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महिला दिवस की रस्म अदायगी

प्रिया एसेलबोर्न८ मार्च २००९

दुनिया हर 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाती है. यह बात अलग है कि हर जगह महिलाओं के साथ भेदभाव जारी है. लगता है कि 8 मार्च के दिन विश्व संस्थाएं व सरकारें इस भेदभाव पर बस चिंता जताकर पल्ला झाड़ लेती हैं.

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दुनिया की आधी आबादी को नहीं है पूरे अधिकारतस्वीर: picture-alliance / dpa

एशिया हो या अफ़्रीका, अमेरिका या फिर यूरोप, महिलाओं के साथ सभी जगह भेदभाव आम बात है. लेकिन हिंसा और राजनीतिक विद्रोह जैसे संकटों का सामना कर रहे देशों में तो स्थिति बेहद चिंताजनक है. चलिए जानते हैं कि दुनिया के अलग अलग हिस्सों में महिलाओं को किस तरह की परेशानियां भुगतनी पड़ रही है और उसके साथ किस तरह भेदभाव हो रहे हैं.

भारत

भारत में चुनाव आ रहे हैं तो महिलाओं से बड़े बड़े वादे किए जा रहे हैं. 33 फ़ीसदी आरक्षण की बात सालों से चल रही है लेकिन लोकसभा की 545 सीटों में अभी दस फ़ीसदी भी महिलाएं नहीं हैं. पढ़ाई लिखाई में बचपन से ही लड़कियों को हाशिए पर खड़ा कर दिया जाता है और जहां 73 फ़ीसदी पुरुष पढ़ना लिखना जानते हैं, वहीं महिलाओं की संख्या सिर्फ़ 48 फ़ीसदी है. कहने तो आज महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं लेकिन काम काज की जगहों पर महिलाओं से भेदभाव किसी से छिपा नहीं और कई काम तो ऐसे हीं, जिनके लिए उन्हें फ़िट ही नहीं समझा जाता. दफ़्तर में महिलाओं के यौन शोषण की ख़बरें भी अकसर अख़बारों की सुर्ख़ियां बनती हैं. पारंपरिक रूप से लड़कों को लड़कियों से ज़्यादा अहमियत तो दी ही जाती है. इसीलिए कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयां भारतीय समाज में मौजूदा हैं. इसके ख़िलाफ़ बने क़ानून के बावजूद कन्या भ्रूण के मामलों पर रोक नहीं लग पा रही है. भारतीय महिलाओं को घरेलू हिंसा के साथ साथ ससुराल में दहेज को लेकर हिंसा का भी सामना करना पड़ता है.

Indien Wahlen Frauen unterstützen den Wahlkampf der Bahujan Samaj Party
कब मिलेगी भरपूर भागीदारीतस्वीर: AP

श्रीलंका

भारत जैसे देशों में तो फिर भी महिलाएं आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हैं लेकिन युद्ध जैसे हालात में क्या होती है उनकी हालत. चलते हैं भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका. 25 साल से भी ज़्यादा से श्रीलंका भीषण गृह युद्ध का शिकार है. लिट्टे के तमिल विद्रोहियों और सरकार के बीच संघर्ष में अब तक 70 हज़ार जानें गईं हैं. ऐसा लग रहा है कि राष्ट्रपति महेंदा राजपक्षे की घोषणा के तहत सैनिक अभियान के ज़रिए विद्रोही नष्ट होने के क़रीब आ गए हैं. सिर्फ़ एक छोटे से इलाक़े मे वे छिपे हुए हैं और साथ में बहुत सारे नागरिक भी. सिर्फ़ कुछ ही सहायता संगठन मसलन रेड क्रॉस को चार तरफ़ से सैनिकों से घिरे इलाक़े में जाने की अनुमति है.

Sri Lanka
श्रीलंका में मुश्किल हालात ने बढ़ाई मुश्किलेंतस्वीर: AP

रेड क्रॉस के फ्रेदेरिक भार्कनहाम्मार का कहना है, ''महिलाओं की विशेष तरह की ज़रूरतें हैं. बच्चों के लिए डायपर्स चाहिए, या तौलिए और साबुन. दवाइयों में हम प्रोटीनयुक्त दवाइयां देते हैं क्योंकि कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है. बहुत जल्दी भागने या छिपने की वजह से और खाद्य समाग्रियों की कमी की वजह से बच्चे और महिलाएं कुपोषण का शिकार हो रही है.''

पिछले हफ़्तों में अनुमान के अनुसार क़रीब 3 हज़ार निर्दोष नागरिकों की श्रीलंका में मौत हुई है. विशाका धर्मदास महिला कार्यकर्ता हैं. वे बतातीं हैं, ''इस समय जान बचाना सबसे बड़ी चुनौती है. वैसे लिट्टे किसी दूसरे ग्रह से आए लोग नहीं हैं. विद्रोही भी किसी के बच्चे, किसी के पति हैं. यानी जब सरकार नागरिकों से भागने को कहती है तब उन्हें चुनना पडता है कि वे भागे, अपनों को अकेला छोड़ें या उनके साथ मरें.''

विशाका धर्मदास सिंहली हैं. लेकिन वह तामिल इलाक़े को बहुत अच्छी तरह से जानतीं हैं. कई बार उन्होने इस इलाक़े का दौरा किया, लोगों के साथ बात की, दोस्त बनाए. ख़ासकर महिलाएं विवाद की वजह से अकेली पड गईं हैं. बच्चे अनाथ बन गए हैं. अनुमान के अनुसार 33 हज़ार महिलाएं विधवा हो गई हैं. विशाका धर्मदास का बेटा ख़ुद इस गृहयुद्ध का शिकार बना. इसलिए उन्होने फ़ैसला किया कि इस बेमतलब के ख़ून ख़राबे का अंत होना चाहिए. उन्होने युद्ध प्रभावित महिलाओं के संगठन की स्थापना की. उनका लक्ष्य था बातचीत के ज़रिए एक समझौते पर सहमति क़ायम करना जिसमें महिलाओं की समस्याओं पर सोच विचार हो.

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श्रीलंका में चाय के बागानों में काम करने वाली महिलाएंतस्वीर: UNICEF/Paul Texiera

वह कहती हैं, ''मुझे ऐसा लगता है कि लिट्टे का लक्ष्य यानी अपने इलाक़े में स्वतंत्रता पाना सही था. लेकिन जिस तरीक़े से उन्होंने इसे आगे बढाया, वह ग़लत था. वह स्वीकार्य नहीं किया जा सकता. हम लिट्टे को नेलसन मंडेला की बात याद कराना चाहते हैं. एक सही चीज़ के लिए जीत तब ही हासिल की जा सकती है अगर पहली नज़र पर आप हार जाते हैं. इसलिए उन्हें इस वक़्त हथियार सौंप कर आत्मसमर्पण करने की ज़रूरत है. तब ही हज़ारों महिलाओं और बच्चों के लिए ज़िंदगी सामान्य होने का सपना पूरा हो सकता है. यह पीढ़ी तो नही बल्कि अगली पीढ़ी शांति से रह पाएगी.''

फ़्रांस

ऐसा नहीं कि महिलाओं का बुरा हाल सिर्फ़ विकासशील देशों में ही है. पश्चिमी देशों में भी उनकी हालत कोई अच्छी नहीं. मसलन फ़्रांस में जब पैसे कमाने की बात आती है तो महिलाओं को पीछे धकेल दिया जाता है. एक ही तरह के काम के लिए यहां की औरतों को पुरुषों के मुक़ाबले बीस फ़ीसदी कम वेतन मिलता है. फ़्रांस सरकार में आम तौर पर काम को 86 श्रेणियों में बांटा गया है, लेकिन आम तौर पर महिलाएं सिर्फ़ छह तरह के काम ही करती हैं. फ़्रांस के बड़े ट्रेड यूनियन सीजिटी की मारी फ्रान्स बूत्रू बताती हैं, ''आज भी माना जाता है कि महिलाएं सिर्फ़ छह तरह का काम ही कर सकती हैं. वे दुकानों में काम करती हैं. नर्स या डॉक्टर बनती हैं. साफ़ सफ़ाई करती हैं या फिर रेस्त्रां में. उद्योग या अर्थव्यवस्था में उनकी हिस्सेदारी कम है.''

Protest gegen Gewalt an Frauen in der Türkei
फ़्रांस में महिलाओं को मिलता है 20 फ़ीसदी कम वेतनतस्वीर: AP

फ़्रांस में 61 प्रतिशत महिलाएं साफ़ सफ़ाई का काम कर रही हैं. प्रशासनिक और सेक्रेटरी से जुड़े ज़्यादातर काम महिलाओं के ज़िम्मे होता है. हालांकि फ़्रांस उन देशों में गिना जाता है, जहां की महिलाएं परिवार की देखभाल और करियर बढ़ाने में कुशल मानी जाती हैं. लेकिन ऊंची डिग्री लेने के बाद भी नौकरियों और तनख़्वाह में उनके साथ भेदभाव किया जाता है. जानकारों का मानना है कि महिलाएं ख़ुद अपना हक़ मांगने में हिचकिचाती हैं. प्रमोशन की बारी आती है, तो पहले पुरुष का नाम आगे बढ़ जाता है. पचास साल की नर्स लोरोन्स दुरों का कहना है, ''मैने सालों तक एक अस्पताल में काम किया. मुझे हर दिन कम से कम 30 मरीज़ों की देखभाल करनी पढी. कई बार मैं 12 से भी ज़्यादा घंटे काम करती थी. मुझे लगता है कि अगर ज़्यादा पुरूष यह काम करते, तब इस काम को ज़्यादा अच्छा माना जाता. लेकिन मैंने यह भी देखा कि यदि किसी पुरूष ने ऐसा काम किया फिर डॉक्टरों ने उससे ही बात की और उसके साथ हमसे ज़्यादा अच्छा व्यवहार किया.''

Ex-Präsidentschaftskandidatin Ségolène Royal
फ़्रांस में सेगोलेन रोयाल राष्ट्रपति चुनाव लड़ चुकी हैंतस्वीर: AP

आर्थिक मंदी और दूसरी समस्याओं से पीड़ित यूरोप में भी महिलाओँ को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अपनी एक दोस्त के बारे में लोरोन्स दुरों बतातीं हैं, ''मेरी एक दोस्त बैंक में काम करती है. उसको मिनिमम सैलरी भी नही मिलती है क्योंकि वह पार्ट टाईम काम कर रही है. वह अपने बच्चों को अकेले पाल रही है. यदि उसकी तनख़्वाह बढ़ती है, तब उससे सरकार से मिल रही मदद कम कर दी जाती है. यानी वह काम भी करती है, बच्चे भी पाल रही है लेकिन उसकी स्थिति हर दिन मुश्किल होती जा रही है.''

रूस

रूस की राजधानी मॉस्को हाल के सालों में बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ा है. लेकिन मॉस्को की लगभग तीन फ़ीसदी महिलाएं जिस्मफ़रोशी में लगी हैं. इनमें से ज़्यादातर दूसरे देशों से आई हैं. कहा जाता है कि उनसे यह काम ज़बरदस्ती कराया जाता है. पुलिस उनकी मदद नहीं करती. रूस में देह व्यापार ग़ैरक़ानूनी है, इसलिए इन महिलाओं को लुक छिप कर यह काम करना पड़ता है. मॉस्को में महिला अधिकारों के लिए लड़ रहीं अपसोना कादीरोवा बताती हैं, ''अपराधी क़िस्म के लोग महिलाओं को बहला फुसला कर यहां लाते हैं. फिर इस धंधे में लगा देते हैं. फिर धमकियां दी जाती हैं कि अगर उन्होंने मुंह खोला तो उन्हें भी मार दिया जाएगा और उनके परिवार वालों को भी. ऐसे में महिलाएं फंस कर रह जाती हैं.''

EM 2004 Russland gegen Griechenland Fußballfan
रूस में भी बेहतर नहीं है महिलाओं की स्थितितस्वीर: AP

अकसर ऐसी महिलाओं के पासपोर्ट छीन लिए जाते हैं. उन पर दबाव बनाया जाता है कि वे पैसे कमाएं, तो उन्हें पासपोर्ट वापस मिलेगा. ठगी गई औरतों के सामने कोई चारा नहीं दिखता. कई बार महिलाएं पुलिस को बयान देती हैं लेकिन उन्हें सुरक्षा की चिंता लगी रहती है. पुलिस या सरकार से सुरक्षा नहीं मिलती. ऐसे में वे छिपी रहती हैं. पैसे कमा कर एजेंट को देती हैं और अपने देश लौट जाती हैं.

अफ़सोस की बात यह कि महिलाओं के बारे में वादे ख़ूब किए जाते हैं और जब उन्हें भागीदारी देने की बात आती है, तो क़दम पीछे खींच लिए जाते हैं. ऐसे में आगे आने के लिए महिलाओं को ख़ुद संघर्ष करना होगा.