तालिबान के साथ बातचीत में हिस्सा लेगा भारत
१५ अक्टूबर २०२१रूस की मेजबानी में आयोजित की जाने वाले "मॉस्को फॉर्मेट" बातचीत के इस दौर में 11 देश हिस्सा लेंगे. रूस ने भारत को भी इसमें हिस्सा लेने के लिए निमंत्रण भेजा था जिसे भारत ने स्वीकार कर लिया है.
रूस ने कहा है कि इस बैठक में अंतरराष्ट्रीय समुदाय तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल को समझाने की कोशिश करेगा कि उसे अफगानिस्तान में एक और ज्यादा समावेशी सरकार का गठन करना चाहिए.
भारत और तालिबान
मॉस्को फॉर्मेट की शुरुआत 2017 में हुई थी और तब उसमें सिर्फ छह देश शामिल थे - रूस, अफगानिस्तान, भारत, ईरान, चीन और पाकिस्तान. 2018 में रूस ने इस फॉर्मेट की बातचीत में तालिबान को भी आमंत्रित किया था और तब भी उस वार्ता में भारत ने "अनौपचारिक स्तर" पर भाग लिया था.
भारत ने अभी तक तालिबान के साथ किसी भी तरह के सहयोग का कोई संकेत नहीं दिया है. भारत ने अफगानिस्तान में स्थित अपने दूतावास और वाणिज्य दूतावासों को भी खाली कर दिया था और कर्मचारियों को वापस भारत ले आया गया था.
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सरकार बनाने से पहले 31 अगस्त को कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने राजधानी दोहा में तालिबान के प्रतिनिधियों से मिल कर बातचीत की थी. लेकिन उसके बाद जब तालिबान की सरकार बनी तो भारत ने उसे लेकर भारत ने अपनी अस्वीकृति जाहिर की थी.
आतंकवाद का खतरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि तालिबान ने जिस सरकार का गठन किया है वो समावेशी नहीं है. मॉस्को की बैठक में भारत और तालिबान के बीच तालिबान सरकार के गठन के बाद पहली मुलाकात होगी.
इसी सप्ताह अफगानिस्तान पर जी-20 देशों की भी एक असाधारण बैठक हुई थी जिसमें मोदी ने कहा था कि अफगानिस्तान को एक "समावेशी सरकार" और "बिना किसी रुकावट के मिलने वाले लोकोपकारी सहयोग" की जरूरत है.
उन्होंने यह भी कहा था कि यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि "अफगानिस्तान की जमीन कट्टरपंथ और आतंकवाद का स्त्रोत ना बन जाए." रूस अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर एक काफी सक्रिय भूमिका निभा रहा है.
उसने अभी तक तालिबान की सरकार को मान्यता तो नहीं दी है लेकिन अफगानिस्तान में अपने दूतावास को खुला रखा है. उसने अमेरिका, चीन और पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान पर विमर्श की एक अलग व्यवस्था भी बनाई हुई है और उसमें भारत को शामिल नहीं किया है.