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समाज

महाराष्ट्र में प्लास्टिक बैन से कितना होगा असर

क्रिस्टीने लेनन
२५ जून २०१८

पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगा दी है. कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं, तो बहुत से अब भी प्लास्टिक के इस्तेमाल से दूर नहीं होना चाहते.

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Greenpeace-Protest vor dem G7-Gipfel in Kanada
तस्वीर: © David Kawai / Greenpeace

प्लास्टिक बैग के अत्यधिक उपयोग ने पर्यावरण को नष्ट करने का काम किया है. जहां-तहां पड़ा प्लास्टिक कचरा न सिर्फ स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है, बल्कि पूरे पारिस्थितिक-तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है. प्लास्टिक बैग के उपयोग से होने वाले नुकसान के बारे में तमाम सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद इसका उपयोग अब तक जारी है. प्लास्टिक थैलियों में सामान देने और लेने में कमी नहीं आते देख महाराष्ट्र सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी है. साथ ही उपयोग करने पर जुर्माना भी लगा दिया है. जानकारों का मानना है कि जुर्माने के जरिए प्लास्टिक बैग के उपयोग पर रोक लग सकती है.

प्लास्टिक से प्रदुषण फैलाने में भारत दुनिया के 20 शीर्ष देशों में शामिल है. प्लास्टिक कचरे का दुष्प्रभाव जमीन, पानी और हवा तीनों पर पड़ता है. प्लास्टिक के तत्व जमीन में मिल जाने से जमीनों की उर्वरता खराब हो रही है. दूसरी तरफ प्लास्टिक कचरे से पानी भी दूषित हो रहा है. इससे भूजल पर विपरीत असर पड़ा है. वहीं, प्लास्टिक को जलाने से कई जहरीली गैस वातावरण में मिल जाती है, जिससे हवा भी प्रदूषित हो रही है.

प्लास्टिक कचरे का दुष्प्रभाव इंसानों के साथ ही अन्य जीवों पर भी पड़ रहा है. इसकी वजह से समुद्री जीवों की कुछ प्रजातियां धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं. आवारा पशुओं के पेट में से प्लास्टिक बैग निकलना आम हो चला है. भारत में हर साल सैकड़ों गायों की मौत प्लास्टिक की थैलियां निगल जाने के कारण हो जाती है. पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन का कहना है कि एक बार इस्तेमाल के बाद फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को 2022 तक समाप्त कर दिया जाएगा.

23 मार्च को राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके सभी तरह की प्लास्टिक सामग्री के उत्पादन, इस्तेमाल, बिक्री, वितरण और भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसमें एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले बैग, चम्मच, प्लेट, पीईटी और पीईटीई बोतल और थर्मोकोल की चीजें भी शामिल थीं. अधिसूचना में निर्माताओं, वितरकों और रिटेल व्यापारियों को प्रतिबंधित माल के वर्तमान भंडार के खत्म करने के लिए तीन महीने की अवधि प्रदान की गई थी. उपयोगकर्ताओं को ऐसी चीजों को खत्म करने के लिए केवल एक महीने की अवधि प्रदान की गई थी. सरकार के इस निर्णय के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने वालों को कोई राहत नहीं मिली. मुंबई उच्च न्यायालय ने प्लास्टिक सामग्री पर प्रतिबंध लगाने के महाराष्ट्र सरकार के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार करते हुए लोगों से प्‍लास्‍ट‍िक बैन में अपनी सहायता देने की अपील की थी. अदालत ने कहा कि वह पर्यावरण पर प्लास्टिक कचरे के प्रतिकूल प्रभाव को नजरंदाज नहीं कर सकती.

एक अनुमान के मुताबिक महाराष्ट्र में हर रोज 1200 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जो राज्य के पर्यावरण के साथ लोगों की सेहत पर भी बुरा असर डालता है. पर्यावरण कार्यकर्ता तो पहले से ही प्लास्टिक थैलियों के विरोध में अभियान चलाए हुए थे. अब आम लोगों को भी प्लास्टिक कचरे के प्रतिकूल प्रभाव से पर्यावरण को हो रहे नुकसान की चिंता होने लगी है. सरकार के प्लास्टिक पर प्रतिबंध का जनता विरोध नहीं कर रही है. उलटे जनता का एक वर्ग सरकार से इस कदम का स्वागत कर रहा है.

एक उपभोक्ता सीमा जाधव कहती हैं कि अब वह सब्जी लेने जाती हैं, तो बिना झोला लिए घर से नहीं निकलती. पहले प्लास्टिक थैलियों में ही लेकर आती थीं. वहीं सब्जी विक्रेता किशन यादव कहते हैं, "अब भी अधिकतर लोग सब्जी रखने के लिए प्लास्टिक थैली की मांग करते हैं." यानी सरकार के तमाम प्रयास के बावजूद लोग प्लास्टिक बैग का उपयोग करना नहीं छोड़ रहे हैं. शायद जुर्माने के बाद लोग इसके उपयोग से परहेज करने लगें.

प्लास्टिक बैग के नुकसान को देखते हुए कागज या कपड़े के बैग के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. वैसे, कागज लकड़ी से बनता है और लकड़ी का स्रोत पेड़ है. इसलिए अगर कागज का इस्तेमाल बढ़ेगा, तो अधिक पेड़ कटेगा जो अंततः पर्यावरण के लिए नुकसानदायक ही होगा.