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क्या पिघलेगी तीस्ता के पानी पर जमी बर्फ?

प्रभाकर मणि तिवारी
२३ मई २०१८

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना लंबे अरसे बाद बंगाल के दौरे पर आ रही हैं. इससे पहले बीते साल वे दिल्ली दौरे पर आईं थीं. लेकिन उस दौरान तीस्ता के पानी को लेकर कोई खास बातचीत नहीं हुई थी.

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तस्वीर: DW/A. Chatterjee

कोई साल भर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शुक्रवार को शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के मौके पर एक मंच पर मौजूद रहेंगे. दीक्षांत समारोह के बाद वहां बांग्लादेश भवन का उद्घाटन होगा. इससे पहले बीते साल अप्रैल में इन तीनों की दिल्ली में मुलाकात हुई थी. अब दोबारा मुलाकात से पहले इस बात पर कयास लगने लगा है कि क्या तीस्ता के पानी पर दोनों देशों के बीच जमी बर्फ पिघलेगी. ममता बनर्जी इस नदी का ज्यादा पानी बांग्लादेश को देने के पक्ष में नहीं हैं. हालांकि ममता व हसीना के बीच इस मुद्दे पर कोई औपचारिक बातचीत तय नहीं है. इसके साथ ही रोहिंग्या मुद्दे पर मोदी और हसीना के बीच बातचीत के भी कयास लगने लगे हैं. चुनावी साल होने की वजह से हसीना के लिए तीस्ता समझौता काफी अहम है.

हसीना का दौरा

हसीना शुक्रवार को बांग्लादेश के एक विशेष विमान से कोलकाता स्थित नेताजी सुभाष चंद्र अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पहुंचने के बाद हेलीकाप्टर से शांतिनिकेतन रवाना हो जाएंगी. वहां नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के साथ विश्वभारती के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लेने के बाद परिसर में बने बांग्लादेश भवन का उद्घाटन किया जाएगा. बर्दवान स्थित कवि नजरुल विश्वविद्यालय अगले दिन यानि शनिवार को हसीना को मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित करेगा. उस समारोह में मोदी तो नहीं, लेकिन ममता मौजूद रहेंगी.

सिलाई मशीन से दबकर टूट रहे हैं सपने

यहां सरकारी सूत्रों का कहना है कि हसीना और मोदी के बीच तो दीक्षांत समारोह के दौरान सीमापार से आतंकवाद और रोहिंग्या संकट पर बातचीत संभव है. फिलहाल ममता व शेख हसीना के बीच किसी औपचारिक बातचीत का कार्यक्रम तय नहीं है. लेकिन नजदीकी आपसी रिश्तों की वजह से दोनों नेता खासकर तीस्ता के पानी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर बातचीत कर सकते हैं. तीस्ता समझौता बीते लंबे समय से दोनों देशों के आपसी संबंधों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा साबित हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के इसके पक्ष में होने के बावजूद ममता मौजूदा प्रारूप में इसके लिए राजी नहीं हैं. इस मुद्दे पर बांग्लादेश में भी भारी नाराजगी है.

तीस्ता की अहमियत

प्रेसीडेंसी कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल अमल मुखर्जी कहते हैं, "तीस्ता विवाद से दोनों देशों के आपसी रिश्तों में कड़वाहट घुल रही है." ममता यह कहते हुए इसका विरोध करती रही हैं कि बांग्लादेश को ज्यादा पानी देने की स्थिति में उत्तर बंगाल में खेती चौपट हो जाएगी. वह जितना पानी देने के लिए तैयार हैं, बांग्लादेश उतने पर सहमत नहीं है. वह इस पानी में बराबर का हिस्सा मांग रहा है. 2011 में हुए एक अंतरिम समझौते के तहत तीस्ता से भारत को 42.5 फीसदी और बांग्लादेश को 37.5 फीसदी पानी देने का प्रस्ताव था. लेकिन ममता इसके लिए तैयार नहीं हुई. ममता ने बांग्लादेश को तीस्ता के बदले तोर्षा नदी का पानी देने का वैकल्पिक प्रस्ताव दिया था. लेकिन बांग्लादेश ने इस प्रस्ताव में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. दोनों पक्षों के अपने-अपने रुख पर अडिग होने की वजह से केंद्र की तमाम कोशिशों के बावजूद इस समस्या के समाधान की कोई राह नहीं निकल सकी है.

सिक्किम की पहाड़ियों से निकल कर भारत में लगभग 300 किलोमीटर का सफर करने के बाद तीस्ता नदी बांग्लादेश पहुंचती है. वहां इसकी लंबाई 121 किलोमीटर है. बांग्लादेश के 14 फीसदी इलाके सिंचाई के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर हैं. तीस्ता नदी के पानी पर विवाद देश के विभाजन जितना ही पुराना है. तीस्ता के पानी के लिए ही ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने 1947 में सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी. लेकिन कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसका भारी विरोध किया था. इस विरोध को देखते हुए सीमा आयोग ने तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत को सौंप दिया था. उसके बाद यह मामला ठंढे बस्ते में रहा. लेकिन 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बांग्लादेश के गठन के बाद पानी का मामला दोबारा उभरा. 1972 में इसके लिए भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग का गठन किया गया. 1996 में गंगा के पानी पर हुए समझौते के बाद तीस्ता के पानी के बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ा. उसी समय से यह मुद्दा लगातार विवादों में है.

हसीना के लिए अहम

दूसरी ओर हसीना के लिए तीस्ता के पानी के बंटवारे का मुद्दा काफी अहम हो गया है. इससे अगले साल होने वाले आम चुनावों में सत्ता बनाए रखने में भी सहायता मिलेगी. विरोधी दल तीस्ता के बहाने उन पर भारत के हाथों की कठपुतली होने के आरोप लगाते रहे हैं. वह तीस्ता के पानी से अपनी छवि पर लगे इस दाग को भी धो सकती हैं. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बांग्लादेश में होने वाले आम चुनावों से पहले शेख हसीना के लिए तीस्ता समझौता काफी अहम है. विद्यासागर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर शिवाजी प्रतिम बसु कहते हैं, "देश की कट्टरपंथी ताकतें हसीना पर लगातार दबाव बढ़ा रही हैं. सवाल उठ रहे हैं कि उनको भारत से आखिर क्या मिला है. अब तक तीस्ता समझौता लागू नहीं हो सका है." वह कहते हैं कि ममता और मोदी के लिए तीस्ता एक राजनीतिक मुद्दा है. ममता अगर बांग्लादेश को ज्यादा पानी देने पर सहमत हो जाती हैं, तो अगले साल के आम चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया जा सकता है. पर्यवेक्षकों के मुताबिक यह मुद्दा बेहद जटिल स्थिति में पहुंच गया है. क्या तीनों नेताओं की मौजदूगा में इस मुद्दे पर कायम गतिरोध दूर करने की कोई राह निकल सकती है? बसु का कहना है कि इस बारे में फिलहाल पक्के तौर पर कुछ कहना संभव नहीं है. इस पर महज कयास ही लगाए जा सकते हैं.

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