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मिस्र के बाद अल्जीरिया और यमन में क्रांति की चिंगारी

१४ फ़रवरी २०११

मिस्र में सैनिक शासन ने प्रदर्शनकारियों की मांग के अनुरूप संसद भंग करते हुए संविधान को निरस्त कर दिया है. इस बीच अल्जीरिया में प्रदर्शनकारियों के साथ सुरक्षा बलों की झड़पें हुई और अनेक को गिरफ्तार किया गया.

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यमन में प्रदर्शनकारीतस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मन विदेश मंत्री गीदो वेस्टरवेले ने अल्जीरिया की सरकार से मांग की है कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा का प्रयोग न किया जाए. उन्होंने टेलिविजन पर कहा कि आजादी चाहने वाले ये प्रदर्शनकारी सिर्फ अपने मानव अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं. इसलिए जर्मनी हिंसा के हर रूप की निंदा करता है. जर्मन विदेश मंत्री ने कहा कि लोकतांत्रिक होने के नाते वे लोकतांत्रिक शक्तियों के पक्ष में हैं. ट्युनिशिया और मिस्र में भी हमारा यही रुख था.

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संसद से मुबारक की तस्वीर हटीतस्वीर: AP

इस बीच मिस्र में सैनिक सरकार के पहले निर्णायक कदम देखने को मिले हैं. हुस्नी मुबारक के हटने के दो दिन बाद मिस्र की सर्वोच्च सैनिक परिषद ने संसद भंग करते हुए संविधान को निरस्त कर दिया है. इस प्रकार प्रदर्शनकारियों की दो मुख्य मांगे मान ली गई हैं. सेना की ओर से घोषणा की गई है कि वे 6 महीनों तक देश की सत्ता संभालेंगे, अगर उससे पहले राष्ट्रपति और संसद का चुनाव न हो. इसके अलावा संविधान में परिवर्तन के लिए एक समिति का गठन किया गया है, जिनके प्रस्तावों पर एक जनमत संग्रह होगा. इस बीच प्रधान मंत्री अहमद शफीक ने इन अफवाहों का खंडन किया है कि हुस्नी मुबारक देश छोड़कर संयुक्त अरब अमीरत चले गए हैं. रविवार को काहिरा के तहरीर स्क्वायर में पहली बार गाडियां चलती देखी गईं. लेकिन अब भी हजारों लोग वहां इकट्ठा हैं.

आइमान नूर सन 2005 के चुनाव में मुबारक के खिलाफ उम्मीदवार थे और उसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया था. सैनिक शासन के कदमों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा है कि यह क्रांति की जीत है. उनकी राय में प्रदर्शनकारी इन कदमों से खुश होंगे.

सेना के वक्तव्य में पहली बार असैनिक शासन के लिए मोटे तौर पर एक समयबद्ध समय सारिणी का संकेत दिया गया है. नए संविधान का गठन एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन घोषणा से पता चलता है कि सैनिक शासन आने वाले समय के बारे में क्या सोच रहा है.

विरोध प्रदर्शनों में शामिल लोगों की ओर से क्रांति की उपलब्धियों की रक्षा के लिए एक ट्रस्टी परिषद का गठन किया जा रहा है. इसके गठन से पहली बार क्रांति में शामिल शक्तियों का एक सांगठनिक रूप सामने आ सकता है. हालांकि अभी कहना मुश्किल है कि मिस्र के भावी राजनीतिक परिदृश्य में उसकी क्या भूमिका होगी.

मिस्र की प्रेरणा से यमन में भी विरोध शुरू हो गया है. हजारों लोगों ने आज तीसरे दिन भी राजधानी सना की सड़कों पर प्रदर्शन किया. वे आर्थिक सुधारों और 32 वर्षों से राज कर रहे राष्ट्रपति अली अब्दल्ला सालेह के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. सना में सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पों में कई लोग घायल हो गए व अनेक को गिरफ्तार किया गया. विपक्ष की मांग है कि संविधान में परिवर्तन के लिए एक निश्चित समय सारिणी की घोषणा की जाए.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उ भट्टाचार्य

संपादन: एम जी

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