मां बनने का सपना
एक ओर करियर की ऊंचाईयां छूने के सपने देखने वाली महिलाएं हैं, जो कुछ समय के लिए मातृत्व को टालना बिलकुल ठीक समझती हैं. दूसरी ओर ऐसी महिलाएं भी हैं जिनके लिए मां बन पाना किसी सपने के सच होने जैसा है.
मार्केट रिसर्च एजेंसी, प्यू रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में संतानहीन महिलाओं की संख्या के मामले में सिंगापुर टॉप पर है. जो महिलाएं किसी शारीरिक कमी की वजह से ऐसा नहीं कर पा रही हों, उनके लिए आईवीएफ तकनीक बहुत कारगर साबित हुई है.
हाल ही में स्वीडन में एक महिला प्रत्यारोपित किए गए गर्भाशय की मदद से अपने बच्चे को जन्म दे पाई है. इससे उन संतानहीन महिलाओं को उम्मीद जगी है जो या तो जन्म से ही बिना गर्भाशय के थीं या फिर कैंसर या किसी दूसरी बीमारी के कारण उनका गर्भाशय निकाला जा चुका है.
2013 में ब्रिटेन वह पहला देश बना जहां तीन लोगों के डीएनए का इस्तेमाल कर आईवीएफ तकनीक से बच्चे पैदा करने की इजाजत है. ऐसा उन मामलों में किया जाता है जहां केवल माता पिता के डीएनए से बच्चे में आनुवंशिक बीमारियों के आने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.
जर्मनी में महिलाएं कम बच्चे पैदा कर रही हैं. 2011 में प्रति महिला यह औसत 1.36 था जबकि 2010 में 1.39. साल दर साल इसमें कमी दर्ज की जा रही है.
गर्भधारण और प्रसव का महिला की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर गहरा असर पड़ता है. मेडिकल साइंस में बताया गया कि मां बनने से महिला को कई गंभीर बीमारियां होने का खतरा कुछ कम हो जाता है.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक बच्चे को जन्म के छह महीने तक केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए. अगर मां बच्चे के जन्म के बाद इससे भी पहले दफ्तर जाने लगे तो बच्चों को या तो बाहरी दूध दिया जाता है या फिर मां अपना दूध बच्चे के लिए बोतल में बंद कर के जाती है.
मां बनने वाली महिलाएं कई बार ऐसे करियर में होती हैं जहां नौकरी के साथ बच्चे की देखभाल कर पाना बहुत कठिन हो जाता है. ऐसे में कार्यस्थल और परिवार का पूरा सहयोग ही काम आ सकता है.
मातृत्व एक महिला या उसके परिवार की इच्छा से जुड़ा मामला नहीं है. मोटे तौर पर इसका हर समाज, देश और पृथ्वी पर इंसान के अस्तित्व से सीधा संबंध है. तो मातृत्व को सबके लिए एक सुखद अनुभव बनाने की कोशिश की जानी चाहिए.