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मॉनसून की बेईमानी ने भारत की मुश्किलें बढ़ाई

२७ जुलाई २०२२

खेती पर निर्भर भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह साल मुश्किलें लेकर आया है. कुल-मिलाकर भले ही मॉनसून के मौसम में पानी ठीकठाक बरसा, लेकिन कहीं धूप कहीं छांव वाले हालात ने खेती का नुकसान किया है.

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असम में इतनी बारिश हुई की बाढ़ आ गई
असम में इतनी बारिश हुई की बाढ़ आ गईतस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance

भारत में सालाना बारिश का 75 फीसदी पानी बरसात के मौसम में होता है. मोटे तौर पर खेती पर आधारित करीब 3 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिये यही बारिश जीवनधारा है.

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और चावल, गेंहू और चीनी के सबसे बड़े उत्पादक देश में इस साल 1 जून से शुरू हुए मॉनसून में अब तक 11 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है. पिछले 50 सालों में यहां बरसात के चार महीने में औसत करीब 89 सेंटीमीटर बरसात होती रही है और औसत मॉनसून का मतलब है इसका 96-104 फीसदी पानी.

हालांकि, इस बार के मॉनसून में जो बारिश की असमानता रही है, यानी कहीं सिर्फ बूंदाबांदी, तो कहीं घनघोर बारिश, उसने फसलों को लेकर चिंता बढ़ा दी है. महंगाई को संभालने में जुटी सरकार के लिए भी यह स्थिति काफी जटिल है. 

बारिश हुई तो ऐसी की सारी व्यवस्था चरमरा गई, ये तस्वीर अहमदाबाद की है
बारिश हुई तो ऐसी की सारी व्यवस्था चरमरा गई, ये तस्वीर अहमदाबाद की हैतस्वीर: Ajit Solanki/AP Photo/picture alliance

गलत शुरुआत

इस बार मॉनसून में बारिश का विस्तार और वितरण पूरे भारत में बहुत असमान रहा है. कुल-मिलाकर मॉनसून की बारिश जून में औसत से 8 फीसदी कम रही है और कुछ इलाकों में तो यह कमी 54 फीसदी तक थी.

जुलाई के पहले दो हफ्ते में तेज हुई बारिश ने इस कमी को पूरा किया लेकिन कई राज्यों में बाढ़ आ गई. एक तरफ जहां दक्षिणी, पश्चिमी और देश के मध्य हिस्से में औसत से ज्यादा बारिश हुई, वहीं उत्तरी और पूर्वी इलाकों को बारिश की कमी झेलनी पड़ गई.

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इस साल कपास, सोयाबीन और गन्ने की बुवाई तो पिछले साल से ज्यादा हुई है, लेकिन कारोबारी फसल की उपज को लेकर चिंता में हैं, क्योंकि जून में बरसात देर से होने के कारण बुवाई में भी देरी हुई है. इस बीच औसत से ज्यादा पानी का दौर लंबा रहने के कारण कपास, सोयाबीन और गन्ने वाले इलाकों में भोजन के उत्पादन में दिक्कत पैदा हो सकती है.

फसलों का संकट

जून में लगभग सूखा और जुलाई में भारी बरसात ने गर्मी में बोई जाने वाली लगभग सभी फसलों को प्रभावित किया, लेकिन चावल, कपास और सब्जियों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ा. भारत में बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल का कुछ हिस्सा और उत्तर प्रदेश चावल के बड़े उत्पादक इलाके हैं. यहां बारिश में 57 फीसदी तक कमी दर्ज की गई है. इसके नतीजे में चावल की बुवाई इस साल 19 फीसदी गिर गई.

इस साल धान की बुवाई 19 फीसदी कम हुई है
इस साल धान की बुवाई 19 फीसदी कम हुई हैतस्वीर: Raminder Pal Singh/AA/picture alliance

इससे उलट तेज बारिश और बाढ़ ने गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कपास, सोयाबीन और दाल की फसलों पर बुरा असर डाला है. चावल भारत के लिए सबसे जरूरी फसल है. भारत इसका सबसे प्रमुख निर्यातक है. कम उपज की वजह से केंद्र सरकार चावल के निर्यात पर रोक लगा सकती है, जिससे भारत की 1.4 अरब जनता को पर्याप्त आपूर्ति मिलती रहे. इस तरह का कोई भी संरक्षणवादी कदम दुनिया के बाजार में इसकी कीमत बढ़ा देगा, जो पहले हीखाने-पीने की चीजों की महंगाई झेल रहा है. भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है.

क्या खाने की कीमतें ऊंची बनी रहेंगी?

चावल, दाल और सब्जियों की कीमतें चढ़ने के आसार हैं, क्योंकि कारोबार, उद्योग और सरकारी विभागों के अधिकारी यह मान रहे हैं कि उल्टे-पुल्टे मॉनसून की वजह से इस साल गर्मियों की उपज घटेगी.

भारत ने खाने-पीने की चीजों की कीमतों को बढ़ने से रोकने के लिए निर्यात पर पाबंदी लगा दी है और आयात का दरवाजा खोल दिया है. इसके बाद भी भोजन की कीमतों में महंगाई की दर 7 फीसदी के आसपास है.

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भारत में खुदरा मूल्य की महंगाई दर में आधी हिस्सेदारी खाने-पीने के चीजों की महंगाई दर की है. यह सरकार के लिए एक बड़ा सिरदर्द साबित हो सकती है, जो बढ़ती कीमतों पर लोगों के गुस्से को संभालने में जुटी है.

महंगाई का यह परिदृश्य ब्याज दरों को भी बढ़ायेगा और इसके नतीजे में अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने की रफ्तार धीमी होगी.

एनआर/वीएस (रॉयटर्स)