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समाज

फेसबुक की सफाई करने वाले परेशान क्यों?

१ मार्च २०१९

भारत से फेसबुक पर डाली गई पोस्ट में अश्लील और दूसरी आपत्तिजनक चीजें हटाने वाले कर्मचारी खुद बहुत तनाव में हैं. इस मुश्किल काम के भारी बोझ से दबे कर्मचारी कम वेतन मिलने की भी शिकायत कर रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Lipinski

एक व्यस्त दिन में भारत के ये कर्मचारी आठ घंटे की शिफ्ट में 2,000 से ज्यादा पोस्ट की जांच परख करते हैं, यानी हर मिनट करीब चार पोस्ट. इन पोस्टों में अश्लील और गंदी तस्वीरें, कंटेंट के साथ साथ कई बार आत्महत्या की कोशिशों जैसे वीडियो भी होते हैं. कर्मचारियों के लिए इन सब को देखना और उन्हें डिलीट करना एक बहुत बड़ी चुनौती है.

फेसबुक ने इस काम का ठेका भारत में जेनपैक्ट नाम की कंपनी को दिया है, जिसके 1,600 कर्मचारियों पर भारत से या भारतीय भाषाओं में डाले गए कंटेंट की निगरानी करने की जिम्मेदारी है. इस कंपनी का दफ्तर दक्षिण भारत के हैदराबाद में है. हाल ही में इस कंपनी के सात कर्मचारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उन्हें बहुत कम तनख्वाह मिलती है और उनका काम तनावपूर्ण होने के साथ ही कई बार भयावह भी होता है.

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तस्वीर: imago/Future Image

इन कर्मचारियों में ज्यादातर की उम्र 20 से 30 साल के बीच है. इन कर्मचारियों ने नौकरी जाने और कंपनी के गोपनीयता कानून से बंधे होने के कारण नाम जाहिर करने से इनकार किया. इनमें से तीन ने तो जेनपैक्ट की नौकरी छोड़ भी दी है.

एक पूर्व कर्मचारी ने बताया, "मैंने महिला कर्मचारियों को असल वक्त में आत्महत्या होते देख कर फर्श पर गिरते देखा है." इस कर्मचारी ने बताया कि उसने कम से कम तीन बार ऐसा देखा. रॉयटर्स स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं कर सका कि इस तरह की घटनाएं होती हैं या फिर कितनी होती हैं. जेनपैक्ट ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया.

इस कर्मचारी ने काम की परिस्थिति के बारे में जो बताया उससे पता चलता है कि दुनिया भर से फेसबुक के दो अरब यूजर जो कुछ पोस्ट करते हैं उसकी निगरानी करने या फिर छानबीन करने में कंपनी को किस तरह की चुनौती पेश आती है.

इन कर्मचारियों से मिली जानकारी से एक ऐसी तस्वीर उभरती है, जो फेसबुक की चमचमाती छवि से बिल्कुल उलट है. यहां दो तरह के कर्मचारी हैं एक वो जो कुशल हैं और बहुत सावधानी से चुने जाते हैं, इनकी तनख्वाह अच्छी है और उनके पास मुश्किल काम निपटाने के लिए सुविधाएं भी हैं. फेसबुक की वाइस प्रेसिडेंट एलेन सिल्वर ने माना है कि फेसबुक पर डाली सामग्री को संभालना, "इतने बड़े पैमाने पर एक अनधिकृत क्षेत्र है. हम इसे सही रखने के लिए बहुत ध्यान देते हैं. हम पोस्ट की समीक्षा करने वालों को ट्रेनिंग देने के अलावा, उनकी नियुक्ति, उनकी बेहतरी के संसाधन भी मुहैया कराते हैं. यह ट्रेनिंग और संसाधन हम समीक्षा करने वाले हर कर्मचारी को देते हैं और साथ ही हमारे साथ काम करने वाले पार्टनरों को भी."

हैदराबाद के कर्मचारियों की कम वेतन वाली शिकायत को फेसबुक ने खारिज किया और कहा कि वह अपने आउटसोर्सिंग पार्टनरों के लिए नई आचार संहिता तैयार कर रहा है. हालांकि इसका ब्यौरा देने से फेसबुक ने इनकार कर दिया. कंपनी का यह भी कहना है कि वह आउटसोर्सिंग से जुड़ी अपनी नीतियों की सालाना समीक्षा करेगी ताकि उसके दिए ठेके पर काम करने वालों की सुविधा के बारे में जानकारी मिल सके. कंपनी दुनिया भर के आउटसोर्सिंग वेंडरों का एक सम्मेलन भी कराने जा रही है जिसका मकसद उनकी आपस में बात करा कर यह जानना है कि मॉडरेटरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाए.

फेसबुक पोस्ट की समीक्षा के लिए कंपनी ने दुनिया के आठ देशों में अपने सहयोगी बनाए हैं. दुनिया में 20 जगहों पर इन पोस्ट की निगरानी और छानबीन के लिए केंद्र चलाए जा रहे हैं. दुनिया के दूसरे देशों के भी करीब दर्जन भर लोगों ने समीक्षा के दौरान होने वाले बुरे अनुभवों की जानकारी दी है.

बीते सितंबर में कैलिफोर्निया में सेलेना स्कोला ने एक मुकदमा दायर किया था. उन्होंने आरोप लगाया कि कंटेंट मॉडरेटर का काम करने वाले ऐसे पोस्ट की समीक्षा करने के कारण मानसिक आघात सहते हैं और फेसबुक से उन्हें कोई संरक्षण नहीं मिलता है. फेसबुक ने कोर्ट में स्कोला के आरोपों से इनकार किया और कहा कि स्कोला के पास ऐसा कहने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है.

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)

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