान तक नहीं देना चाहता. सरकार के पास ऐसे छात्रों की काउंसिलिंग की भी कोई योजना नहीं है जो कि अवसादग्रस्त छात्रों की मदद कर सके. हालांकि इसका एक पक्ष यह भी है कि ऐसे छात्रों ने इस तरह की किसी मदद की कोई कोशिश की हो, इसकी जानकारी भी नहीं मिलती है.

लखनऊ में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थान चलाने वाले रिजवान अहमद कहते हैं, "ज्यादातर छात्र अकेले रहकर तैयारी करते हैं. ऐसे में उनके बारे में कई बार उनके परिजनों तक को नहीं पता चलता है. कोचिंग संस्थानों में भी छात्रों को मोटिवेट किया जाता है कि वो डिप्रेशन में न आएं लेकिन जो छात्र डिप्रेशन में आ ही जाते हैं, उनके बारे में पता ही नहीं चल पाता. यदि पता चल जाए तो उसे डिप्रेशन से बाहर लाने की कोशिश जरूर होगी. हां, यदि ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं तो इस बारे में सरकार के साथ साथ अभिभावकों को भी गंभीर होना पड़ेगा.”

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