मैर्केल के उत्तराधिकारी के चुनाव के साथ एक युग का अंत
७ दिसम्बर २०१८यूरोप की सबसे प्रभावशाली नेता के तौर पर सालों साल जानी जाती रहीं मैर्केल के खुद के राजनीतिक भविष्य के लिए भी नया उत्तराधिकारी अहम होगा. इससे तय होगा कि वे 2021 तक अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद राजनीति छोड़ने की अपनी योजना को अमली जामा पहना पाएंगी या नहीं. पिछले कई सर्वेक्षणों से 64 वर्षीया मैर्केल की घटती लोकप्रियता का पता चल रहा है. इसका कारण मुख्य रूप से शरणार्थियों के लिए उनकी उदार नीति को माना जाता है.
हैम्बर्ग में सीडीयू के सम्मेलन में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अपना आखिरी भाषण देने के बाद पूरी सभा ने करीब 9-10 मिनट तक उनके लिए खड़े होकर तालियां बजाईं. इस सम्मान को देखकर मैर्केल ने उम्मीद जताते हुए कहा, "मैं आशा करती हूं कि इस पार्टी कॉन्फ्रेंस से हम और तैयार, प्रेरित और एकजुट होकर बाहर निकलेंगे." 2005 से ही जर्मनी का नेतृत्व करने वाली मैर्केल लगातार देश को केंद्र की राजनीति की ओर ले आई हैं. परिवार के लिए ज्यादा छुट्टियां दिलाना, परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल रोकना और सेना में अनिवार्य सेवा खत्म करने जैसी नीतियां उनके समय को परिभाषित करती हैं.
मैर्केल के उत्तराधिकारी के तौर पर जो दो मुख्य उम्मीदवार हैं, उनके व्यक्तित्व और विचारधारा में इतना अंतर है कि नए नेता के चुनाव से पहले पार्टी दो धड़ों में बंटी नजर आ रही है. एक ओर हैं, सीडीयू की महासचिव आनेग्रेट क्रांप-कारेनबावर, जिन्हें एकेके के नाम से भी जाना जाता है. दूसरी ओर कॉर्पोरेट लॉयर फ्रीडरिष मैर्त्स हैं जो मैर्केल के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी नेतृत्व छोड़कर चले गए थे. अब 18 साल बाद वे एक बार फिर मैदान में हैं और लगातार मैर्केल की नीतियों पर हमला करते आए हैं. इसके अलावा एक तीसरा उम्मीदवार भी है जो मैर्केल के कैबिनेट में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए भी मैर्केल की शरणार्थी नीति की खुल कर आलोचना करता रहा है, 38 वर्षीय येन्स श्पान.
अगर 56 साल की एकेके अध्यक्ष बनती हैं तो मैर्केल की जलाई लौ उसी तरह से जलती रहेगी और केंद्र की राजनीति ही आगे बढ़ेगी. वहीं 63 वर्षीय मैर्त्स के चुने जाने पर वे उन लोगों का परचम लहराएंगे जो मैर्केल की चलाई नीतियों में बड़े बदलाव चाहते हैं. मैर्त्स को पूर्व जर्मन वित्त मंत्री और अब संसद के स्पीकर वोल्फगांग शोएब्ले का समर्थन मिला हुआ है. माना जाता है कि यह दोनों नेता लंबे समय से मैर्केल के खिलाफ दुर्भावना पाले हुए हैं. शोएब्ले को लगता है कि मैर्केल ने एक समय उन्हें राष्ट्रपति बनने से रोका था और मैर्त्स को लगता है कि मैर्केल के ही कारण सालों पहले उनका सीडीयू के संसदीय दल के नेता का पद छूटा था.
पार्टी से जुड़े 1001 सदस्य अपने वोट से सीडीयू का नया नेता चुनेंगे, लेकिन जो भी जीतेगा उसके सामने बड़ी चुनौतियां होंगी. फिलहाल सीडीयू को देश में केवल 30 फीसदी समर्थन हासिल है, जबकि मैर्केल के सुनहरे दिनों में यह समर्थन 40 फीसदी तक हुआ करता था. बहुत से समर्थक दक्षिण की ओर झुक गए हैं और अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के साथ साथ वामपंथी राजनीति करने वाली ग्रीन पार्टी की ओर चले गए हैं. अगले साल मई में यूरोपीय संसद के चुनाव होने हैं, जिसके पहले जर्मनी को अपनी एकता का प्रदर्शन करना होगा.
आरपी/एमजे (एएफपी)