यहां कामकाजी महिलाएं सबसे ज्यादा खतरे में
अमेरिकी थिंक टैंक सीएसआईएस ने भारतीय राज्यों की रैंकिंग नौकरीपेशा महिलाओं के अधिकारों, स्थिति और सुरक्षा से जुड़े कुछ मुद्दों पर की है. अधिकतम 40 अंक मिलने की गुंजाइश थी लेकिन कोई राज्य 30 का आंकड़ा भी पार ना कर सका.
10 से भी कम नंबर
इनमें दिल्ली, असम, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं. राजधानी होने के बावजूद यहां न्याय मिलने की कम संभावना और कुल कामगारों में महिलाओं की भागीदारी कम होने के कारण दिल्ली सबसे नीचे रही. इसके अलावा कई सेक्टरों में अब भी कामकाजी महिला को रात की ड्यूटी ना मिलना और महिला उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन देने में काफी पिछड़े रहे ये राज्य.
15 से नीचे निपटे
ओडीशा, मणिपुर, पंजाब, मेघालय, राजस्थान, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और गोवा जैसे राज्यों में महिलाओं की हालत अत्यंत खराब है. वे 15 अंक से ज्यादा पाने में कामयाब नहीं हुए.
बीच में 20 के पास
चंडीगढ़, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, झारखंड, गुजरात, मिजोरम, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड का स्कोर 20 से कम ही रह गया. स्थिति बदलने के लिए राज्यों में महिलाओं पर लगी लैंगिक भेदभावपूर्ण पाबंदियां हटाना और कार्यस्थलों के अलावा काम पर आने-जाने के रास्ते तक को सुरक्षित बनाना जरूरी होगा.
बेहतर लेकिन 25 से कम
ये सात राज्य कामकाजी महिलाओं के लिए कईयों से बेहतर रहे. 20 से 25 के बीच अंक पाने वाले ये राज्य हैं छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक. कुल वर्कफोर्स में हिस्सेदारी के मामले में केवल 24 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं के साथ भारत दुनिया में सबसे पीछे है.
अधिकतम 30 तक पहुंचे
तीन राज्य भारत में टॉप पर माने गए. ये हैं सिक्किम, तेलांगना और पुद्दुचेरी. सिक्किम के अलावा कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु इन तीन भारतीय राज्यों में ही फैक्ट्री, रीटेल व्यवसायों या आईटी सेक्टर में महिलाओं को रात में काम करने पर लगी पाबंदियां हट चुकी हैं.
किस आधार पर मिले अंक
इन चार बिंदुओं को देखा गया - महिलाओं के नाइट ड्यूटी करने पर कानूनी रोक का होना, महिला सुरक्षा या यौन अपराध संबंधी शिकायतों के निपटारे में राज्यों की न्याय व्यवस्था की मुस्तैदी, कुल वर्कफोर्स में महिलाओं का हिस्सा और नई महिला उद्यमियों को राज्य की ओर से मिलने वाला प्रोत्साहन.
कितनी है संभावना
विकास करते भारत की चाल को इतनी कम महिलाओं की हिस्सेदारी धीमा कर रही है. कंसल्टिंग कंपनी मैकिंजी की रिपोर्ट दिखाती है कि अगर पुरुषों के जितनी महिलाएं वर्कफोर्स में जुड़ जाएं, तो अगले एक दशक में ही भारत की जीडीपी में 16 फीसदी बढ़ सकती है. इसके लिए राज्यों में महिलाओं पर लगी लैंगिक भेदभावपूर्ण पाबंदियां हटाना और कार्यस्थलों के अलावा काम पर आने-जाने के रास्ते तक को सुरक्षित बनाना जरूरी होगा.